हैदराबाद : स्वतंत्रता सेनानी पंडित गंगाराम स्मारक मंच की ओर से सोमवार को प्रमुख साहित्यकार और कादंबिनी कल्ब की संस्थापक अध्यक्ष डॉ. अहिल्या मिश्र जी का सम्मान कार्यक्रम आयोजित किया गया। यह सम्मान केंद्रीय मंत्रालय, भारत सरकार की ओर से डॉ अहिल्या को कौशल विकास एवं उद्यमशीलता मंत्रालय में हिंदी सलाहकार समिति के गैर सरकारी सदस्य के रूप में मनोनीत किये जाने के उपलक्ष्य में किया गया। इस अवसर मंच के शाल ओढ़ाकर सम्मान श्रीमती विभा भारती जी और आरती आत्मा राम जी द्वारा डॉ अहिल्या मिश्र का शाल और माला पहनाकर सम्मामित किया।
मंच को संबोधित करते हुए डॉ अहिल्या मिश्र ने कहा कि पंडित गंगाराम जी का बहुत बड़ा स्नेह भाजन रही हूं और मुझे उस दिन इतना अच्छा लगा जब भक्तराम जी ने उनकी स्मृति में स्मारक के रूप में संस्था का निर्माण हुआ। एक आदमी जो निरपेक्ष रूप से कुछ करता है, कुछ स्वार्थ नहीं, कोई इच्छा नहीं, कोई प्राप्ति की आकांक्षा नहीं, अपना कार्य किए जा, किए जाते रहे पण्डित गंगाराम जी।
एक समय था मुझसे कई लोग घबराते थे। मैं महिलाओं के लिए कहीं भी खड़ी होकर महिलाओं की वकालत करने के लिए पीछे नहीं हटती थी। महर्षि दयानंद की उन्होंने जम के तारीफ की कि आर्य समाज में स्त्रियों को स्त्री मानने के लिए पहला कदम उठाया। उन्होंने कहा मैं विचारों से आर्य समाजी हूं, मैंने जब कभी स्त्रियों के विकास की बात की तो मैंने भारतीय संस्कार संस्कृति की बात की, भारतीय सभ्यता की बात की है। हमारी सभ्यता में अपनी भार्या को छोड़कर दूसरी स्त्री हमारे लिए बहन और मां के समान देखने को कहा गया है।
गंगाराम वानप्रस्थी जी कई बार मुझसे मिलने आ जाते थे, मैं प्रिंसिपल थी, इस बारे में बात होती थी, ज्यादा रुकते नहीं थे बहुत कम रुकते थे। जब मैं उनसे कहती कि आपका आशीर्वाद मिले तो वह हंस देते थे और तुमको आशीर्वाद की जरूरत नहीं कह कर मुझे आशीष देते थे। विचारधारा की बात जब हुई, कई बार मैं बहस कर लेती थी, मैं कहती थी कि मैं यह मानती हूं, तब वानप्रस्थी जी और गंभीरता से सोचों, बहुत ही धीमी आवाज में बोलते थे कभी तेज आवाज में बात नहीं की और गंभीरता से सोंचिए कह देते और बस एक छोटा सा सेंटेंस का टुकड़ा मुझे थमा देते थे। और जब मैं अकेले रहती तो निश्चित ही इस पर मनन और चिंतन करती थी। ऐसे व्यक्तित्व को अगर हम उजागर नहीं किए तो यह बहुत बड़ा अन्याय होगा।
इस अवसर पर मिलिंद प्रकाशक के प्रमुख श्रुतिकांत भारती और मंच के मंत्री ने पण्डित गंगाराम जी के विषय में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि पण्डित जी बाल्यावस्था में आर्य समाज के संपर्क में आने से ही उन्होंने हिंदी अपनाई और जीवन पर्यंत हिंदी के लिए जिए। पण्डित गंगाराम जी ने 1945 में हिंदी में ही “ऋषि चरित्र प्रकाश” लिखा, जिसे तत्कालीन निजाम सरकार ने जब्त किया। केशव स्मारक आर्य विद्यालय के संस्थापक सदस्य रहे जिसे हैदराबाद राज्य में हिंदी की पढ़ाई, पढ़ाने वाला पहला विद्यालय था। दक्षिण भारत में पहले महाविद्यालय की स्थापना हिंदी महाविद्यालय के रूप में भी पंडित जी का काफी महत्व योगदान रहा, जिसके वो संस्थापक मंत्री रहे और सफलतापूर्वक कॉलेज की स्थापना हुई।
दयानंद उपदेशक विद्यालय, मलकपेट के संस्थापक मंत्री रहे और यहां पर भी उन्होंने वानप्रस्थी रहते हुए कई विद्यार्थियों को हिंदी सिखाया। वकालत करते हुए भी पंडित गंगाराम जी ने हिंदी में ही हस्ताक्षर करते थे और सभी को हिंदी में कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। “वर्णाश्रम पत्र” मासिक पत्रिका का संपादन भी करते रहे और लगभग 20 वर्ष या उससे अधिक समय तक पण्डित गंगाराम जी ने इसे प्रकाशित किया।
डॉ विद्याधर, प्रिंसिपल, विवेक वर्धिनी कॉलेज ने मंच द्वारा धन्यवाद ज्ञापन किया और कहा कि डॉ अहिल्या मिश्र जी कि इतने व्यस्त रहते हुए भी इस कार्यक्रम के लिए आने पर बहुत-बहुत धन्यवाद और भविष्य में जब कभी हम बुलाए आप इसी तरह आने की कृपा करेंगे और मिश्र जी ने भी आश्वासन दिया कि आप मुझे कभी भी यहां पर पुण्य कार्यों के लिए बुला सकते है। डॉ विद्याधर जी ने सभी गणमान्य व्यक्तियों को अपना अमूल्य समय देकर उपस्थित रहने पर धन्यवाद कहा। अंत में शांति पाठ के साथ सभा की समाप्ति हुई। इस कार्यक्रम में श्री प्रदीप जाजू, डॉ धर्म तेजा जी, श्री प्रेमचन्द मनोत जी, श्रीमती विभा भारती,
श्री रणधीर सिंह, श्री धर्म पाल, श्री अजय धर्म पाल, श्री आत्मा राम, श्रीमती आरती आत्मा राम, श्रीमती दुबे, श्री कालीदास वाले, अभि राम,आनंदिता और अन्य उपस्थित थे।