कामरेड चारू मजूमदार जयंती पर विशेष: नया संकट है, मतलब जानता है, क्रांतिकारी आंदोलन आगे बढ़ता है

आज का विचार
अपनी सोच को सीमित मत करो, तभी विस्तार में सोच पाओगे – माओ त्सेु तुंग

[नोट- यह लेख सोशल मीडिया से लिया गया है। पाठक इस लेख पर अपनी प्रतिक्रिया telanganasamachar1@gmail.com पर भेज सकते हैं। धन्यवाद ]

चारू मजूमदार (Charu Majumdar) इतने प्रभावशाली नेता थे कि वे इस पीढ़ी के लिए एक क्रांतिकारी कहानीकार हैं। शायद क्रांतिकारी खेमे में भगत सिंह के बाद सबसे ज्यादा प्रज्वलन शक्ति चारू मजूमदार को ही है। चारू मजूमदार को सौ साल। उनके द्वारा निर्मित क्रांतिकारी पार्टी के पचास साल। उनके द्वारा शुरू की गई नक्सलबाड़ी को बावन साल। वे जीवित रहे केवल 53 साल।

शताब्दी उत्सव

यह चारू माजुमदार का शताब्दी वर्ष है। आज से शताब्दी उत्सव शुरू हो रहे हैं। वे इतिहास में हजारों क्रांतिकारियों के आदर्श रहे हैं। चारू माजूमदार नक्सलबाड़ी के अकेले निर्माता नहीं हैं। भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन में उनके विचार आज भी जारी हैं। उनके सपने बीज रूप में साकार हो रहे हैं। चारू माजूमदार आधुनिक भारतीय इतिहास में सबसे प्रभावशाली व्यक्ति हैं। भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन में उनके जैसा व्यक्ति वही एकमात्र थे। उन्होंने देश के इतिहास को एक बड़ा मोड़ दिया। भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन को वर्ग संघर्ष की पटरी पर लाकर खड़ा किया। इस यात्रा में अनंत संकट हैं। अनगिनत ख़तरे हैं। लेकिन निरंतरता जारी है। विस्तृति है। क्रांतिकारी तीव्रता है। उनके बारे में जो कुछ भी कहा जाएगा। वह ऐतिहासिक विश्लेषण के अधीन होना चाहिए। इतिहास से अलग करके चारू माजुमदार को नहीं समझ सकते।

चारू माजुमदार की व्यक्तित्व संरचना

नक्सलबाड़ी से पहले वो पार्टी में जिला स्तरीय नेता थे। फिर भी उन्हें पहले से ही ‘तेभागा’ आंदोलन का अनुभव था। पार्टी के इतिहास में इसी तरह के विशेषता वाले सैकड़ों कामरेड हैं। इससे अलग व्यक्ति के रूप चारू मजूमदार बनाया। दूसरों की तुलना में एक अलग भूमिका निभाई। हर किसी की तरह उसकी भी अपनी खूबियां हैं। उन्हें पहचानते हुए उनकी भूमिका को इतिहास में एक हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिए। इतिहास के निर्माण में अंतर्गत चारू मजूमदार की व्यक्तित्व संरचना को भी देखा जाना चाहिए।

ऐतिहासिक व्यक्ति

वास्तव में किसी भी ऐतिहासिक व्यक्ति को इसी तरह से देखा जाना चाहिए। जो व्यक्ति इतिहास से जुड़ा नहीं है, उसका गुणगान करने से कोई लाभ नहीं है। इतिहास में उनकी वास्तविक भूमिका समझ में नहीं आती है। इस दृष्टि से उसकी मोटे तौर पर दो आधारों पर जांच की जा सकती है। एक- नक्सलबाड़ी के निर्माता के रूप में उनकी भूमिका का आकलन किया जाना चाहिए। दो- क्रांतिकारी आंदोलन के इस पचास वर्षों के इतिहास से उनकी प्रासंगिकता को इंगित किया जाना चाहिए। उनकी शताब्दी के अवसर पर क्रांतिकारी ताकतों का यह न्यूनतम कर्तव्य है। इन ऐतिहासिक राजनीतिक नींवों से साहित्यिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक क्षेत्रों पर उनके प्रभाव की जांच की जा सकती है।

क्रांतिकारी कहानीकार

लेकिन चारू मजूमदार को ऐतिहासिक रूप से समझने में दो प्रवृत्तियाँ बाधक हैं। इसके ऐतिहासिक कारण भी हैं। उनके अपने व्यक्तित्व में भी हैं। वो एक प्रभावी नेता हैं। क्योंकि वह इस पीढ़ी के लिए एक क्रांतिकारी कहानीकार हैं। शायद क्रांतिकारी खेमे में भगत सिंह के बाद चारू मजूमदार के पास इतनी ज्वलनशील शक्ति है। साथ ही, अभी भी ऐसे लोग हैं जो उनकी तर्कसंगत आलोचना को भी बर्दाश्त नहीं कर सकते। क्रान्तिकारी खेमे में ऐसी उद्वेग स्थिति है। तीन पीढ़ियों के बाद भी यह अभी भी है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनकी भूमिका कैसी और उनका प्रभाव कैसा है।

पुनर्जीवित होने वाली शक्ति

वह इतिहास में हमेशा के लिए पुनर्जीवित होने वाली शक्ति है। इतिहास केवल लोगों की भौतिक आचरण को ही भावी पीढ़ियों तक पहुंचाता है। वह आचरण ही भावनाओं को भी लगातार आपूर्ति भी करता है। वह फिर वापस भौतिक आचरण की ओर जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि इतिहास में केवल मानवीय अनुभव ही नहीं होते। इसके इर्द-गिर्द जमा हुई भावनाएं भी इतिहास का हिस्सा हैं। अगर हम इसे समझ नहीं पाते तो बहुत कुछ इतिहास भूल जाएंगे। लेकिन एक व्यापक सार्वजनिक आचरण में हिस्सा बन चुके चारू मजूमदार जैसे व्यक्तियों की भावनाओं से ठीक से नहीं आंका जा सकता है। इतिहास को चारू मजूमदार के ढांचे में जांच की जानी चाहिए। अन्यथा तर्कसंगतता की कमी का खतरा है।

कई विवाद

साथ ही उनके आसपास कई विवाद भी हैं। कई अलग-अलग राय भी हैं। परस्पर विरोधी अपेक्षाएं हैं। ये अभी मौजूद नहीं हैं। वे एक गतिशील नेता के रूप में जीवित थे तभी विवाद उठ खड़े हुए थे।उसके बारे में एक या दो शब्द कहना काफी है। ऐसे कहने वाले लोग भी है कि भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन की ऐसी खराब स्थिति उनके नेतृत्व में नक्सलबाड़ी आंदोलन शुरू होना ही है। वह कई परिस्थितियों के कारण उस आंदोलन के नेता रहे होंगे, लेकिन वे भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन को नेतृत्व प्रदान करने में सक्षम नहीं है। इसलिए एक अद्भुत ऐतिहासिक क्षण एक असफल दृश्य में बदल गया है। इसी वजह से उनका कहना है कि वे नक्सली आंदोलन के बलिदान का सम्मान करते हैं लेकिन उस मार्ग को स्वीकार नहीं कर सकते। हम उन लोगों को भी देखते हैं जो यह निष्कर्ष निकालते हैं कि नक्सलबाड़ी पथ क्रांतिकारी पथ नहीं है। यह एक ऐतिहासिक अंधापन है।

आंदोलन आगे बढ़ता है

ये दोनों रुझान अभी भी जीवित हैं। चारू मजूमदार को ऐतिहासिक रूप से मूल्यांकन किए जाने पर ये नहीं भुलाए जाते हैं। इन पचास वर्षों में क्रांतिकारी आंदोलन में कई बदलाव हुए हैं। हमारे सिस्टम में गंभीर बदलाव हुए हैं। राज्य का विस्तार हुआ है। कई नये आंदोलन जन्म लिये हैं। यह समाज सहज रूप से उसके लिए एक अब एक नई पीढ़ी बना रही है। उसके साथ चल रही है। यह नई पीढ़ी मनोवैज्ञानिकता में परिलक्षित हो रही है। एक शब्द में, हम अब एक नई सामाजिक ऐतिहासिक विचारधारा की दुनिया में क्रांति ला रहे हैं। इस नई दुनिया में क्रांतिकारी आंदोलन कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। चुनौतियां क्रांतिकारी आंदोलन के सामने आकर खड़े हो जाते हैं। वर्ग संघर्ष सभी चुनौतियों को हल करता है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। हालांकि यह एक नया संकट है। इसका मतलब जानते हुए क्रांतिकारी आंदोलन आगे बढ़ता है।

– लेखक पाणी

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