हैदराबाद: युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा की बारहवीं ऑनलाइन संगोष्ठी शनिवार को आयोजित की गई। डॉ. रमा द्विवेदी (अध्यक्ष, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा ) एवं महासचिव दीपा कृष्णदीप ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं प्रखर चिंतक प्रो. ऋषभ देव शर्मा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की । बतौर विशेष अतिथि मूर्धन्य व्यंग्यकार/कथाकार श्री रामकिशोर उपाध्याय (राष्ट्रीय अध्यक्ष,दिल्ली) एवं मुख्य वक्ता बहुचर्चित गज़लकार / समीक्षक श्री प्रवीण प्रणव जी मंचासीन हुए।
कार्यक्रम का शुभारंभ सुश्री दीपा कृष्णदीप के द्वारा सरस्वती वंदना के साथ हुआ। तत्पश्चात प्रदेश अध्यक्ष डॉ रमा द्विवेदी ने अतिथियों का स्वागत शब्द पुष्पों से किया एवं संस्था का परिचय देते हुए कहा- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच एक वैश्विक संस्था है और संस्था हिंदी के प्रचार प्रसार के साथ-साथ सभी भारतीय भाषाओं का संवर्धन करती है। वरिष्ठ साहित्यकारों एवं युवा साहित्यकारों का उनके साहित्यिक योगदान हेतु पुरस्कृत / सम्मानित करती है। सभी क्षेत्र की ललित कलाओं को प्रोत्साहित करना भी इस संस्था का उद्देश्य है।
प्रथम सत्र “अनमोल एहसास” और “मन के रंग मित्रों के संग” दो शीर्षक के अंतर्गत संपन्न हुआ। प्रथम सत्र के प्रथम भाग अनमोल अहसास के अंतर्गत ” हर एक पल का शायर – साहिर लुधियानवी ” पर परिचर्चा आयोजित की गई। मुख्य वक्ता ख्याति प्राप्त ग़ज़लकार एवं समीक्षक प्रवीण प्रणव जी ने साहिर लुधियानवी के व्यक्तित्व और कृतित्व को बहुत ही रोचक तरीके से प्रस्तुत किया। साहिर की अपनी जिंदगी बचपन से ही मुश्किलों भरी रही, जिनकी वजह से उनकी शायरी में इंकलाबी खुशबू आती है। अपने पिता के प्रति कटुता और माँ के प्रति प्यार की वजह से उनकी शायरी में अंग्रेजों/जमींदारों के खिलाफ़ बगावत और स्त्री विशेषकर माँ के प्रति असीम प्रेम दिखता है। अपने तीस वर्षों के फ़िल्मी सफर में साहिर ने एक से बढ़ कर एक गीत लिखे लेकिन कभी अपने गीतों की गुणवत्ता से समझौता नहीं किया। साहिर अपने असफल प्रेम के लिए भी जाने जाते हैं।
कई प्रेम प्रसंग होते हुए भी कोई परवान न चढ़ सका और साहिर ताउम्र कुँवारे रहे। साहिर ने कहा भी ‘जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला, हमने तो बस कलियाँ मांगी, काँटों का हार मिला’। `तल्खियाँ’ साहिर का प्रसिद्ध कविता संग्रह है और परछाईयाँ प्रसिद्ध लम्बी नज़्म| साहिर ने अपने 31 वर्षों के फ़िल्मी दौर में 122 फ़िल्मों के लिए कुल 733 गाने लिखे। साहिर को 1971 में पदमश्री के ख़िताब से नवाज़ा गया। 59 वर्ष की अवस्था में 25 अक्टूबर 1980 को दिल का दौरा पड़ने से साहिर लुधियानवी का निधन हो गया। प्रवीण प्रणव ने साहिर की जिंदगी को उनकी कविताओं और गीतों के माध्यम से एक चलचित्र की तरह प्रस्तुत किया।”
विशेष अतिथि आदरणीय प्रख्यात व्यंग्यकार/कथाकार श्री रामकिशोर उपाध्याय जी (राष्ट्रीय अध्यक्ष,दिल्ली) ने अपने वक्तव्य में कहा – अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस अर्थात् आठ मार्च उन्नीस सौ इक्कीस को जन्मे अब्दुल हयी उर्फ़ साहिर लुधियानवी ने प्रेम में असफल होने के बावजूद प्रेम को उन्होंने अपनी कविता, शायरी या गीतों में प्रमुखता से मुखरित कर हिंदुस्तानी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान बनाया। उनका कृतित्व विशाल है और उनके साहित्य में कोई विषय कभी अछूता नहीं रहा। उनकी कविता में दर्द की सरिता निर्बाध रूप से बहती हुई दिखाई पड़ती है। यह उनकी महानता है कि नास्तिक होते हुए भी उन्होंने भक्ति-दर्शन के अमर गीत रचे।
प्रगतिशील विचारों के प्रति सदैव प्रतिबद्ध रहे और फ़िल्मों में देश भक्ति, सामाजिक विषमता, स्त्रियों, युवाओं और मज़दूरों के प्रति फ़िल्मों में अनेक गीत लिखकर उनके अवदान को भी बखूबी रेखांकित किया। उन्होंने जीवन को बड़ी निकटता से देखा, भूख और ग़रीबी से रूबरू हुए। वे एक सच्चे मानवतावादी थे। उनके समग्र साहित्य को देखकर यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि वे हर पल के शायर है और सदैव अपने गीतों और नज़्मों के माध्यम से सदैव अमर रहेंगे।
तत्पश्चात मन के रंग मित्रो के संग में बहुचर्चित साहित्यकार डॉ. सुषमा देवी जी ने अपने शोध कार्य के समय का प्रेरक प्रसंग सुनाया। जिसका संदेश यह था कि जीवन में चाहे कितनी ही कठिन परिस्थित हो कभी भी हार नहीं माननी चाहिए|
अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रखर चिंतक एवं समीक्षक प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने अध्यक्षीय भाषण में विस्तार से साहिर लुधियानवी के काव्य में निहित शाश्वतता के तत्वों की चर्चा की और कहा कि किसी भी कवि को ‘हर एक पल का शायर बनने के लिए अपनी वैयक्तिकता का अतिक्रमण करना होता है। प्रो. ऋषभ ने आगे कहा कि साहिर लुधियानवी बीसवीं सदी के सबसे लोकप्रिय उर्दू कवियों में से एक थे, उनकी कविता दर्द, पीड़ा और अन्याय के विषयों की मर्मस्पर्शी और विचारोत्तेजक व्यंजना के लिए जानी जाती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि साहिर का अपना जीवन व्यक्तिगत त्रासदी और राजनैतिक उथल-पुथल से भरा हुआ था और इन अनुभवों ने उनकी कविता को गहराई से प्रभावित किया। उन्होंने अध्यक्षीय काव्य पाठ किया एवं सफल कार्यक्रम की शुभकामनाएं दीं | प्रथम सत्र का संचालन शिल्पी भटनागर (संगोष्ठी संयोजिका ) ने किया| तत्पश्चात दूसरे सत्र में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई।
उपस्थित रचनाकारों ने विविध विषयों पर काव्य पाठ किया। सभी कवियों ने विविध रसों से सिक्त रचनाएँ सुनाई और माहौल को बहुत खुशनुमा बना दिया। भावना पुरोहित, डॉ सुषमा देवी, विनीता शर्मा, डॉ जयप्रकाश तिवारी (लखनऊ), डॉ रमा द्विवेदी, दीपा कृष्णदीप, संजीव चौधरी (जयपुर) रामकिशोर उपाध्याय (दिल्ली ), प्रवीण प्रणव, डॉ सुरभि दत्त, पूजा महेश (हापुड) उषा शर्मा, मल्लिका, डॉ आशा मिश्रा, दया शंकर प्रसाद, बिनोद गिरि अनोखा, शिल्पी भटनागर ने काव्य पाठ किया।
अवधेश कुमार सिन्हा, डॉ लावण्या साहित्य, मोहिनी गुप्ता, डॉ मंजू शर्मा, डॉ गंगाधर वानोडे, डॉ गोपाल शर्मा, माधव चौसालकर, नीरज सिन्हा, बाबू राव बालाजी, अजय कुमार पांडेय, राजेश कुमार सिंह (लखनऊ) एवं डॉ पी के जैन सहित 30 लोग क्रार्यक्रम में उपस्थित रहे। काव्य गोष्ठी का संचालन दीपा कृष्णदीप ने किया। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सुरभि दत्त (संयुक्त सचिव) ने आभार ज्ञापित किया |