दीपावली पर्व पांच दिन का माना जाता है। इसका प्रारंभ धनतेरस से होता है। इसको धन्वंतरि त्रयोदशी भी कहते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। यह त्यौहार कुबेर और आयुर्वेद के देवता भगवान धन्वंतरि के लिए मनाया जाता है। हर त्योहार अपनी विशेष पहचान बनाए हुए होता है। किसी खास दिन कुछ चीजों को खरीदने की परंपरा चली आ रही है। जिससे एक दिन खास सामान की अच्छी तरीके से बिक्री हो सके और वह सामान जरूरत के साथ-साथ दुकानदार वर्ग को भी लाभ पहुंचा सके, जिससे वह अपना व्यापार में संतुलन बनाए रखें। जिसमें सोना चांदी और पीतल खरीदना बहुत ही लाभदायक बताया गया है।
इस अवसर पर झाड़ू और धनिया भी खरीदना शुभ होता है। हर शख्स अपनी हैसियत के हिसाब से धनतेरस पर कुछ न कुछ बाजार से अवश्य खरीदता है। जिसकी पूजा दीपावली वाले दिन की जाती है, माना जाता है कि खरीदारी करने से कई प्रकार के दोष मिट जाते हैं तथा आर्थिक समस्या का समाधान होता है। इस त्यौहार पर धन की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है, जिससे घर में सुख और समृद्धि बनी रहती है तथा धन हमेशा बना रहता है। इस दिन नए कपड़े और चांदी का सिक्का खरीदने की परंपरा चली आ रही है। घर की साफ सफाई की जाती है तथा घर को सजाया जाता है। जिसमें रंग बिरंगी लाइट, दीये, मोमबत्ती और रंगोली सजाई जाती है।
इस दिन भगवान धन्वतरि जो आयुर्वेदिक उपचार के देवता हैं। वह समुद्र मंथन से अमृत से भरा हुआ कलश लेकर प्रकट हुए। तभी से आयुर्वेदिक उपचार पद्धति के देवता धनोत्तरी जयंती के नाम से भी कहा जाता है। स्वास्थ्य को सबसे बड़ा महत्व दिया गया है। इसलिए धनत्वरि को भगवान विष्णु का अंश माना जाता है और उनके द्वारा ही दुनिया में चिकित्सा विज्ञान का प्रचार हुआ। वैद्य समाज इस दिन को धनत्वरि जयंती के रूप में मनाते हैं। यह भी परंपरा चली आ रही है कि इस दिन यमदेव की पूजा की जाती है। दक्षिण दिशा में दीपक जलाकर रखा जाता है। जिससे यमराज को प्रसन्न करके अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है। इस दिन 13 दीपक जलाने की परंपरा है।
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इस दिन पूजा करने के लिए माता लक्ष्मी एवं गणेश तथा देव कुबेर और भगवान धन्वतरि की स्थापना की जाती है। तिलक लगाकर दीपक जलाकर फल फूल अर्पित किए जाते हैं तथा प्रसाद का भोग लगाया जाता है। इस अवसर पर ओम हीं कुबेराय नमः मंत्र का जाप लाभदायक होता है। धनतेरस की पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार यमराज ने यमदूतों से प्रश्न किया कि क्या कभी तुमको किसी मनुष्य के प्राण लेने पर दया प्रकट होती है, तो उन्होंने जवाब दिया, नहीं हम तो केवल आपके द्वारा दिए गए आदेशों का पालन करते हैं, लेकिन हां एक बार जरूर हमारा हृदय थोड़ा विचलित हो गया। क्योंकि हंस नाम का राजा जंगल में शिकार करते-करते भटक गया और वह दूसरे राजा की सीमा में पहुंच गया। वहां हेमा नाम का राजा राज करता था। उसने उसे राजा का खूब आदर सत्कार किया।
उसी दिन हेमा राजा की पत्नी ने पुत्र को जन्म दिया। उसकी जन्म कुंडली बनाने पर बताया गया कि इस बालक का विवाह होने के चार दिन बाद ही इसकी मृत्यु हो जाएगी। तब राजा बहुत चिंतित हुआ और उसने उसे बालक को एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में भेज दिया, ताकि कोई स्त्री वहां न पहुंच पाए, लेकिन विधि का जो विधान होता है वह तो होकर रहता है। उसको कोई नहीं बदल सकता। हुआ भी कुछ ऐसा ही कि हंस की पुत्री यमुना तट पर पहुंची और वहां उसने राजा के पुत्र को देख लिया। दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया। विवाह के चार दिन बाद ही राजा के पुत्र की मृत्यु हो गई। तब उसकी चीख पुकार सुनकर हम बहुत ज्यादा विचलित हो गए, लेकिन हम कुछ कर भी नहीं सकते थे। क्योंकि यह तो होना ही था और हमने अपना फर्ज निभाया।
जब यमदूतों ने यमराज से इसका उपाय जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि धनतेरस के दिन दीपदान और पूजा अर्चना करने से अकाल मृत्यु नहीं होती। तभी से अकाल मृत्यु से बचने के लिए दीपदान और पूजा की जाती है। इससे अकाल मृत्यु से बचा जा सके। इस दिन जरूरतमंद को दानपुण्य करने से यम देवता प्रसन्न होते हैं और और माता लक्ष्मी की भी कृपा बनी रहती है। धनतेरस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं ।
के पी अग्रवाल, हैदराबाद