‘डायस्पोरा में राम’ विषय पर विशेष व्याख्यान, देश-विदेश के इन वक्ताओं ने दिये भगवान श्रीराम के बारे में यह संदेश

हैदराबाद (डॉ जयशंकर यादव की रिपोर्ट) : अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, केंद्रीय हिंदी संस्थान, विश्व हिन्दी सचिवालय और वातायन के तत्वावधान में वैश्विक हिन्दी परिवार द्वारा ‘डायस्पोरा में राम’ विषय पर रविवारीय विशेष व्याख्यान, प्रवासी भवन नई दिल्ली से सीधे जीवंत और आभासी (हाइब्रिड) रूप में हर्षोल्लास से आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अंतराष्ट्रीय सहयोग परिषद के अध्यक्ष एम्बेसडर वीरेन्द्र गुप्त ने हर्षातिरेक से कहा कि पावन अयोध्या में ऐतिहासिक रामलला की प्राणप्रतिष्ठा की पूर्व संध्या पर यह कार्यक्रम अत्यंत संगत और सामयिक है। अब जब भवन चले भगवान की शुभ वेला आई है तो स्वाभाविक रूप से विश्व में नई रौनक और सांस्कृतिक चेतना जागी है। दुनियाँ सही दिशा में एक नया रास्ता देख रही है। प्रवासी भारतीयों ने अपनी प्रतिभा और कड़ी मेहनत के बलबूते संबन्धित देशों में भारतीयता की अभिनंदनीय सांस्कृतिक पहचान बनाई है। अब सबकी अँखियाँ, शीघ्र संभाव्य राम दर्शन को प्यासी हैं।

नेपाल के जनकपुर से लेखिका डॉ मोनी बिजय ने अपनी बात सस्वर मंगल भवन अमंगल हारी, से भाव विभोर होकर शुरू किया और कहा कि भारत नेपाल संबंध जगजाहिर है। यहाँ माता सीता जी के मायके से परंपरागत रूप में समुचित प्रचुर सामग्री अयोध्या लगातार भेजी जा रही है। नेपाल की गंडक नदी से लगभग तीन करोड़ वर्ष पुरानी सालिग्राम की शिलाएँ महत्वपूर्ण स्थानों से होते हुए अयोध्या भेजी गईं। पूरे नेपाल और वैश्विक परिदृश्य में अभूतपूर्व बड़भागी माहौल है। लोग आनंद में गोता लगा रहे हैं। उन्होने सभी पर प्रभु कृपा बरसती रहने की कामना की।

थाइलैंड से प्रो शिखा रस्तोगी ने आंखिन देखी थाई लोगों के अति उत्साह को वर्णनातीत बताया जहां अनेक सस्थाओं द्वारा खास दीपक, दीया, तेल और बाती आदि खैराती में बांटी जा रही है और बड़े पर्दों तथा मीडिया में सीधे जीवंत प्रसारण की व्यवस्था की गई है। विशेष रूप से रामलीलाएं हो रही हैं। प्राचीन काल से भारत थाइलैंड संबंध अन्योन्याश्रित हैं। यहाँ के राजा अपने को कुश का वंशज मानते हैं जो उनके नाम में भी निहित है। थाइलैंड में रामराज्य की धारणा बलवती है। यहाँ की अयुध्या से भारत की अयोध्या तक जाने हेतु अति आतुरता है। इसमें भारतीय दूतावास की बहुत बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका है। यहाँ डायस्पोरा राममय हो गया है।

ब्रिटेन से डॉ राजेन्द्र तिवारी ‘सूरज’ ने आयोजन से अभिभूत होते हुए कहा कि गत 14 वर्षों से भारत से बाहर होने पर भारत-भारतीयता के अद्भुत अनुभव हुए। सिंगापुर से ब्रिटेन तक सैकड़ों सत्संग आत्मसात किए। श्रीरामचारितमानस मनः मस्तिष्क में रम गया। देश के बाहर जागृति की अनुभूति हुई। हमारे बच्चों को डायस्पोरा से ही संस्कार मिले। धन्यास्तु ते भारत भूमि भागे चरितार्थ हुआ।

ब्रिटेन से पूर्व बी बी सी पत्रकार शिव कान्त शर्मा ने भाव विभोर होकर कहा कि भारतीय जनमानस के हर पहलू में राम हैं। उन्होने कहा कि हे राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है, अक्षरश: और भावार्थतः सत्य है। सुख-दुख, जप-तप, आशा-निराशा और सफलता-असफलता तथा मिलन के आदि क्षणों में हम एक या अनेक बार राम शब्द ही उच्चरित करते हैं। राम उदात्त मूल्यों का सार हैं। श्रीलंका और नेपाल गमन उनके प्रवासी रूप का द्योतक है। यह मानव रूप में मर्यादापुरुषोत्तम और देवत्व की गाथा है जो शब्दातीत है। विदेश में अयोध्या के दो रूप थाइलैंड और इंडोनेशिया में भी मिलते हैं। परहित सरिस धरम नहिं भाई। परपीड़ा सम नहिं अधमाई ॥ ऐसी सहज व्याख्या अन्यत्र दुर्लभ है। जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी, सशक्त सुभाषित है। दरअसल राम और भारतीय एक ही हैं ।

अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के महासचिव श्याम परांडे का अपनी अनुभवजन्यता से कहना था कि राम न केवल भारतवंशियों के बीच हैं बल्कि जहां भारतवंशी नहीं हैं वहाँ भी राम हैं। बाली, जकार्ता, कंबोडिया और वियतनाम आदि में नियमित रूप से रामलीला खेली जाती है। हमारे देश के आदिवासी क्षेत्रों के निवासियों में भी जाने-अनजाने किसी बहाने राम शब्द समाहित मिलता है। अब युग परिवर्तन की घड़ी आई है। शांतिपूर्ण ढंग से राममय संस्कृति के अनुसार रामलला के विराजित रूप का साक्षी होना सौभाग्य है। उन्होने अयोध्या और राम को सादर प्रणाम किया।

रूसी पत्रकार संघ से जुड़े डॉ रामेश्वर सिंह ने सांस्कृतिक वेषभूषा और आध्यात्मिक आसान से कहा कि राम कण कण में हैं। रूस में रामलीला का मंचन कराना और अयोध्या में 2018 से दीपोत्सव में आमंत्रण के पश्चात सहभागी होना मेरा सौभाग्य है। इसे देखने के पश्चात अनेक रूसी लोग शाकाहारी हो गए। गले मिलना आत्मीयता का परिचायक है। हम 20 मिनट में भी संक्षिप्त प्रभावोत्पादक रामायण दिखा देते हैं और परसादी भी दे देते हैं। बाइस जनवरी दूसरी दीवाली है।

अमेरिका की विदुषी डॉ नीलम जैन ने अपार हर्ष से अभिमत दिया कि अमेरिका में सैकड़ों कथावाचकों का पधारना सांस्कृतिक जागरूकता का परिचायक है। रामचरित भवन सहित अनेक संस्थाएं समय-समय पर विराट आयोजन करती हैं और राम काव्य पीयूष सदृश रचनाएँ सृजित कर वितरित की जाती हैं। हिन्दुत्व में भारतीयता का रस तत्व है। राम रामेति रामेति सब जगह जुड़ जाता है।

जापान से हर सप्ताह जुडने वाले पद्मश्री डॉ तोमियो मिजोकामी ने रामायण पुस्तक दिखाते हुए आनंदविभोर होकर कहा कि मैंने रामानन्द सागर के रामायण धारावाहिक की मदद से भाषा प्रयोगशाला में 14 वर्षों तक जापान में हिन्दी पढ़ाया और असीम शैक्षिक आनंद पाया। इससे आज भी बहुत खुश हूँ।

कार्यक्रम को सान्निध्य प्रदान करते हुए वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष एवं प्रवासी साहित्य मर्मज्ञअनिल जोशी ने सभी वक्ताओं के अनमोल वचनो के लिए कृतज्ञता प्रकट की। उन्होने कहा कि अखंड भारत क्षेत्र के डायस्पोरा में राम का अस्तित्व यत्र तत्र सर्वत्र है। जहां राष्ट्र राज्य की संकल्पना नहीं थी वहाँ भी प्रभाव था। सांस्कृतिक भारत की परिधि विराट है। राज काज से बाहर भी अहिल्याबाई होलकर जैसी रियासतों ने धर्म काज और परोपकार किया। सांस्कृतिक रूप से गिरमिटिया लोगों ने रामायण का ही सबल आधार पाया और निर्बल के बल राम, चरितार्थ हुआ। मॉरीशस की संसद ने रामायण महरानी का विशेष विधेयक पास किया। अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में भारतीय मूल के लोग शीर्षस्थ पद सुशोभित कर रहे हैं। अब युगों की प्रतीक्षा और प्रतिज्ञा पूरी हुई। राम के रूप में भारतीय संस्कृति के अटूट आस्था की प्रतिष्ठा है। उन्होने अपनी प्रभावशाली रचना में कहा कि घर बदला है, रंग बदला है, भारत का मन बदल रहा है।

आरंभ में सिंगापुर नेशनल यूनिवर्सिटी की हिन्दी-तमिल विभागाध्यक्ष एवं कार्यक्रम संयोजक प्रो संध्या सिंह ने कहा कि जो हृदय में रम जाए वह राम है। उन्होने प्राण प्रतिष्ठा खास को बदल रहा इतिहास बताया। उनका कहना था कि अयोध्या की छटा के समक्ष हर शब्द छोटा है। सिंगापुर में कल्पनातीत राममय माहौल है। रबींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय भोपाल के प्रवासी साहित्य एवं शोध के केंद्र के सलाहकार एवं इस कार्यक्रम के संयोजक डॉ जवाहर कर्नावट द्वारा ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ विषय प्रवर्तन और आत्मीयता पूर्वक स्वागत किया गया। उनके द्वारा समुचित भूमिका के साथ शालीनता, विद्वता और उदात्तता से सधा हुआ संचालन किया गया। उन्होने बारी-बारी वक्ताओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए बड़े प्रेम से आमंत्रित किया।

कार्यक्रम में अमेरिका से प्रो सुरेन्द्र गंभीर, नीलम जैन, यूके की साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर, शैल अग्रवाल, रूस से प्रो अल्पना दास, सिंगापुर से आराधना झा श्रीवास्तव, खाड़ी देश से आरती लोकेश, थाइलैंड से प्रो प्रिया, श्रीलंका से प्रो अतिला कोतलावल तथा भारत से नारायण कुमार, विजय मल्होत्रा, मुकुल जैन, प्रेम विरगो, बरुन कुमार, जयशंकर यादव, किरण खन्ना, रश्मि वार्ष्णेय, पी के शर्मा, गंगाधर वानोडे, विजय नगरकर, मिहिर मिश्र, राजेश गौतम, संध्या सिलावट, विवेकानन्द, हरी राम पंसारी, शशिकांत पाटील, अशोक कुमार सिंह, शुभम राय त्रिपाठी, संजय कुमार, अपेक्षा पाण्डेय, अनिल साहू, सरिता, स्वयंवदा, ऋषि कुमार, कृष्ण कुमार, विनय शील चतुर्वेदी एवं जितेंद्र चौधरी आदि सुधी श्रोताओं की गरिमामयी उपस्थिति रही हैं।

तकनीकी सहयोग का दायित्व डॉ मोहन बहुगुणा और श्री कृष्ण कुमार द्वारा बखूबी संभाला गया। इस अवसर पर अनेक शोधार्थी उपस्थित थे। प्रवासी भवन सभागार में अनेक गणमान्य मौजूद थे जिनमें समूचे कार्यक्रम के संरक्षक और समन्वयक अनिल जोशी भी मंचासीन थे। यह कार्यक्रम हाइब्रिड का अभिनव प्रयोग था।

अंत में चीन से प्रो विवेक मणि त्रिपाठी द्वारा आत्मीय भाव से माननीय अध्यक्ष, सम्माननीय वक्ताओं, संयोजकों, समन्वयकों, संचालकों, सहयोगियों, शोधार्थियों एवं सुधी श्रोताओं आदि को नामोल्लेख सहित धन्यवाद ज्ञापित किया गया। समूचा कार्यक्रम सौहार्द पूर्ण विलक्षण रामानुरागी माहौल में आत्मीयतापूर्वक सानन्द सम्पन्न हुआ। प्रभु की कृपा भयउ सब काजू। जनम हमार सुफल भय आजू।। की गहन अनुभूति परिलक्षित हुई।

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