भेदभावपूर्ण व्यवहार खत्म नहीं हुआ, बल्कि स्वरूप बदला है

आज हम जो आरक्षण की लड़ाई लड़ रहे हैं, उसके जिम्मेदार हमारे अपने ही लोग हैं, जिनका यह मानना था कि हम क्षत्रिय हैं। वही एक तबका 1935 के बाद से लगातार अपने को क्षत्रिय घोषित करता आ रहा है। ऐसे में आज भी जो लोग अपने को क्षत्रियों से जोड़कर देखते हैं या अपने को क्षत्रिय या अन्य धोबियों से उच्च गोत्र वाला मानते हैं उन्हें आरक्षण हेतु लड़ाई नहीं लड़नी चाहिए।

यही बात ब्राह्मणवाद (आरक्षण विरोधियों का) का समर्थन करने वाले साथियों पर भी लागू होती है, चाहे वह कोई भी हों। जिन लोगों को यह लगता है कि धोबियों के साथ कोई भेदभावपूर्ण व्यवहार अब नहीं होता है, वे अब किसी विशेष वर्ग के व्यक्ति के साथ या वह व्यक्ति उनके (धोबियों के) साथ खाना खाने लगे हैं, आदि आदि। उन लोगों को आरक्षण की लड़ाई से अपने आपको दूर हटा लेना चाहिए या आरक्षण की लड़ाई लड़ रहे लोगों को उनसे दूरी बना लेनी चाहिए।

लेखक नरेंद्र दिवाकर

क्योंकि साथ में उठना-बैठना (आरक्षण विरोधियों की) उनकी राजनीतिक मजबूरी हो सकती है, लेकिन देश के सभी प्रदेशों में धोबी समाज (जिन प्रदेशों में धोबी ओबीसी में आते हैं वहाँ भी) के लोगों के साथ भेदभावपूर्ण घटनाएं यह स्पष्ट दिखाती हैं कि अस्पृश्यता अभी ख़त्मनहीं हुई है। अभी हमें सामाजिक न्याय नहीं मिल पाया है और यदि स्थिति ऐसी ही रही तो शायद ही शीघ्र मिल पाए।

नरेन्द्र दिवाकर की कलम से (9839675023)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

Recent Comments

    Archives

    Categories

    Meta

    'तेलंगाना समाचार' में आपके विज्ञापन के लिए संपर्क करें

    X