केंद्रीय हिंदी संस्थान: महाकवि चिन्नास्वामी सुब्रमण्य भारती की जन्म जयंती पर ‘भारतीय भाषा दिवस’

विदित है कि भाषा सृष्टि का वरदान है, प्रकृति का अभयदान है। जीवन में भाषा का सर्वत्र सन्निधान है

हैदराबाद: स्वतंत्र भारत के इतिहास में नई शिक्षा नीति 2020 के आलोक में पहली बार महाकवि चिन्नास्वामी सुब्रमण्य भारती की जन्म जयंती पर 11 दिसंबर को ‘भारतीय भाषा दिवस’ के रूप मनाने का महत्वपूर्ण निर्णय भारत सरकार ने लिया है। इसके लिए भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय की ओर से विधिवत अनुदेश और अवधारणा पत्र भी जारी हुआ है। आज “एक भारत, श्रेष्ठ भारत, पहल” के अंतर्गत देश भर में भारतीय भाषा उत्सव की अनुगूँज रही। इस मंच की ओर से भी आज की शाम इस उत्सव को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में पहली बार हर्षोल्लास से मनाने के लिए बहुआयामी कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। आरंभ में सहर्ष सबको शुभकामनाएँ दी गईं। इस ऐतिहासिक कार्यक्रम में समूचे राष्ट्र की विभिन्न भाषाओं के सुप्रतिष्ठित कवियों ने अपनी रचनाओं से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।

भारतीय भाषा कवि सम्मेलन के आरंभ में साहित्यकार डॉ॰ राजेश कुमार द्वारा आज के कार्यक्रम की पृष्ठभूमि प्रस्तुत की गई एवं सरकारी निर्णय से अवगत कराते हुए भाषायी तथ्य रखे गए। तदोपरांत केंद्रीय हिंदी संस्थान के मैसूर केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. परमान सिंह द्वारा बड़े ही संयत भाव और आत्मीय ढंग से माननीय अध्यक्ष, सम्माननीय मुख्य अतिथि , विशिष्ट अतिथि, बहुभाषी कविवृंद, सानिध्य प्रदाता, संचालनकर्ता और देश-विदेश से जुड़े सैकड़ों सुधी श्रोताओं का विधिवत स्वागत किया गया। डॉ॰ सिंह ने भाषायी और सांस्कृतिक समन्वय के अनूठे अवसर पर सबके प्रति सदाशयता प्रकट की एवं कविताओं से आनंद की प्राप्ति करने का आग्रह किया।

बहुभाषी कवि सम्मेलन के संचालन का बखूबी दायित्व संभालते हुए दिल्ली की वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती अलका सिन्हा ने अनुभवजन्य नपे–तुले, सधे और संतुलित शब्दों में सबका आदर करते हुए कवि गोष्ठी को व्यापक फ़लक प्रदान किया। उन्होंने महाकवि, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, समाज सुधारक और राष्ट्रीय एकता के पुरोधा सुब्रह्मण्य भारती की जयंती पर उनका संक्षिप्त परिचय कराते हुए नमन किया और बताया कि तत्समय महाकवि अन्य बातों के साथ साथ नारी सशक्तिकरण, विद्यालय, औज़ार और कागज की महत्ता की तरफ भी ध्यान आकृष्ट करते थे। श्रीमती अलका सिन्हा ने अवगत कराया कि आज कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के बहुभाषी कवियों की रचनाओं का आस्वाद मिलेगा। इस क्रम में उन्होंने कश्मीरी कवि श्री मुदस्सिर अहमद भट को कविता सुनाने का आग्रह किया।

कश्मीर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और कश्मीरी कवि मुदस्सिर ने बड़े मनभावन लहजे में तीन कविताएँ सुनाईं जिनके शीर्षक थे- 1. चिनार और पौधा 2. चलो भाग चलें 3. जब याद तुम्ही तो आते हो। उन्होंने इंसान की पहचान करने, सुहानी भोर की ओर चलने और जीवन के परमोद्देश्य को प्राप्त करने का आवाहन किया। आनंद में समूचा सुधी जन मानस उनके साथ कश्मीर की वादियों में विचरण करने लगा। ज्ञातव्य हो कि आज के कार्यक्रम में हिंदीतर कविताओं का हिन्दी अनुवाद तकनीकीविद श्री मोहन बहुगुणा और श्री सुरेश कुमार मिश्र “उरतृप्त” के सहयोग से सामने स्क्रीन पर क्रमबद्ध रूप में प्रदर्शित हो रहा था जिससे संबंधित भाषा को न जानने वाले भी कविता सुनने के साथ साथ हिंदी में अनुवाद पढ़ते हुए आनंद ले रहे थे। तकनीकी टीम के प्रयास की सबने सराहना की।

डोगरी कवि और साहित्य अकादमी से पुरस्कृत साहित्यकार श्री प्रकाश प्रेमी ने बड़े ही संयत भाव से ‘अवस्था’ शीर्षक की अपनी लंबी डोगरी कविता में बचपन, जवानी और बुढ़ापे का सार तत्व सुनाकर जीवन दर्शन कराया। श्रोता भी स्क्रीन पर पंक्ति दर पंक्ति हिंदी अनुवाद पढ़कर आनंद में गोता लगा रहे थे। तदोपरांत पंजाबी दूरदर्शन से जुड़े मशहूर कवि डॉ. लखविंदर सिंह जौहल ने भी तीन कविताएँ सुनाईं। 1. खामोशी, 2. रोटी और भाषा, 3. शब्द। उन्होंने सुनाया कि दो शब्दों से रोटी बनती, दो हर्फों से भाषा और इनके छिन जाने पर होती बहुत निराशा। यह एक नया सवाल और चुनौती है।

नेपाली कवयित्री, दूरदर्शन अधिकारी और पुरस्कृत फिल्म नायिका देविका मोक्तान ने अपनी कविता में दार्जिलिंग के बाजार “चोकबजारमा” का चित्रण करते हुए जन सामान्य के सहज जीवन में साग भाजी को भी स्पर्श किया और स्वर्ग का सपना दिखाया। गुजराती कवयित्री और बड़ोदरा विश्वविद्यालय में रसायन शास्त्र विभाग की भूतपूर्व अध्यक्ष डॉ॰ नलिनी पुरोहित ने 5 छोटी-छोटी कविताएँ प्रस्तुत कीं। 1. माँ, 2. अवतार, 3. कविता की कहानी, 4. शृंगार, 5. ईंट । उन्होंने अपनी रचनाओं से रामावतार का सजीव चित्रण कर जागृत किया और मन की ईंट से अपना घर बनाने और सजाने की ओर ध्यान खींचा।

पुरस्कृत ओड़िया कवयित्री और “आन्या” की संपादक गायत्री बाला पांडा ने “देवी पीठ” और “भाषा गान” शीर्षक से मर्मस्पर्शी कविताएँ सुनाईं और बलि प्रथा पर प्रहार करते हुए सवाल उठाया कि क्या तुम्हारी कामना का रंग बकरे के खून से ज्यादा गाढ़ा है। उन्होंने “भाषा गान” के माध्यम से भाषाओं को अक्षुण्ण रखने और सम्मान करने की ओर आत्मचिंतन हेतु अभिप्रेरित किया। मलयालम के मशहूर कवि और आलोचक संपादक श्री संतोष अलेक्स ने चार छोटी छोटी कविताओं की प्रस्तुति दी। 1. यंत्रम, 2. गांधी, 3. दूरम, 4. पोस्ट कार्ड । उन्होंने पोस्टकार्ड कविता के माध्यम से बाहर रह रहे पुत्र के प्रति माँ की ममता प्रस्तुत कर सबको झकझोर दिया और पुत्र को एक बार गाँव आने हेतु विवश किया।

बांग्ला कवयित्री और बंगाल में शिक्षण प्रशिक्षण विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो॰ सोमा बंदोपाध्याय ने भी अपनी विद्वतापूर्ण मीठी वाणी में चार कविताएँ सुनाईं। 1. अधूरी कविता, 2. नदी, 3. धरित्री, 4. स्वीकारोक्ति। अधूरी कविता में उन्होंने कामकाजी महिला द्वारा घरेलू कामकाज की व्यस्तता के दौरान कविता सृजन के लिए मनः मस्तिष्क में उमड़ घुमड़ कर आए शब्दों को भूल जाने की व्यथा और छटपटाहट का रोमांचक चित्रण किया था। स्क्रीन पर पंक्तिबद्ध हिंदी अनुवाद प्रदर्शन से दर्शकों को अनवरत आनंद की अनुभूति होती रही।

उर्दू–कश्मीरी कवि एवं आकाशवाणी के उद्घोषक जनाब शौकत शाबाज़ ने तकनीकी बाधाओं को पार कराते हुए “कयामत आई है पाजेब पहनकर” वाली रचना सुनाकर भाव विभोर कर दिया। उनकी रचना में सौंदर्य और प्रेम तथा ख़्वाब परिलक्षित था।
मुख्य अतिथि के रूप में तमिल के मशहूर कवि एवं 100 से अधिक पुस्तकों के लेखक कणीयुराण ने महाकवि सुब्रह्मण्य भारती पर सारगर्भित राष्ट्रभक्ति से ओत प्रोत रचना सुनाई। हिंदी अनुवाद डॉ॰ ए॰ भवानी ने किया। ज्ञातव्य हो कि कवि कणीयुराण ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की काव्यात्मक जीवनी भी लिखी है तथा राज्य सरकार द्वारा उन्हें आजीवन पेंशन प्रदान कर सम्मानित किया गया है।

सान्निध्यप्रदाता श्री अनिल जोशी जी के आग्रह पर कवयित्री अलका सिन्हा ने प्रभावोत्पादक शैली में “झारखंड की लड़की” शीर्षक से अपनी रचना सुनाकर श्रोताओं को आत्मचिंतन हेतु विवश किया जिसमें स्कूल अहाते के बाहर बैठी झारखंड की एक लड़की मुनियाँ की ऐश्चिक क्रियाओं, विवशताओं एवं मनोभावों का चित्रण था। कविता का प्रतिपाद्य मलाला से जोड़कर संदेश था कि इसे मलाला कहें या मुनियाँ, कोई फर्क नहीं पड़ता। केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा की निदेशक एवं कवयित्री प्रो. बीना शर्मा ने भी जोरदार शब्दों में दो रचनाएँ सुनाईं। पहली रचना में उन्होंने किशोरावस्था में “अरी मैं आई कवयित्री बनने” को उकेरा था तो दूसरी रचना में युवतियों के लिए नैतिक संदेश देकर अहसास कराया गया था- तुम तुम हो, खुद को भुला मत देना और अपनी मर्यादा को बचाए रखना। लड़कियों का हँसना और काजल का भींगना साथ-साथ चलने वाली प्रक्रिया है।

केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष एवं इस आयोजन के प्रणेता तथा भारत सरकार में एक भाषाई नीति निर्माता समिति के सदस्य, हिंदी कवि श्री अनिल जोशी ने प्रथम भारतीय भाषा दिवस को ऐतिहासिक क्षण बताते हुए इसे भाषाई औपनिवेशिक गुलामी से मुक्ति का बिगुल बनाने वाला बताया। उन्होंने राष्ट्रीय एकता के अग्रदूत महाकवि सुब्रह्मण्य भारती की दीर्घकालिक “साधना” को नमन किया और सभी को प्रथम भारतीय भाषा दिवस की शुभकामनाएँ दीं। उन्होने लंदन में रहने के दौरान अपनी लिखी प्रसिद्ध रचना “भटका हुआ भविष्य” सुनाई जिसमें युवाओं को अपनी भाषा और अस्मिता हेतु अभिप्रेरक आवाज दी गई थी। उन्होंने साहित्य परिषद दिल्ली द्वारा पुरस्कृत अपनी दूसरी कविता में शब्दों की शक्ति का एहसास कराया। इसके साथ ही इस आयोजन में पधारे सभी महानुभावों के प्रति कृतज्ञता प्रकट की तथा तकनीकी टीम के सदस्य श्री मोहन बहुगुणा और सुरेश कुमार मिश्र को विशेष रूप से सराहा जिनके प्रयासों से अन्य भाषाओं की रचनाओं का पठन के साथ-साथ हिंदी अनुवाद स्क्रीन पर प्रदर्शित हो रहा था।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में अमेरिका से जुड़े सुविख्यात बहुविध कवि एवं आकाशवाणी के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी श्री लक्ष्मी शंकर वाजपेयी ने इस आयोजन पर अपार हर्ष प्रकट किया और भारतीय भाषा उत्सव के सरकारी निर्णय की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। दर्जनों देशों में कवि सम्मेलन में शरीक हो चुके श्री वाजपेयी की रचनाओं का अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उन्होंने “संकेतों की भाषा” शीर्षक वाली अपनी रचना सुनाकर आधुनिक जीवन की विसंगतियों को उजागर किया। अपनी दूसरी कविता “बयान” को उन्होंने सस्वर सुनाया जिसमें गाँव के घर को बच्चों द्वारा बेचने की जिद का जिक्र था। सुब्रह्मण्य भारती के शब्दों में उन्होंने कहा – यह है स्वर्णिम देश हमारा। आइए, हम साथ मिलकर आगे बढ़ें।

तत्पश्चात केंद्रीय हिंदी संस्थान के हैदराबाद और मैसूर केंद्र के संयुक्त प्रयासों से गृह पत्रिका “समन्वय दक्षिण” का “सुब्रह्मण्य भारती” विशेषांक प्रकाशित होने की जानकारी दी गई। कार्यक्रम में सभी महाद्वीपों के कई देशों के लेखक, विद्वान, साहित्यकार एवं चिंतक आद्योपांत जुड़े रहे। चैट बॉक्स में भी अनेक उत्साहवर्धक सुझाव आए। आयोजक मंडल की सभी संस्थाओं एवं कार्यक्रम संबंधी विभिन्न टीमों का विशेष सहयोग रहा।

अंत में दिल्ली विश्वविद्यालय के पंजाबी विभाग के अध्यक्ष एवं कवि रवि रविंदर ने कविताई अंदाज में धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होने भारत सरकार , शिक्षा मंत्रालय, माननीय शिक्षा मंत्री एवं भारतीय भाषा समिति के अध्यक्ष एवं नीति निर्माताओं के प्रति भारतीय भाषाओं की आज़ादी का मार्ग प्रशस्त करने हेतु कृतज्ञता प्रकट की। उन्होंने उत्सव आयोजन हेतु सुब्रह्मण्य भारती की जन्म जयंती को चुनने पर सहर्ष धन्यवाद दिया। डॉ॰ रवि रवींदर द्वारा एक-एक कवि की रचनाओं के निहितार्थ सहित धन्यवाद दिया गया। उन्होंने संयत भाव एवं मृदुल वाणी में माननीय अध्यक्ष, मुख्य अतिथि, विशेष अतिथि एवं सभी भाषाओं के उपस्थित कवियों तथा काफी संख्या में उपस्थित सुधी श्रोताओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। उनके द्वारा इस कार्यक्रम से देश-विदेश से जुड़ी संस्थाओं एवं व्यक्तियों का नामोल्लेख सहित आत्मीय ढंग से विशेष आभार प्रकट किया गया।

पंजाबी-हिंदी विद्वान प्रो॰ रवि रवींदर ने भारतीय भाषाओं का मार्ग प्रशस्त करने एवं वैश्विक गौरव बढ़ाने हेतु इस कार्यक्रम से जुड़े संरक्षकों, संयोजकों, मार्गदर्शकों तथा विभिन्न टीम सदस्यों को हृदय तल से धन्यवाद दिया। समूचा माहौल विविध भारतीय भाषायी सम्मान और राष्ट्रभक्ति की भावना से ओत-प्रोत रहा। कार्यक्रम में देश-विदेश के हिंदी प्रेमी, विद्वान, साहित्यकार तथा कार्यक्रम के सभी सहयोगी सदस्य उपस्थित थे। रिपोर्ट लेखन कार्य डॉ. जयशंकर यादव ने संपन्न किया।
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