हैदराबाद : कादंबिनी क्लब हैदराबाद की 351वीं मासिक गोष्ठी की सर्वत्र चर्चा हो रही है। वक्ताओं ने ऐसे गंभीर विषय को चुना है, जो चर्चा का कारण बना है। गौरतलब है कि कादंबिनी क्लब हैदराबाद की 351वीं मासिक गोष्ठी का आयोजन गूगल मीट पर प्रो ऋषभदेव शर्मा (पूर्व अध्यक्ष उच्च शिक्षा शोध संस्थान दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा हैदराबाद) की अध्यक्षता में सफलतापूर्वक संपन्न हुई। प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए डॉ अहिल्या मिश्र (क्लब अध्यक्ष) एवं मीना मुथा (कार्यकारी संयोजिका) ने आगे बताया कि कार्यक्रम का शुभारंभ शुभ्रा महंतों द्वारा निराला रचित सरस्वती वंदना की प्रस्तुति के साथ हुआ।
कादम्बिनी क्लब 28वें वर्ष में पदार्पण
इस अवसर पर मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता के रूप में प्रख्यात व्यंग्यकार डॉ प्रेम जनमेजय दिल्ली से उपस्थित हुए एवं बंगलोर से पधारी डॉ उषा रानी राव (कवयित्री एवं लेखिका), डॉ राज लक्ष्मी कृष्णन (कवयित्री एवं लेखिका चेन्नई) तथा नागपुर से पधारे नरेंद्र परिहार मंचासीन हुए। डॉ अहिल्या मिश्र ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि कादम्बिनी क्लब ने अपनी निरंतरता बरकरार रखते हुए 28वें वर्ष में पदार्पण कर लिया है। अपने साहित्यिक यात्रा में सभी का साथ पाकर ही संस्था इस मुकाम पर पहुंच पाई है। निजी कारणों से कार्यकारी संयोजक मीना मुथा एवं प्रवीण प्रणव की अनुपस्थिति आज क्लब महसूस कर रहा है। उन्होंने मुख्य अतिथि एवं विशेष अतिथियों को क्लब के संबंध में जानकारी देते हुए क्लब की उपलब्धियों की चर्चा की।
सूर्य को रोशनी दिखानेवाली बात
डॉ प्रेम जनमेजय का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि इनका परिचय कराना सूर्य को रोशनी दिखानेवाली बात होगी। व्यंग्य को पुनर्स्थापित कर इन्होंने व्यंग्य की दुनियाँ में एक नया कीर्तिमान हासिल किया है। यह क्लब का सौभाग्य है कि इन्होंने हमारा निमंत्रण स्वीकार किया। इस साहित्यिक परिवार में आपको पाकर हमें हार्दिक प्रसन्नता हो रही है और आशा है कि यह यूं ही बना रहेगा। उन्होंने विशेष अतिथियों के स्वागत में भी शब्दों के फूल अर्पण किए।
व्यंग्य यात्रा
अवधेश कुमार सिंहा (नई दिल्ली) ने मुख्य अतिथि का परिचय देते हुए कहा कि प्रेमजनमेजय जी किसी परिचय के मोहताज नहीं है। व्यंग्य जैसी विधा को इन्होंने एक नया आयाम दिया है। व्यंग्य संकलन के साथ इनके नाटक, बाल साहित्य एवं आलोचना आदि प्रकाशित है। वर्तमान में ये व्यंग्य यात्रा के रूप में सम्पादन का कार्य कर रहें है। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई सम्मान प्राप्त कर चुके हैं। वे इनकी विशेषता है कि ये तथ्य के अनुरूप भाषा बदल देते हैं। व्यंग्ययात्रा के माध्यम से या यूं कहे कि इनके प्रयास से साहित्य की वह विधा पुनः पहचान पा रही है जिसे कभी हाशिए पर धकेल दिया गाय था। वे एक कवि भी है।
वयंग्य के विभिन्न पहलू
प्रथम सत्र में ‘व्यंग्य के दुर्गम पथ’ विषय पर डॉ प्रेम जनमेजय ने अपने संबोधन में कहा कि व्यंग्य मनुष्य के बौद्धिक चेतना का उद्घोष है। इसके दुर्गम पथ पर बात करना कठिन होता है। इन दिनों व्यंग्य खूब प्रकाशित हो रही है परंतु इसकी गुणवत्ता में कमी आई है। आलोचना व्यंग्य का सबसे महत्वपूर्ण हथियार है। यह दुर्गम पथ इसलिए है कि हम दूसरों की आलोचना तो करते हैं और अपनी रचना को नहीं देख पाते हैं। व्यंग्य में चिंतन और विचार दोनों का महत्व है। व्यंग्य को नष्ट होने से रोकने के लिए इसपर विमर्श करना अति आवश्यक है। व्यंग्य के विभिन्न पहलुओं पर उन्होंने सारगर्भित और ग्रहणीए विचार रखे।
शंकाओं का निवारण
तत्पश्चात कार्यक्रम से जुड़े सदस्यों ने प्रश्नोत्तर के माध्यम से व्यंग्य से जुड़ी शंकाओं का निवारण किया। डॉ उषा रानी राव ने पूछा कि व्यंग्य लेखकों में स्त्री रचनाकार कहाँ खड़ा उतरती है। अवधेश सिन्हा एवं डॉ अहिल्या मिश्र की शंकाओं का निवारण भी मुख्य वक्ता ने किया।
व्यंग्य रचना
अध्यक्षीय टिप्पणी में प्रो ऋषभदेव शर्मा ने कहा कि व्यंग्य व्याख्याता के रूप में हम सब प्रेम जनमेजय जी को जानते हैं। आज इन्होंने हमें एक सूत्र दे दिया है कि हमारी व्यंग्य रचना हमे बेचैनी पैदा करती है या नहीं और इसके लिए भाषा का उचित प्रयोग करना जरूरी है। व्यंग्य का पथ संविद्ध चित्त विचलन है अतः यह एक दुर्गम पथ है इसमें कोई संदेह नहीं है।
दूसरा सत्र
दूसरे सत्र में समसामयिक विषयों पर केंद्रित कवि गोष्ठी हुई जिसमें कविता, गीत, गजल, लघु कथा, आदि विधाओं को समाविष्ट करते हुए रसपूर्ण काव्य पाठ का उपस्थित सदस्यों ने आनंद लिया। कवि गोष्ठी का शुभारंभ विशेष अतिथि डॉ उषा रानी राव की रचना ‘अपराधी स्त्रियाँ’ के साथ हुआ। अफगानिस्तानी स्त्रियों की पीड़ा को दर्शाती इस कविता की सराहना सभी सदस्यों ने किया। विशिष्ट अतिथि डॉ राज लक्ष्मी कृष्णन (चेन्नई) ने ‘नारी तू दुर्गा का रूप है’ कविता सुनाई।
काव्य पाठ
इनके अतिरिक्त काव्य पाठ में इसमें शिल्पी भटनागर, भावना पुरोहित, विनीता शर्मा, डॉक्टर आशा मिश्रा ‘मुक्ता’, दीपक दीक्षित, दर्शन सिंह, जी परमेश्वर, संपत देवी मुरारका, विनोद गिरी अनोखा, सुनीता लुल्ला, डॉ अहिल्या मिश्र, डॉ प्रेम जनमेजय, अवधेश कुमार सिंहा प्रो ऋषभदेव शर्मा, रमाकांत श्रीनिवास, रवि वैद, चंद्रप्रकाश दायमा, दैव्य शक्तियां, आशीष नैथानी (मुंबई), नीरज त्रिपाठी, संतोष रजा, विनोद गिरी अनोखा आदि सदस्यों ने भाग लिया। प्रो ऋषभदेव शर्मा ने अध्यक्षीय काव्य पाठ किया।
काव्य के विभिन्न रंग
डॉ प्रेम जनमेजय ने क्लब की गतिविधि को जानकर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि क्लब से जुड़कर मैं अपने आपको समृद्ध महसूस कर रहा हूँ। उन्होंने सभी कवियों के काव्य प्रस्तुति की सराहना किया और कहा कि यहाँ कविताओं के माध्यम से काव्य के विभिन्न रंग बिखेरे गए हैं तथा सभी रंग अपने आप में अमूल्य है। इस गोष्ठी में आकर मुझे बड़ी आनंद की अनुभूति हो रही है और आमंत्रित करने के लिए उन्होंने डॉ अहिल्या मिश्र को शुक्रिया अदा किया। गोष्ठी में आद्या शिवपुरम, सुरभि दत्त, किरण सिंह, डॉ रमा द्विवेदी, प्रवीण प्रणव, डॉक्टर सुरेश कुमार मिश्रा, सरिता सुराना जैन, डॉ अर्चना झा, राजेन्द्र कुमार, श्री हरिवाणी (मुंबई) आदि की भी प्रस्तुति समय समय पर बनी रही।
डॉ आशा मिश्रा का आग्रह
दोनों सत्रों का संचालन डॉ आशा मिश्रा ने किया। अवधेश कुमार सिंहा ने उपस्थित अतिथि गण, क्लब अध्यक्षा डॉ अहिल्या मिश्र व कार्यक्रम संचालन कर्ता डॉ आशा मिश्रा के प्रति आभार व्यक्त किया तथा इसी प्रकार साहित्य से जुड़े रहने का आग्रह किया।