जय हिंद: कादंबिनी क्लब की मासिक गोष्ठी में पुस्तक लोकार्पण और राष्ट्र के नाम कवि गोष्ठी की रही धूम

हैदराबाद (मीना मूथा की रिपोर्ट): कादंबिनी क्लब हैदराबाद के तत्वाधान में अवधेश कुमार सिन्हा (नई दिल्ली) की अध्यक्षता में 349वीं मासिक गोष्ठी का आयोजन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। क्लब अध्यक्षा डॉ अहिल्या मिश्र और कार्यकारी संयोजिका मीना मूथा ने मीडिया को जारी विज्ञप्ति में बताया कि कार्यक्रम का आरम्भ शुभ्रा महंतो द्वारा निराला रचित सरस्वती वंदना के साथ हुआ ।

कार्यक्रम के प्रथम सत्र में डॉ अहिल्या मिश्र ने स्वागत भाषण में कहा कि आज भारत देश अपनी आज़ादी की 75वीं वर्षगाँठ माना रहा है। देश धन-धान्य से सम्पन्न हुआ है। आज हम विश्व को भी लोहा मनवा रहे हैं। जन जन में उत्साह है, विश्वास है। निरंतर सार्थक प्रगति की ओर हम कदम बढ़ा रहे हैं। बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि हमारी क्लब सदस्या लीला गोपी किशन बजाज की ‘सेतु बंध’ जो कि कविता संग्रह है, आज गूगल मीट के माध्यम से लोकार्पित होने जा रहा है। मृदुभाषी लीला बजाज सामाजिक संगठनों के साथ-साथ साहित्य लेखन में भी रुचि लेती रही हैं यह सराहनीय है।

भावना पुरोहित ने रखी अपनी बात

तत्पश्चात भावना पुरोहित ने ‘सेतुबंध’ पर अपनी बात रखते हुए कहा कि कृति का सर्जन प्रसव पीड़ा के समान होता है। मां जब बालक को जन्म देती है तो उस प्रसव पीड़ा को हंसते-हंसते सह लेती है। ठीक उसी प्रकार कवयित्री लीला बजाज ने भी महत प्रयास किए हैं ताकि उनकी अपनी एक कृति हो। पति-पत्नी की नोक झोंक के साथ अन्य कई विषयों पर इनकी रचनाएं इसमें शामिल है।

प्रवीण प्रणव ने की नजर में दिखा कुछ ऐसा

युवा साहित्यकार प्रवीण प्रणव ने अपनी बात रखते हुए कहा कि लीला बजाज कादंबिनी क्लब की गोष्ठियों में आती रही हैं। तब इनसे परिचय हुआ। सेतु तब बनाया जाता है जब दूसरों को मिलाना होता है। कुछ ऐसा ही कवयित्री का भाव रहा है कि सब को जोड़ना है। सेतु की सार्थकता उसके बन जाने में नहीं बल्कि उसकी उपयोगिता में है। भाव प्रधान व सरल भाषा शैली इनकी रही है। आशा है भविष्य में भी कवयित्री इसी तरह सृजन करती रहेंगी।

डॉ आशा मिश्र ‘मुक्ता की नजर में सेतुबंधु

मुख्य वक्ता डॉ आशा मिश्र ‘मुक्ता’ ने सेतुबंध पर अपने विचार रखते हुए कहा कि नारी यदि संपूर्ण प्राण आवेग से जागे तो उसकी गति को रोकना असंभव है। कुछ ऐसा ही कवयित्री लीला बजाज के संदर्भ में कहा जा सकता है। अपनी उड़ान को ऊंचा करते हुए वे एक डाल से दूसरे डाल पर उड़ने लगी। आसपास की घटनाएं परिवेश से प्रभावित भाव अनुराग का मिश्रण इनकी रचनाओं में देखने को मिलता है। समाज में घटित घटनाएं पीड़ा देती हैं। भ्रष्टाचार, लूट-खसोट, बेईमानी, वृद्धावस्था की अवहेलना, टूटते-बिखरते परिवार, तीज-त्यौहार, बचपन की यादें, संस्कार की बातें आदि विभिन्न विषयों को छूने का प्रयास लीला बजाज का रहा है। समाज, परिवार, भूतकाल, वर्तमान काल और भविष्यत काल सभी पीढ़ियों को जोड़ने का प्रयास उनकी कविताओं में स्पष्ट दृष्टिगत हो रहा है। सरल शब्दावली और छोटी-छोटी रचनाओं के कारण ये जानी जाती रही हैं। भविष्य में भी समाज के इर्द-गिर्द जो देखेंगी उसे शब्दबद्ध अवश्य करेंगी। काव्य रूप में मुक्तक हायकु और गद्य शैली को इन्होंने अपनाया है। वे समाज में सुधार चाहती हैं। स्वांत: सुखाय के बदले समाज और देश के कल्याण के लिए लेखन कवि का धर्म है। और लीला जी निश्चित ही उस ओर अग्रसर हैं।

डॉक्टर पुरुषोत्तम दरक बोले

इस सत्र में विशिष्ट अतिथि के रुप में डॉक्टर पुरुषोत्तम दरक (सर्जन-साहित्यकार औरंगाबाद) और वीरबाला कासलीवाल (अध्यक्ष अखिल भारतीय मारवाड़ी महिला सम्मेलन उज्जैन) उपस्थित थे। डॉ दरक ने कहा कि कादंबिनी के मंच से लीला बजाज की कृति ‘सेतुबंध’ लोकार्पित हो रही है यह बहुत ही गौरव की बात है। हम सभी परिजनों को उम्र थका नहीं सकती और और ठोकरें गिरा नहीं सकती। जिसे आगे बढ़ना है वह प्रयत्नशील रहता है। उनकी रचनाओं में एहसास और जुनून है जो लीला को कदम उठाने की प्रेरणा देती है। बहुत-बहुत साधुवाद!

वीरबाला कासलीवाल का आशीर्वचन

वीरबाला कासलीवाल ने अपने आशीर्वचन में कहा कि स्वतंत्रता दिवस के इस शुभ अवसर पर कृति का लोकार्पण हो रहा है यह बहुत ही खुशी की बात है। परिवार का संपूर्ण सहयोग ही इन्हें इस मंजिल तक लाया है। लीला ने लक्ष्य सामने रखा और उसे पूर्ण किया। तत्पश्चात डॉ अहिल्या मिश्र क्लब अध्यक्षा एवं पुस्तक लोकार्पण कर्ता ने ‘सेतुबंध’ लीला बजाज की प्रथम काव्य कृति का करतल ध्वनि में लोकार्पण किया। डॉक्टर मिश्र ने कहा कि तकनीक के जमाने में हम कोसों दूर बैठकर भी अपने हौसले हिम्मत को बनाए रख रहे हैं। हैदराबाद के मारवाड़ी महिला संगठन के माध्यम से लीला जी से मेरा परिचय हुआ और फिर साहित्य जगत से भी वे रूबरू होने लगीं। सरल स्वभाव और शांत मनोभाव से वह लेखन करती हैं।

इस रचना संग्रह में इन्होंने रोजमर्रा की बातों पर कटाक्ष किया है। देश और रिश्ते कैसे हों, संस्कारों की आवश्यकता क्यों है, सपनों की दुनिया, समाज के गिरते स्तर की चिंता, राष्ट्रप्रेम, वात्सल्य का महत्व आदि आदि विषयों को लीला जी ने चुना और अपने मन के विचारों को शब्द बंद किया। गृहणी, समाज सेविका, साहित्य की हितैषी लीला बजाज ऐसे ही निरंतर आगे बढ़ें यही आशीर्वाद है। सादगी और समर्पण भाव से यूं ही हिंदी की सेवा में जुड़ी रहें। डॉक्टर मिश्र ने कुछ काव्यांश भी प्रस्तुत किए।

अवधेश कुमार सिन्हा की नजर में मासिक गोष्ठी

अवधेश कुमार सिन्हा ने अपने वक्तव्य में कहा कि क्लब की मासिक गोष्ठियों में उनका रचना पाठ सुनता रहा हूं। समाज उत्थान के प्रति जागरूक हैं। जहां हमें लगता है कि आने वाली पीढ़ी के लिए ठीक नहीं है हम उसे तुरंत सुधार के लिए कहते हैं और कवि का यह फर्ज होना भी चाहिए। तीन पीढ़ियों को सेतु के माध्यम से लीला जी ने एक सपना देखा है। और इसे जोड़ने का प्रयास किया है। यह अच्छी बात है। आज के कार्यक्रम के आयोजन से क्लब का भविष्य सुखद और सुरक्षित होगा। कवयित्री को आगे भी ऐसे ही सृजन में लगे रहना है। बहुत-बहुत साधुवाद।

मीना मूथा ने कार्यक्रम का संचालन

मीना मूथा ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए कहा कि 126 रचनाएं इनकी कृति में संकलित है। नारी सशक्तिकरण, युवा पीढ़ी के प्रति चिंता, शहीदों के प्रति कृतज्ञता, इंसान का यांत्रिकीकरण, विवाह बंधन के प्रति अटूट आस्था, रिश्तो में खटास विषयों आदि को लीला जी ने उठाया है और सरल शब्दावली में अपनी बात पाठकों तक पहुंचाती हैं।

लीला बजाज का मन की बात और धन्यवाद ज्ञापन

मन की बात और धन्यवाद ज्ञापित करते हुए लीला बजाज ने कहा कि जिन लोगों से मैं मिलती गई जुड़ती गई। सभी के प्रेम और आदर ने मेरे जीवन को संवारा और मैं निखरती गई। विपरीत परिस्थितियों में भी उचित राह निकाल लेना ही मेरे जीवन का लक्ष्य बना। कलह से बचने के लिए शांति ही समाधान है। बचपन से ही लेखन में लगी रही। अहिल्या मिश्र से प्रेरित होकर 2009 से कादंबिनी से जुड़ गई और आज सेतुबंध का लोकार्पण उन्हीं के कर कमलों से हुआ है यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है। महिला संगठनों के साथ साथ साहित्य समर्पण भी मेरा स्वप्न था और है। यहाँ उपस्थिति सभी अतिथि गण एवं सदस्यों के प्रति लीला जी ने आभार व्यक्त किया। किताब का मुख पृष्ठ भी उन्होंने ही डिज़ाइन किया ऐसा कहा। क्लब की ओर से उन्हें बधाई दी गई।

दूसरे सत्र का संचालन प्रवीण प्रणव

दूसरे सत्र में प्रवीण प्रणव के कुशल संचालन में स्वतंत्रता दिवस को केंद्रित करते हुए कवि गोष्ठी का आयोजन हुआ। इसमें भावना पुरोहित, तृप्ति मिश्रा, प्रदीप देविशरण भट्ट, किरण सिंह, विनीता शर्मा, ज्योति नारायण, अजय कुमार पांडे, संतोष रजा गाजीपुरी, शीला भनोट, विनोद गिरी अनोखा, रमाकांत, डॉक्टर आशा मिश्र ‘मुक्ता’, संपत देवी मुरारका, मीना मुथा, संपत देवी दुग्गड़, डॉक्टर ऋषभ देव शर्मा, प्रवीण प्रणव और डॉक्टर अहिल्या मिश्र ने राष्ट्र को समर्पित विभिन्न रचनाएं सुनाई। अवधेश कुमार सिन्हा ने अध्यक्षीय टिप्पणी में कहा कि प्रथम सत्र में तय रूपरेखा के अनुसार लोकार्पण की गतिविधि पूर्ण हुई। अतिथियों ने भी अपने विचार रखे। लेखिका को हार्दिक बधाइयां।

कविताओं का दौर

इस सत्र में कविताओं का दौर चला। अतीत का गौरव, सीमा पर खड़े प्रहरी, राष्ट्रभक्ति को सभी ने उत्साह और जोश के साथ प्रस्तुत किया। लेकिन गहराई से सोचें तो क्या सरहद पर जिन शहीदों ने कुर्बानी देकर यह तिरंगा हमें दिया है क्या हम उसके साथ न्याय कर पा रहे हैं? एक घटना को सुनाते हुए कहा कि जो बालक झंडे बेच रहा था वह उसकी रोटी का जुगाड़ कर रहा था। क्या यह दर्दनाक बात नहीं है? इसी के साथ श्री सिन्हा ने अध्यक्षीय काव्य पाठ किया और सभी को चिंतन मनन के लिए प्रेरित किया। अवसर पर राजीव लुल्ला के असामयिक निधन पर क्लब की ओर से दिवंगत आत्मा के प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त की गई। मीना मुथा के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

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