भारत की यह विशेषता है कि हमारे यहां हर तिथि और दिन काफी महत्वपूर्ण होते हैं। वैसे देखा जाए तो ये वैज्ञानिक सोच पर भी आधारित होते हैं। हर विशेष दिन को हम पुण्य मानकर पूजा अर्चना से जोड़कर जीवन में एक संचार भरते हैं। यह हमारी परंपरा और संस्कृति की विशेषता है। इसी श्रृंखला में आंवला नवमी का विशेष महत्व है। कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि को आवंला नवमी मनाई जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इसी दिन द्वापर युग शुरू हुआ था। कृष्ण द्वारा कंस का वध किया गया और धर्म की स्थापना हुई थी।
अक्षय नवमी यानी आंवला नवमी इस साल 10 नवंबर को मनाई जाएगी। यह पर्व देवउठनी एकादशी से दो दिन पूर्व मनाया जाता है। उसके पीछे एक कथा का वर्णन मिलता है। एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी पर पधारी और रास्ते में उन्हें भगवान विष्णु और शिव की पूजा करने की इच्छा हुई। तब उन्होंने सोचा कि दोनों की एक साथ पूजा कैसे हो सकती है। तभी उनको ध्यान में आया कि तुलसी और बेल के गुण एक साथ आवंले में होते हैं। तब उन्होंने यह सोच कर कि तुलसी श्री हरि विष्णु को बहुत पसंद है और बेल भगवान भोलेनाथ को बहुत पसंद है। अत: विष्णु और भोलेनाथ ने आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक मानकर आवंले वृक्ष की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु और शिव दोनों प्रकट हो गए और उन्होंने आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर मां लक्ष्मी द्वारा बनाया गया भोजन किया।
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कहा जाता है कि तभी से आवंले के वृक्ष की पूजन परंपरा चली आ रही है। यह भी प्रचलित है कि आवंले के पेड़ में भगवान विष्णु का निवास होता है। इसीलिए उस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन बनाना, खाना व पूजा करना बहुत ही लाभदायक माना गया है। पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि यह पवित्र फल खाने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाते हैं। उनकी आयु बढ़ती है और धर्म संचय होता है। उनको ऐश्वर्य प्राप्त होता है। अनजाने में किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं भक्तों का जीवन खुशहाल रहता है।
आंवले में अनेक महत्वपूर्ण विटामिंनस, खनिज होते हैं, जो हमारे इम्यूनिटी सिस्टम को और पाचन तंत्र को मजबूत करता है। इसमें विटामिन सी भरपूर मात्रा, एंटीऑक्सीडेंट, आयरन कैल्शियम, पोटेशियम, एंथोसाइनिन के तत्व मौजूद होते हैं। आंवले के सेवन करने से कब्ज और दस्त में आराम मिलता है। वही आंखों की रोशनी बढ़ती है और बालों में चमक आती है। आंवले को अमृता फल भी कहा जाता है।
के पी अग्रवाल, हैदराबाद