विश्व भाषा अकादमी और सूत्रधार संस्था की संयुक्त मासिक गोष्ठी में पर्यावरण संरक्षण के इन मुद्दों पर डाला गया प्रकाश

हैदराबाद (रिपोर्ट सरिता सुराणा): विश्व भाषा अकादमी, भारत की तेलंगाना इकाई और सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, भारत हैदराबाद के संयुक्त तत्वावधान में 39 वीं मासिक गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया गया। संस्थापिका सरिता सुराणा ने सभी सम्मानित अतिथियों का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अहिल्या मिश्र को गोष्ठी की अध्यक्षता हेतु मंच पर आमंत्रित किया। श्रीमती शुभ्रा मोहन्तो की प्रकृति वन्दना से गोष्ठी का शुभारम्भ हुआ। यह गोष्ठी ‘पर्यावरण संरक्षण’ के लिए समर्पित थी। यह दो सत्रों में आयोजित की गई थी।

सरिता सुराणा ने कहा…

प्रथम सत्र में पर्यावरण प्रदूषण और उससे बचाव से सम्बन्धित विषय पर विस्तार से चर्चा की गई। विषय की प्रारम्भिक जानकारी देते हुए सरिता सुराणा ने कहा कि पर्यावरण का अर्थ है- हमारे आस-पास का वातावरण। पर्यावरण और प्राणी जगत एक-दूसरे पर अन्योन्याश्रित हैं। इसलिए यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम अपने चारों ओर के वातावरण को स्वच्छ रखें। हमारे देश में प्रकृति को देवी देवताओं की तरह पूजा जाता था। पहले क्योंकि शिक्षा का विकास इतना अधिक नहीं था इसलिए उसे धर्म से जोड़ दिया गया था। पर्वत, नदी, वायु, अग्नि और पेड़-पौधे सभी हमारे लिए पूजनीय थे और हम ज़रूरत के हिसाब से ही उनका उपयोग करते थे, लेकिन जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ इन सभी संसाधनों का अंधाधुंध प्रयोग करने से पर्यावरण संतुलन बिगड़ने लगा और उसके कारण हमें अनेक प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। आज जल, मृदा, वन, वन्य जीव और जैव विविधता संरक्षण की अति आवश्यकता है।

डॉ सुमन लता का वक्तव्य…

वरिष्ठ साहित्यकार एवं अनुवादक डॉ सुमन लता ने अपने वक्तव्य में कहा कि हमारी सभी प्राचीन सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारे ही हुआ है। उन्होंने पंचभूत लिंगों का उदाहरण देते हुए कहा कि जिस तरह पंच तत्वों का महत्त्व है, उसी तरह पंच महाभूतों की स्थापना भी महत्वपूर्ण है। चार आश्रमों में अरण्य काण्ड को सबसे अधिक महत्व दिया गया है। चाहे राम वनवास हो या पाण्डवों का वन गमन। सभी ने प्रकृति को बहुत महत्व दिया और उसका जरूरत के अनुसार ही दोहन किया। वैदिक ऋचाओं में पुष्पांजलि शब्द का प्रयोग किया गया है।

श्रीमती रिमझिम झा ने कहा…

कटक, उड़ीसा से कवयित्री एवं कहानीकार श्रीमती रिमझिम झा ने कहा कि घर परिवार को संभालने के लिए जिस तरह मुखिया का स्वस्थ रहना जरूरी है, उसी प्रकार पर्यावरण देश का मुखिया है और उसका स्वस्थ और स्वच्छ होना जरूरी है। हमें छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखना चाहिए जैसे घर में एसी का और बिजली के उपकरणों का कम से कम प्रयोग करें। गाड़ी का प्रयोग भी आवश्यकतानुसार ही करें। पानी उतना ही उपयोग में लें, जितनी जरूरत हो।

चंद्र प्रकाश दायमा ने कहा…

जयपुर, राजस्थान से वरिष्ठ साहित्यकार चंद्र प्रकाश दायमा ने कहा कि सनातन धर्म में धर्म के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण सिखाया गया था। लोग उसे सच्चे अर्थों में अपने जीवन में अपनाते थे। आज़ पूजा के समय वृक्ष की टहनियां उखाड़ तो लेते हैं लेकिन नए पौधे नहीं लगाते इसलिए प्राकृतिक असंतुलन बढ़ता जा रहा है।

डॉ आशा गुप्ता आशु ने कहा…

अंडमान निकोबार द्वीप समूह से वरिष्ठ रंगमंच कलाकार और कवयित्री डॉ आशा गुप्ता आशु ने कहा कि पहले आंगन की थोड़ी ज़मीन कच्ची रखी जाती थी लेकिन अब पूरा पक्का मकान बनाया जाता है। कहीं से भी धरती में पानी जाने की जगह नहीं छोड़ी जाती, यह ग़लत है।

डाॅ. अहिल्या मिश्र ने कहा…

अध्यक्षीय उद्बोधन में डाॅ. अहिल्या मिश्र ने कहा कि आज ओज़ोन परत का दिन-प्रतिदिन क्षरण होता जा रहा है, ब्लैक होल का बढ़ना वैज्ञानिकों के लिए चिन्ता का विषय बन गया है। हमारे चारों ओर वन सम्पदा की जगह कंक्रीट का जंगल खड़ा हो गया है। प्राचीन काल में राम-सीता और लक्ष्मण द्वारा चित्रकूट में निवास के समय फल-सब्जी और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग जरूरत के अनुसार ही किया जाता था।

उन्होंने जल के उपयोग से सम्बन्धित प्राकृतिक प्रक्रिया के बारे में, प्राचीन काल से चली आ रही परम्पराओं के बारे में और वर्तमान में प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान की। उन्होंने वर्तमान में हो रहे जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण पर चिन्ता जताते हुए इनसे बचने के उपायों के बारे में भी बहुत सार्थक और सारगर्भित बातें बताई। उन्होंने परिचर्चा के लिए उत्कृष्ट विषय चयन हेतु दोनों संस्थाओं को बधाई दी और सभी वक्ताओं के वक्तव्य की प्रशंसा की। श्रीमती आर्या झा ने प्रथम सत्र का धन्यवाद ज्ञापित किया।

द्वितीय सत्र में काव्य गोष्ठी

तत्पश्चात् द्वितीय सत्र में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें उपस्थित सभी साहित्यकारों ने प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित उत्कृष्ट रचनाओं का पाठ किया। जिनमें श्रीमती भावना पुरोहित, श्रीमती आर्या झा, चन्द्र प्रकाश दायमा, बिनोद गिरि अनोखा, डॉ आशा गुप्ता आशु, श्रीमती रिमझिम झा और सरिता सुराणा ने काव्य गोष्ठी में काव्य पाठ किया। अन्त में अध्यक्षीय काव्य पाठ करते हुए डॉ अहिल्या मिश्र ने अपनी एक सशक्त रचना- पत्थर की भी अपनी एक कहानी है का ओजस्वी वाणी में पाठ किया और सभी सदस्यों के काव्य पाठ की मुक्त कंठ से प्रशंसा की।

इस गोष्ठी में डाॅ आशा मिश्र, डॉ स्वाति गुप्ता, श्रीमती तृप्ति मिश्रा और श्रीमती शुभ्रा मोहन्तो की गरिमामय उपस्थिति रही। श्रीमती रिमझिम झा ने द्वितीय सत्र का आभार ज्ञापन किया। बहुत ही उल्लासपूर्ण वातावरण में गोष्ठी सम्पन्न हुई।

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