अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस: ‘हिन्दी-गुजराती संबंध, स्थिति और संभावनाएं’ पर गहन चर्चा, इन वक्ताओं ने दिया संदेश

हैदराबाद (डॉ जयशंकर यादव की रिपोर्ट) : वैश्विक हिन्दी परिवार और केंद्रीय हिंदी संस्थान के तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के उपलक्ष्य में हिन्दी गुजराती के अन्तः संबंधों पर गहन चर्चा हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ हरिसिंह गौड़ केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर के पूर्व कुलपति डॉ बलवंत जानी ने हिन्दी गुजराती के अन्तः सम्बन्धों को हजारों साल पुराना बताया। उन्होंने हेमचंद्राचार्य की 1180 की रचना का जिक्र करते हुए देसी नाम माला, शब्दानुशासन और गुजराती की पहली कृति भरतेश्वर बाहुबली रास का भी संदर्भ दिया।

डॉ जानी ने धार्मिक संप्रदायों यथा राधास्वामी, आर्य समाज, बोहरा समाज, नाथ सिद्ध परंपरा और स्वामीनारायण के हिन्दी गुजराती भाषाई योगदान को उद्घृत करते हुए राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन तथा गांधीजी की राष्ट्रभाषा संबंधी सशक्त भूमिका की याद दिलाई। इस अवसर पर तीस से अधिक देशों के भाषा प्रेमी जुड़े।

आरम्भ में रेलवे बोर्ड के राजभाषा निदेशक डॉ बरुण कुमार ने सारगर्भित प्रस्ताविकी सहित सबका स्वागत किया। भोपाल के रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के प्रवासी केंद्र के सलाहकार डॉ जवाहर कर्नावट ने शालीन ढंग से संचालन का बखूबी दायित्व निभाया। जापान और मॉरीशस की भाषाई यात्रा से अभी लौटे डॉ कर्नावट ने बताया कि 21 फरवरी 1952 में ढाका में हुए भाषा आंदोलन में शहीद सात नौजवानों ने दुनियाँ को झकझोर दिया जिसमें विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान में उर्दू के स्थान पर बांग्ला लागू करने की मांग की गई थी। अतएव 16 मई 2007 को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में चिन्हित किया गया। उन्होंने बारी-बारी वक्ताओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए सहज भाव से सादर आमंत्रित किया।

गांधीनगर के सरकारी कला महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ अनुपा सिंह चौहान ने कहा कि हिन्दी गुजराती शौरसेनी अपभ्रंश से निकली हैं। रासो साहित्य की परंपरा के ग्रंथ गुजराती में भी हैं। नरसी मेहता, दयाराम, मीराबाई और अखा आदि जग विख्यात हैं। स्वतन्त्रता आंदोलन में हिन्दी गुजराती की भूमिका जगजाहिर है। बोलचाल, मुहावरों और साहित्यिक हिन्दी तथा फिल्मों आदि में इनके मिश्रित शब्द मिलते हैं। के एम मुंशी, उमाशंकर जोशी, रघुबीर चौधरी, आलोक गुप्ता, राम दरश मिश्र आदि की साहित्य सेवाएँ स्तुत्य हैं। मैंचेस्टर के रूप में विख्यात अहमदाबाद और व्यापार की भाषा से भी अन्तः संबंध मजबूत हुए। उन्होंने कहावत बताई कि-ज्यां ज्यां बसे एक गुजराती, त्यां-त्यां बने एक गुजरात।

सौराष्ट्र विश्वविद्यालय गुजरात के प्रो जेठालाल चंद्रवाडिया ने महाकवि सुब्रमनियम भारती को उद्घृत करते हुए कहा कि भारत माता 18 भाषाओं में बोलती है। भारत की सभी भाषाओं का आपसी संबंध सदियों से अटूट है। इतिहास गवाह है कि भारतीय भाषाओं की समुचित आपसी आश्रितता नहीं प्रस्तुत की गई। हमें इसे मजबूती देने की निहायत जरूरत है। गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डॉ आलोक गुप्ता ने हिन्दी गुजराती की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भाषाई विकास की क्रमिक चर्चा की जिसका क्षेत्र प्राचीन काल में भी विस्तृत था। उन्होंने बल्लभीपुर के राजा की साहित्य सेवा और टाड कलेक्शन को ऐतिहासिक कार्य बताया तथा जैन धर्म की भूमिका को रेखांकित किया और आठवीं सदी से आधुनिक काल तक की भाषाई मजबूत कड़ी की ओर ध्यान आकृष्ट किया ।उनका कहना था कि हाथियों पर ग्रन्थों की शोभा यात्रा निकालना ऐतिहासिक है।

सान्निध्यप्रदाता के रूप में भारतीय भाषा मंच के राष्ट्रीय संयोजक डॉ राजेश्वर कुमार ने कहा कि हिन्दी गुजराती संबंध के भाषाई ही नहीं बल्कि प्रगाढ़ रूप से सांस्कृतिक भी है। भारतीय भाषाओं का भाव एकत्व से भरा है। महर्षि दयानंद, गांधीजी, काका साहब कालेलकर, उमाशंकर जोशी आदि ने भावभूमि तैयार की। हिन्दी और गुजराती में रूप और अंतर्वस्तु की दृष्टि से भी आपसी समृद्धि है। रामत्व ने उत्तर दक्षिण और कृष्ण ने पश्चिम पूरब को विशेष रूप से जोड़ा।

वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष अनिल जोशी ने सभी वक्ताओं का समादर करते हुए कहा कि राष्ट्रीयता के प्रतिनिधि राजा सयाजीराव गायकवाड, महर्षि दयानंद और गांधीजी आदि का योगदान स्तुत्य है। संविधान का राजभाषा के लिए मुंशी आयंगार फोर्मूला जगजाहिर है। समकालीन समय में यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी और गृह मंत्री अमित शाह का योगदान बड़ा बदलाव लाया है। मेडिकल और इंजीनियरिंग आदि की उच्च शिक्षा का मार्ग अभी प्रशस्त हुआ है। हमें समय के साथ लिपियों की एकात्मकता बढ़ानी चाहिए।

कार्यक्रम में जापान से पद्मश्री प्रो तोमियो मिजोकामी, अमेरिका से अनूप भार्गव, मीरा सिंह प्रो सुरेन्द्र गंभीर, यू के की साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर, शैल अग्रवाल, चीन से प्रो विवेक मणि त्रिपाठी, सिंगापुर से प्रो संध्या सिंह, कनाडा से शैलेजा सक्सेना, खाड़ी देश से आरती लोकेश, थाइलैंड से प्रो शिखा रस्तोगी तथा भारत से डॉ नारायण कुमार, प्रो जगन्नाथन, प्रो राजेश गौतम, विजय नगरकर, किरण खन्ना, सावित्री मंधारे ऊषा बाला गुप्ता, नीलिमा, परमानंद त्रिपाठी, अरविंद शुक्ल, प्रेम वीरगो, संजय आरजू, सुषमा देवी, पूनम सापरा, ऊषा सूद, मधु वर्मा, के एन पाण्डेय, रश्मि वार्ष्णेय, डालचंद, महबूब अली, सत्य प्रकाश, सोनू कुमार, अंजलि, वंदना, कविता, सरोज कौशिक, ए के साहू, ऋषि कुमार, माधुरी क्षीरसागर, परशुराम मालगे, विनय शील चतुर्वेदी, स्वयंवदा एवं अनुज आदि सुधी श्रोताओं की गरिमामयी उपस्थिति रही।

तकनीकी सहयोग का दायित्व डॉ मोहन बहुगुणा और डॉ सुरेश मिश्र उरतृप्त द्वारा बखूबी संभाला गया। इस अवसर पर अनेक शोधार्थी उपस्थित थे। समूचा कार्यक्रम विश्व हिन्दी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद और केंद्रीय हिन्दी संस्थान के सहयोग से वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष अनिल जोशी के मार्गदर्शन और सुयोग्य समन्वयन में संचालित हुआ। अंत में थाइलैंड से प्रो शिखा रस्तोगी द्वारा आत्मीयता से नामोल्लेख सहित माननीय अध्यक्ष, मुख्य अतिथि, वक्ताओं, संरक्षकों और सहयोगियों आदि को धन्यवाद दिया गया। समूचा कार्यक्रम भाषी सौहार्द्र सहित सम्पन्न हुआ। यह कार्यक्रम वैश्विक हिन्दी परिवार शीर्षक से यू ट्यूब पर उपलब्ध है।

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