आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने अदालती अवमानना मामले में अधिकारियों को सुनवाई जेल की सजा

अमरावती: आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट (Andhra Pradesh High Court) ने गुरुवार को चार सेवारत आईएएस अधिकारी और एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी को अदालती अवमानना के मामले में दोषी ठहराते हुए जेल की सजा सुनाई है। एपी हाई कोर्ट ने 10 फरवरी 2017 के आदेश की ‘जानबूझकर अवज्ञा’ करने के लिए दोषी ठहराते हुए इन अधिकारियों को अलग-अलग जेल की सजा सुनायी है।

मिली जानकारी के अनुसार, मुख्य सचिव आदित्य नाथ दास सहित तीन अन्य आईएएस अधिकारियों को मामले में छोड़ दिया गया। क्योंकि उनके खिलाफ आरोप खारिज कर दिया गया था। दोषी पाये गये आईएएस अधिकारियों में प्रधान वित्त सचिव शमशेर सिंह रावत, मुख्यमंत्री के अतिरिक्त सचिव रेवू मुत्याला राजू, एसपीएस नेल्लोर जिलाधीश के वी एन चक्रधर बाबू और पूर्व जिलाधीश एम वी शेषगिरि बाबू शामिल हैं।

मुत्याला राजू ने पहले एसपीएस नेल्लोर जिले के जिलाधीश के रूप में भी काम किया था। साल 2017 में तत्कालीन प्रधान सचिव (राजस्व) रहे सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी मनमोहन सिंह को भी मामले में दोषी ठहराया गया है।

न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी देवानंद ने एसपीएस नेल्लोर जिले की एक किसान ताल्लापाका सावित्रम्मा द्वारा दायर एक अवमानना ​​याचिका पर यह फैसला सुनाया। रावत और सिंह को एक महीने की कैद की सजा सुनाई गई है। जबकि अन्य को दो सप्ताह कैद की सजा सुनाई गई हैं। इन सभी पर एक हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है।

याचिकाकर्ता के वकील सी वाणी रेड्डी के अनुसार, न्यायमूर्ति देवानंद ने सजा को एक महीने के लिए स्थगित करने का आदेश दिया। ताकि दोषी अपील के लिए कोर्ट में याचिका दायर किया जा सकें। सावित्रम्मा ने 2017 में उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की थी। दायर याचिका में कहा गया था कि उसकी तीन एकड़ जमीन राजस्व अधिकारियों ने ले ली और बिना किसी नोटिस या मुआवजे के भुगतान के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान को आवंटित कर दी है।

उन्होंने कहा कि दिसंबर 2016 में राजस्व अधिकारियों ने उन्हें जमीन के लिए मुआवजा देने का वादा किया था और इसकी सूचना लोकायुक्त को भी दी गई थी। उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ए राजशेखर रेड्डी ने 10 फरवरी 2017 को याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया था और संबंधित राजस्व अधिकारियों को तीन महीने के भीतर मुआवजा देने का निर्देश दिया था। राजस्व अधिकारियों द्वारा अदालत के आदेश को लागू करने में विफल रहने के बाद 2018 में सावित्रम्मा ने उच्च न्यायालय में अवमानना ​​का मामला दायर किया था।

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