इतिहास साक्षी है, भारत अपनी भाषा, संस्कृति, कला तथा विज्ञान के लिए जाना जाता रहा है। भारत की विशेष पहचान थी। लेकिन ऐसा क्या हुआ कि हमारी जन्मभूमि भारत इन्हीं क्षेत्रों में पिछड़ गया? हाँ, यह सही है कि हम आज भी हमारी संस्कृति-कला के कारण कभी चर्चा तो कभी सम्मान के पात्र बनते हैं। लेकिन भाषा और विज्ञान के क्षेत्र में पूर्व के समान ख्याति पुनः प्राप्त करने हेतु सशक्त प्रयास करने की आवश्यकता है। यह प्रयास हिंदी के माध्यम से सफल हो सकता है। गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर ने कभी कहा था – हिंदी भारतीय भाषाओं की मध्य मणि है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि हिंदी भारत के जीवन मूल्यों और संस्कारों की संवाहक है। यह भारत के जनमानस के सामासिक संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है।
भाषा ऐसा प्रमुख माध्यम है, जिस पर राष्ट्र की अस्मिता आश्रित होती है। अपनी भाषा व शिक्षा पद्धति के लिए भारत विश्व प्रसिद्ध रहा है। भाषिक एवं सांस्कृतिक रूप से भारत एक बेहद समृद्ध राष्ट्र है। भारत की विभिन्न भाषाएँ भले ही अलग-अलग सामाजिकता का वहन करती हैं किंतु सांस्कृतिक रूप ये सभी एक-दूसरे की ताकत हैं। भारतीय भाषाओं के इस विविधताओं में हिंदी को एक सेतु के रूप में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। यही कारण है कि संविधान निर्माताओं ने सर्वसम्मति से इसे भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकृत दी थी। देश के अधिकांश हिस्सों में हिंदी बोली और समझी जाती है। राजभाषा के रूप में स्थापित किए जाने के बाद कार्यालयी कामकाज के लिए इसे लोकप्रिय बनाने हेतु राजभाषा विभाग द्वारा विविध योजनाएँ जारी की गई। कर्मचारीगण उन योजनाओं का लाभ उठाते हुए राजभाषा हिंदी में पारंगत होने लगे हैं। इससे कार्यालयों में हिंदी के लिए सकारात्मक वातावरण बनता जा रहा है। निर्धारित लक्ष्य की ओर हम बढ़ रहे हैं।
मिधानि ने राजभाषा को प्रारंभ से ही पूर्ण हृदय के साथ अपनाया है। अब तक मिधानि की राजभाषा कार्यान्वयन समिति की 156 बैठकें हो चुकी हैं। मिधानि के अधिकतर कर्मचारी हिंदी में कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त कर चुके हैं, जिस कारण मिधानि को भारत के गजट में अधिसूचित किया जा चुका है। इससे हम हिंदी को अपनी कार्य-संस्कृति का अभिन्न अंग बनाने में सफल हुए हैं। राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार की सभी योजनाएँ और प्रशिक्षण कार्यक्रम मिधानि में नियमित रूप से लागू किए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त, मिधानि प्रबंधन ने भी अपनी ओर से कई ऐसी योजनाओं का कार्यान्वयन किया है जो उद्यम में राजभाषा के प्रचार-प्रसार बल प्रदान कर रही हैं। जैसे हिंदी दिवस के अवसर पर आयोजित प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प प्रदर्शन करने वाले विभाग को रोलिंग ट्रॉफी से सम्मानित करना और तकनीकी लेखन को प्रोत्साहित करने के लिए मिधानि राजभाषा गौरव पुरस्कार प्रदान करना, हिंदी में उत्कृष्ट अंक प्राप्त करने वाले स्कूल के छात्रों को पुरस्कार आदि।
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मेरा व्यक्तिगत मत है कि भाषा के माध्यम से कोई भी राष्ट्र उन्नति के पथ पर आगे बढ़ सकता है। विश्व के विकसित देशों ने अपनी भाषा के बल पर ही विकसित राष्ट्र होने का गौरव प्राप्त किया है। जब हम सभी हिंदी भाषा का अपने कार्यालयीन कार्यों में अधिक-से-अधिक प्रयोग करेंगे, तकनीकी के क्षेत्र में प्रयोग करेंगे तब भारत की भी उन विकसित राष्ट्रों की कतार में शामिल होने की संभावनाएँ बढ़ जाएँगी। इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका केंद्र सरकार के कार्यालयों में कार्यरत कर्मचारियों की होगी। केंद्र सरकार के कार्यालयों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपने कार्यालयी कार्यों में राजभाषा का अधिकतम प्रयोग करें और उसका प्रचार-प्रसार भी करें ताकि हिंदी राजभाषा से आगे बढ़कर अंतरराष्ट्रीय भाषा बनने की ओर अग्रसर हो।
प्रत्येक संगठन में विभिन्न प्रांतों और भाषा समुदायों के लोग अपनी सेवाएं प्रदान करते हैं। राजभाषा के रूप में हिंदी कार्यस्थल पर बहुभाषी जनशक्ति के मध्य संप्रेषण का एक प्रमुख माध्यम बनी है। यह हिंदी भाषा को किसी भी भाषिक वर्ग द्वारा सहजता से आत्मसात कर पाने की वजह से ही संभव हो पाया है। वर्तमान समय में शिक्षा, शोध, ज्ञान-विज्ञान, वेब और सोशल मीडिया हर जगह हिंदी अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा रही है। यह हिंदी को अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करने के प्रयासों के लिए शुभ संकेत है।
– डॉ संजय कुमार झा अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक, मिधानि