विशेष : हैदराबाद मुक्ति आंदोलन के स्वतंत्रता सेनानी एवं भारतीय भाषाएं’ विषयक संगोष्ठी और पंडित गंगाराम जी वानप्रस्थी

‘हैदराबाद मुक्ति आंदोलन के स्वतंत्रता सेनानी एवं भारतीय भाषाएं’ विषय पर बुधवार को अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी है। यह संगोष्ठी उस्मानिया विश्वविद्यालय और स्वतंत्रता सेनानी पंडित गंगाराम स्मारक मंच की ओर से ओयू के आर्ट्स कॉलेज में है। उस्मानिया विश्वविद्यालय का सौ साल का इतिहास है। भक्तराम चेयरमैन के नेतृत्व में स्थापित/गठित स्वतंत्रता सेनानी पंडित गंगाराम स्मारक मंच का गठन होकर एक साल भी नहीं हुआ। मंच का हाल ही में एक ही कार्यक्रम हुआ। इतने कम समय में मंच ने साहित्य जगत में तहलका मचा दिया है।

इसका हमें लोक सभा के अध्यक्ष ओम बिड़ला के ‘हैदराबाद मुक्ति आंदोलन के स्वतंत्रता सेनानी एवं भारतीय भाषाएं’ विषयक संगोष्ठी की सफलता के संदेश से होता है। ओम बिड़ला ने बधाई संदेश में कहा कि मंच की ओर से संगोष्ठी के लिए रोचक व इतिहासपरक विषय है। इस संगोष्ठी के माध्यम से स्वतंत्रता काल के इतिहास को जानने का सुअवसर मिलेगा। हां यह सही है। यह संगोष्ठी से इतिहासकपरक है। इतिहासकपरक जानकारी भी मिलेगी और वह इतिहास के पन्नों में दर्ज भी होगी और होना भी चाहिए।

क्योंकि इस मंच में एक नाम है और वह है- पंडित गंगाराम। पंडित गंगाराम केवल इंसान ही नहीं है, बल्कि मेरी नजर में वे धरती के एक मसीहा थे। गंगाराम जी में अनेक गुण थे। मुख्य रूप से समाज की सेवा, अंधविश्वास को मिटाना, देश के प्रति प्रेम, छूआछूत यानी भेदभाव और सबसे ज्यादा और महत्वपूर्ण था- इंसानियत।

मेरा और पंडित गंगारामजी का परिचय 1981 में हुआ। मुझे एक हत्या के आरोप में मौत की सजा हुई थी। हाईकोर्ट ने उसे आजीवन कारावास मे बदल दिया। इसके चलते मुझे मुशीराबाद जेल से चंचलगुड़ा जेल भेज दिया गया। चंचलगुड़ा जेल के अधिकारियों ने मुझे जेल की कालकोठरी बंद कर दिया। कारण पूछने पर मुझे बताया गया कि मैं एक खतरनाक मुजरीम हूं। मैंने जेल अधिकारियों के खिलाफ आवाज उठाई तो उन्होंने पुलिस से मेरे बारे में जानकारी ली और मुझे नक्सलवादी बैरेक में भेज दिया।

जेल में मुझे कई पत्र-पत्रिकाएं आती थी। एक दिन किसी और का हैदराबाद समाचार उन पत्रिकाओं के साथ मेरे पास आ गया। मैंने हैदराबाद समाचार के संपादक मुनींद्र जी को पत्रिका भेजने के लिए पत्र लिखा। मुनींद्र जी ने पत्रिका भेजनी शुरू की। साथ ही मेरे पत्र को पहले पेज पर छाप दिया। इस पत्र को पढ़कर गंगाराम जी (तब वानप्रस्थी नही थे) मुझे मिलने जेल आ गये। यह जेल में मेरी पहली मुलाकात थी। मेरे कुछ कहने और पूछने से पहले ही उन्होंने बताया कि आपका पत्र हैदराबाद समाचार में पढ़कर मिलने आया हूं। इतना ही नहीं आपको और जेल में आपके साथियों को भी वर्णाश्रम पत्रक भेजेंगे। साथ ही जेल में पढ़ना चाहते है तो आपको किताबें और कलम भी लाकर दूंगा। इस तरह तीन चार बार मुझे जेल में मिलने आये और किताबें आदि देकर गये। इससे अंदाजा लगाया जा सकता हैं गंगाराम जी क्या चीज है। कौन है जो समय और पैसा बर्बाद करते जेल मैं मिलने जाता/आता है। यह केवल गंगाराम जी ही कर सकते हैं और किया है।

1997 में मैं पहली बार पेरोल पर बाहर आया तो गंगाराम जी और मुनींद्र जी से मिलने गया। दोनों ने मुझे अपार प्यार दिया। जब जाने लगा तो गंगाराम जी और उनकी पत्नी इंद्राणी देवी ने मुझे आने-जाने का बस किराया और रास्ते में भूख लगे तो कुछ खाने के लिए पैसे भी दिये। उनकी प्रेरणा और मेरी लगन से मैंने जेल में स्नातक और अन्य की पढ़ाई की। इसके चलते 1990 में तत्कालीन मुख्यमंत्री एनटीआर ने मुझे क्षमादान देकर रिहा किया। रिहा होने के बाद गंगाराम जी और मुनींद्र जी से मिला।

मैं एक कटी पतंग की तरह था। फिर भी अन्याय खिलाफ लड़ना मेरा मकसद था। मैंने अपना इरादा बताया तो दोनों ने मुझे हकीकत से अवगत कराया। हकीकत यह थी कि अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए केवल बंदूक और हथियार पकड़ना नहीं है। हथियार से ज्यादा ताकतवर कलम होती है। इसके चलते मुनींद्र जी के पास काम करना शुरू किया। आदर्श विवाह किया। डॉ बीआर अंबेडकर ओपन यूनिवर्सिटी और डेली मिलाप में 25 साल तक कार्य किया। रात-दिन मेहनत करके बच्चों को पढ़ाया। तेलंगाना आंदोलन के समर्थन में जितना लेखन हिंदी मैंने किया, शायद किसी और नहीं किया।

गंगाराम जी वानप्रस्थी और इंद्राणी देवी के निधन के बाद उनके घर मिलने के लिए जाना कम हुआ। फिर भी उनके बेटे भक्तराम जी और बहन मीरा दीदी जी मुझसे मिलने आते और फोन पर बात करते रहते हैं। एक दिन मैंने भक्तराम जी से पिताजी की महानता के बारे में बताया तो उनकी आंखें भर आई। साथ ही मैंने कहा कि ऐसे महान व्यक्ति के बारे में कुछ करना चाहिए। इसी बीच भक्तराम जी की पत्नी सुखदा का निधन हो गया। इस हादसे से उभरने के लिए कुछ समय लगा।

इसके बाद मंच का गठन हुआ। आज आपके सामने आर्ट्स कॉलेज में ऐतिहासिक संगोष्ठी है। मंच के चेयरमैन भक्तराम ने संकल्प लिया है कि संगोष्ठी के बाद प्राप्त सामग्री को एक किताब रूप में प्रकाशित किया जाएगा। उस किताब में गंगाराम जी के हर पहलू के बारे में जानने का अवसर मिलेगा। अर्थात इतिहासकारों से ही इतिहास बनता है। गंगाराम जी वानप्रस्थजी इतिहासकार है और इतिहास बनाया है। ऐसा लगता है कि समाज की सेवा और दुखियों की मदद करने के लिए उन्होंने जन्म लिया है। मैंने गंगाराम जी वानप्रस्थी में अन्य विषयों से ज्यादा इंसानियत को ज्यादा देखा है। ऐसे महान व्यक्ति को याद करना मैं अपना कर्तव्य समझता हूं। क्योंकि आज मैं कुछ हूं और जैसा भी हूं भी गंगाराम जी और मुनींद्र जी के प्रेरणा से हूं। मुझे विश्वास है कि यह मंच भविष्य मेंअधिक नाम रोशन करेगा और इंसानियत को अधिक प्रमुखता देगी।

– के राजन्ना, तेलंगाना समाचार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

Recent Comments

    Archives

    Categories

    Meta

    'तेलंगाना समाचार' में आपके विज्ञापन के लिए संपर्क करें

    X