क्रिएटिव माइंड साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था: शिक्षक-दिवस पर ‘गुरू महिमा’ प्रतियोगिता

बेंगलुरू (अमृता श्रीवास्तव की रिपोर्ट): क्रिएटिव माइंड साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था ने शिक्षक-दिवस के उपलक्ष्य में क्रिएटिव लाइव पर ‘गुरू महिमा’ नामक प्रतियोगिता आयोजित की। इसका उद्देश्य जीवन में गुरुओं के महत्व को समझना और जीवन पथ पर चलते हुए गुरुओं के सिखाये गये सबकों को जीवन का आधार बनाना रहा है। देश के विभिन्न शहरों से जुड़े रचनाकारों ने अपने संस्मरणों में अपने गुरुओं को याद किया। यह सुनकर सभी भाव विभोर हो गये। ऑनलाइन परिचर्चा को दो भागो में बांटा गया।

प्रथम भाग में साहित्यिक पेज पर रचनाकारों से गुरु महिमा से जुड़े उनके संस्मरण मांगे गये। द्वितीय भाग में 12 सितम्बर को ऑनलाइन परिचर्चा के लिए चुने हुए रचनाकारों को आमंत्रित किया गया। गुरुओं का मान समझना गोष्ठी का परम उदेश्य रहा है। साथ ही समकालीन परिस्थिति में गुरुओं का महत्व को समझना और उनकी शिक्षाओं को आत्मसात करना रहा है। इसके अलावा परिचर्चा में गुरुओं को याद किया गया। उनके शिक्षा का रचनाकारों के वर्तमान जीवन पर असर और दर्शको के साथ किया गया उनका वैचारिक आदान प्रदान सभी को भावुक कर देने वाला रहा है। इस परिचर्चा का संचालन डॉ यास्मीन अली ने किया है।

जब स्लैम बुक देता है उदासी में ऊर्जा

नागपुर की अपर्णा जायसवाल मानती है कि जीवन का हर एक पल गुरु है, जो सबको जीने का नया ढंग सिखाता है। उन्होंने अपने कॉलेज के दिनों को याद किया। एमएससी फायनल ईयर केमेस्ट्री के वक्त की बतलाया कि तब उन दिनों विधार्थी अपनी-अपनी स्लैम बुक लेकर टीचरों के पास जाते और उनसे गुड विश के नोट लेते थे। अपर्णा जी के इनओर्गनीक सर सेनगुप्ता जी और ओर्गनीक सर पान्डे जी बहुत अच्छे मित्र थे और उनका केबिन भी साथ में ही था। दोनों सर ने सभी के स्लैम बुक पर एक ही वाक्य लिखा- “गुड लक फ़ॉर यौर फ्युचर”। जब उन्होंने अपनी स्लैम बुक दी थी तो दोनों ही सर मुस्कुराये और सेनगुप्ता सर ने बंगाली में लिखा और कहा पान्डे सर ने यही चीज हिन्दी में लिखी है, पढ़ लेना और उसे हमेशा याद रखना। अकेले में जब उन्होंने पान्डे सर ने लिखा हुआ पढ़ा तो उन्होंने लिखा था- “तुम्हें हम छह साल से जानते है और हमेशा तुम्हें भीड़ में नहीं अकेले ही देखा। फिर भी तुम खुश रहती हो हमेशा ऐसे ही रहना क्योंकि तुम्हारी मुस्कुराहट ही तुम्हारी ताकत है और तुम्हारे आस-पास के लोगों को पाजिटिव एनर्जी देता है।” आज भी जब कभी वो उदासी से घिर जाती हैं तो उस स्लैम बुक को पढ़कर फिर से मुस्कुरा देती हैं और जीवन संघर्ष पथ पर नयी ऊर्जा के साथ फिर से चल पड़ती हैं |

जब गुरु ने ली निस्वार्थ भाव से जिम्मेदारी

उड़ीसा से जुडी रचनाकार अरुणा डोरा ने गुरु का जिक्र करते हुए अपने चौथी कक्षा से जुड़े संस्मरण को याद किया। अक्टूबर के महीने में उनके पिता के नयी जगह ट्रांसफर होने की वजह से उन्हें नई जगह, नया विद्यालय, नया वातावरण से समन्वय बिठाने में खासी मुश्किल का सामना करना पड़ा था। उन दिनों दिसम्बर में वार्षिक परीक्षाएं हुआ करती थी। नयी जगह और नए माहौल से संघर्ष करती अरुणा के नवंबर के मासिक परीक्षा में नंबर कम आये। उन्हीं दिनों कक्षा की शिक्षिका शीला मैडम ने उनके शैक्षणिक प्रगति की जिम्मेदारी आगे बढ़कर अपने सर ले ली। स्कूल के बाद एक घंटा वो उन्हें अपने पास रखकर पढ़ाया करती थी। सुबह भी आधा घंटा पहले विद्यालय आकर उन्हें पढ़ाती थी। अरुणा मानती है कि एक शिष्य के प्रति, गुरु होने के नाते, शीला मैडम की निष्ठा, परिश्रम, निस्वार्थ भाव और तत्परता आज भी उन्हें सभी से अलग करती है। उन्हें लगता है ऐसा भाव शायद ही आज कहीं देखने को मिले।

एक कप चाय के बदले मिला अनमोल ज्ञान

सीतापुर से जुडी कीर्ति मेहरोत्रा ने गुरु से जुडी अपनी यादें साझा करते हुए बताया कि उनके मकान मालिक कविवर आत्म प्रकाश शुक्ला प्रख्यात कवि के साथ साथ अंग्रेजी के वक्ता थे। ग्यारहवीं कक्षा में जब उन्हें अंग्रेजी विषय में ट्यूशन की जरूरत पड़ी तब कीर्ति के पापा ने सलाह दी कि “बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा” तुम्हारे तो घर में ही इतने प्रतिभावान अध्यापक मौजूद हैं। तुम्हें तो कहीं जाने की जरूरत ही नहीं है। कीर्ति के पापा कविराज को गुरू कहते थे। उन्होंने बड़े प्यार से कीर्ति को कहा कि गुरू से अच्छी अंग्रेजी तुम्हें कोई नहीं पढ़ा सकता और वो चाय के बहुत बड़े शौकीन हैं। बस रोज एक कप चाय बनाओ और पहुंच जाओ उनके पास। धुन की पक्की कीर्ति ने भी अपने गुरु का दिल जितने का ठान लिया। रोज सुबह पांच बजे वह एक कप चाय के साथ गुरु जी के पास पहुंच जाती। उस समय के अध्यापक ट्यूशन की इतनी ज्यादा फीस लेते थे। पर उनके गुरु ने सिर्फ गुरूदक्षिणा में एक कप चाय के बदले उन्हें वो अनमोल ज्ञान दिया जो आजीवन उनके साथ है।

गुरु हैं ज्ञान के महाकोश के अद्भुत प्रकाशपुंज

लख़नऊ से जुडी पारूल कंचन ने अपनी काव्यात्मक शैली में गुरु को ज्ञान के महाकोश का अद्भुत प्रकाशपुंज माना है। उन्होंने गुरु महिमा को इस तरह बताया कि बिना गुरू के धरा पर ईश्वर भी ना टिक नहीं पाएंगे। गुरू का साथ जीवन का आरंभ है। गर्व और अहंकार का सुक्ष्मतम भेद मनुष्य को गुरु ही समझा पाता है। पारुल ने अपनी बात रखते हुए कहा कि गुरु का महत्व बहुत बड़ा है। गुरूकृपा से जीवन उत्सव के समान हो जाता है और गुरु ज्ञान बिना जीवन संघर्ष से कम नहीं है।

गुरु महिमा का शब्दों में बयान नामुमकिन

बड़ोदरा से जुडी मंजीता राजपूत ने गुरु के प्रति भाव व्यक्त करते हुए कहा कि वैसे तो गुरु शब्द बहुत छोटा है पर गुरु महिमा को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। गुरु के रूप में मंजीता राजपूत ने मां-पिता को प्रथम गुरु माना। जीवन में अनुशासन का ज्ञान देने वाले, ज्ञान के भण्डार शिक्षकों का मंजीता राजपूत ने नमन किया। जीवन के संघर्ष पथ के लिए मंजीता ने जीवन को समय को सबसे बड़ा गुरु माना और माना कि हर अनुभव से सीखते हुए जीवन पथ पर वो कभी हार नहीं मानेगी और सदैव एक अच्छे छात्रा की तरह अपने हर उस गुरु के शिक्षा का अनुपालन करेंगी जिनसे उन्हें ज्ञान मिल रहा हो। गुरू की महिमा सदा से अपरम्पार रही है। सच्चा गुरू वही है जो अपने शिष्य को उसकी लक्ष्य प्राप्ति के लिए सही निर्देशन दे और सच्चा शिष्य भी वही है जो दिखाए गये मार्ग का अनुकरण करे।

ऑनलाइन क्लास

परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए डॉक्टर यास्मीन अली ने महामारी में बच्चों के लिए चल रहे ऑनलाइन क्लास के नकारात्मक और सकारात्मक प्रभावों पर भी उपस्थित रचनाकारों से अपने विचार रखने का आग्रह किया। अरुणा डोराने माना कि नया तरीका होने के वजह से ऑनलाइन क्लास लेने के लिए शिक्षक/शिक्षिका आम दिनों से ज्यादा तैयारी करते हैं। बच्चों का पढ़ाई पर ध्यान भी लगातार नहीं बना पाते है| शायद ऑनलाइन क्लास इतने प्रभावी नहीं भी हो पा रहे हैं। परन्तु परिचर्चा में माना गया कि महामारी के काल में बच्चों को पढ़ाई से जोड़े रहने का इससे बेहतर और कोई उपाय भी नहीं है। डॉक्टर यास्मीन के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

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