युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच: ‘मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ पुस्तक पर दमदार परिचर्चा, इन दिग्गज वक्ताओं ने डाला प्रकाश

हैदराबाद: युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा की वर्चुअल चौदहवीं संगोष्ठी रविवार को आयोजित की गई। डॉ. रमा द्विवेदी (अध्यक्ष, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा) एवं महासचिव दीपा कृष्णदीप ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि ‘मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ (डॉ रमा द्विवेदी कृत) लघुकथा संग्रह की परिचर्चा प्रख्यात चिंतक प्रो ऋषभदेव शर्मा की अध्यक्षता में संपन्न हुई। बतौर विशिष्ट अतिथि प्रखर व्यंग्यकार रामकिशोर उपाध्याय, प्रख्यात युवा साहित्यकार डॉ राशि सिन्हा मंचासीन हुए। सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार अवधेश कुमार सिन्हा, सुविख्यात युवा साहित्यकार प्रवीण प्रणव एवं प्रख्यात समीक्षक डॉ जयप्रकाश तिवारी बतौर विशेष आमंत्रित अतिथि उपस्थित रहे हैं।

दीपा कृष्णदीप द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना

कार्यक्रम का शुभारंभ दीपा कृष्णदीप द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के साथ हुआ। तत्पश्चात अध्यक्षा डॉ रमा द्विवेदी ने अतिथियों का परिचय दिया एवं शब्द पुष्पों से अतिथियों का स्वागत किया। संस्था का परिचय देते हुए कहा कि यह एक वैश्विक संस्था है जो हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार के साथ अन्य सभी भाषाओं के संवर्धन हेतु कार्य करती है। वरिष्ठ साहित्यकारों के विशिष्ठ साहित्यिक योगदान हेतु उन्हें हर वर्ष पुरस्कृत करती है। युवा प्रतिभाओं को मंच प्रदान करना, प्रोत्साहित करना एवं उन्हें सम्मानित करना भी संस्था का एक विशेष उद्देश्य है।

मुख्य वक्ता डॉ राशि सिन्हा ने परिचर्चा में प्रकाश डाला

मुख्य वक्ता डॉ राशि सिन्हा ने परिचर्चा में प्रकाश डालते हुए कहा कि मैं द्रौपदी नहीं हूं, लघुकथा संग्रह में शीर्षक के माध्यम से आधुनिक संदर्भ में, स्त्री-चेतना के तहत मिथकीय चरित्र द्रौपदी के माध्यम से ऐतिहासिकता और पौराणिकता को समेटते हुए, देह मुक्ति से आत्म मुक्ति तक का मार्ग तय करने में लेखिका रमा द्विवेदी ने द्रौपदी में अंतर्निहित सभी मानवीय तत्वों के योग में से जिस एक बिंदु को केंद्रीकृत कर, सांकेतिक रूप में अभिव्यंजित किया है, वह सच में लघुकथा के मूल स्वर को तीव्रता प्रदान करती है। साथ ही, आधुनिक युग में व्याप्त विडंबनाओं, विसंगतियों पर प्रहार करते हुए उन्होंने देश और समाज की भटकती सामाजिक-सांस्कृतिक चेतनाओं के साथ साहित्य में बढ़ती उपभोक्तावादी संस्कृति को समेट कर, विविध पक्षों के सत्य के उद्घाटन में जो अर्थ तीव्रता का प्रयोग किया है वह निश्चित रूप से प्रणम्य है एवं प्रशंसनीय है। समाज के हर कोने में उत्पन्न अंतर्विरोध की स्थितियों को, बदलते मूल्यों को सांकेतिक व्यंजनाओं के माध्यम से वर्तमान विसंगतियों में व्याप्त अलग स्वायत्त सत्ता तलाशने की युवा पीढ़ी की एकाकी जीवन धारा की सोच और समर्पण को पूरी अर्थ तीव्रता के साथ प्रस्तुत करता यह लघुकथा संकलन निश्चित रूप से क्षरण हो रहे मानवीय मूल्यों के पुनर्स्थापन की कोशिश है, जिसमें लेखिका डॉ रमा द्विवेदी ‘मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ लघुकथा संग्रह के सभी आयामों के साथ न्याय करने में सफल हुई हैं।

विशिष्ट अतिथि एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष रामकिशोर उपाध्याय का वक्तव्य

विशिष्ट अतिथि एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष रामकिशोर उपाध्याय ने अपने वक्तव्य में कहा कि ‘मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ संग्रह जीवन के विभिन्न सरोकारों से जुड़ी एक सौ ग्यारह लघुकथाओं का पुष्पगुच्छ है, जिसमें कथाकार डॉ रमा द्विवेदी ने घटना अथवा व्यक्ति से जुड़े एक क्षण का चित्रण सार रूप में बड़े ही कलात्मक ढंग से बहुत कम शब्दों में प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत संग्रह की लघुकथाओं में उनकी गहरी संवेदनशीलता, तीव्र बुद्धि और घटनाओं के सूक्ष्म निरीक्षण-क्षमता का परिचय मिलता है जो लघुकथाकार का एक आवश्यक गुण भी है। एक कथाकार को लोक और शास्त्र का समुचित ज्ञान होना चाहिए। इस संग्रह की शीर्षक लघु कथा ‘मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ जैसी कई लघुकथाओं को पढ़कर हमें उनके इस पक्ष का पता चलता है। उनकी लघुकथाएँ किसी समाधान की ओर नहीं बढ़ती, बल्कि पाठकों को उनके विवेकाधिकारित निष्कर्ष पर छोड़ती दिखाई देती हैं। उनकी लघुकथाएं जीवन के कटु यथार्थ को चित्रित करती हैं। यही बात डॉ रमा द्विवेदी को विशेष बनाती है। कुल मिलाकर उनका लघुकथा लेखन का प्रथम प्रयास प्रशंसनीय है।

विशेष आमंत्रित अतिथि एवं परामर्शदाता अवधेश कुमार सिन्हा ने कहा कि ‘मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ लघुकथा संग्रह उनके पूर्व में प्रकाशित काव्यसंग्रहों ‘दे दो आकाश’ और ‘रेत का समंदर’ का अगला विस्तार है। संग्रह की शीर्षक कथा भारतीय स्त्री की स्वतंत्र चेतना एवं आत्म रक्षण का उद्घोष है। कथाकार ने घर-परिवार एवं समाज की विसंगतियों एवं विद्रूपताओं के अपने अनुभवों को बड़े ही रचनात्मक ढंग से संग्रह की कथाओं में चित्रित किया है।

विशेष आमंत्रित अतिथि एवं परामर्शदाता प्रवीण प्रणव ने संग्रह की अधिकांश कथाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ‘ मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ संग्रह की पहली शीर्षक कहानी ही इस संग्रह की कहानियों के विषय तय कर देती है। स्त्री आज भी अपने घर की चारदीवारी के अंदर भी सुरक्षित नहीं है। शीर्षक कथा की नायिका अपने सम्मान की रक्षा के लिए आवाज उठाती है। इस संग्रह का शीर्षक उपयुक्त है। कथानकों में विषय वैविध्य है। समाज के विभिन्न क्षेत्रों में व्याप्त नैतिक मूल्यों का क्षरण एवं अन्य आधुनिक विषयों का चित्रण इस संग्रह में किया गया जो इस संग्रह को प्रासंगिक बनाता है।

विशेष आमंत्रित अतिथि डॉ जयप्रकाश तिवारी के विचार

विशेष आमंत्रित अतिथि डॉ जयप्रकाश तिवारी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि डॉ रमा द्विवेदी हिन्दी साहित्य जगत की अत्यंत संवेदनशील रचनाकार और समस्या संप्रेषण की अद्भुत शब्द-सर्जक हैं। वे मर्म पर प्रहार करती हैं और पाठक को सोचने पर विवश करती हैं। इन लघुकथाओं में डॉ रमा का बहुआयामी व्यक्तित्व निखर गया है। कहीं वे समाजशास्त्री लगती है, कहीं मनोवैज्ञानिक, कहीं दार्शनिक तो कहीं कक्षा में अध्यापन करती शिक्षिका। कुछ लघुकथाओं में वे समाधान की ओर संकेत करती हैं तो कुछ समस्याओं का समाधान पाठक और समाज के लिए छोड़ देती हैं। मानव- मन की पिपासा धन और भोग से शांत नहीं होती। साहित्यिक संस्थाओं का विकृत होते स्वरूप को उभार कर एवं झन्नाटेदार तमाचा जड़कर रमा द्विवेदी साहित्य जगत के लिए स्तुत्य और दुलारी बन गई हैं। गौरतलब है कि उनका कुरीतियों से पनपती नवीन विकृतियों पर उनका चुटीला प्रहार सामाजिक उत्कर्ष और कल्याण के लिए है, विध्वंस के लिए नहीं।

परिचर्चा के अध्यक्ष प्रो ऋषभदेव शर्मा का उद्बोधन

परिचर्चा के अध्यक्ष प्रो ऋषभदेव शर्मा ने अपने उद्बोधन में सभी वक्तव्यों के सारांश पर अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणी देते हुए कहा कि महाश्वेता देवी, प्रतिभा राय से लेकर मंटों तक के समकक्ष रखकर इस संग्रह की कथाओं को रखकर वक्ताओं ने देखा-परखा है और यह लेखिका के लिए चुनौतीपूर्ण दायित्व बन गया है, लेकिन यही उनकी उपलब्धि भी है। संग्रह का सामाजिक पक्ष बड़ा प्रबल है। लेखिका अनेक कथाओं में क्रूर अमानवीयता को उभारती हैं। परिचर्चा में शीर्षक कथा बहुत चर्चित रही है। द्रौपदी एक पौराणिक महावृतांत है जो सहज उपलब्ध है, लेकिन इसके कई खतरे भी हैं। लेखिका ने यह खतरा मोल लिया है और नायिका का एक वाक्य ने ही इसे सार्थक बना दिया है। संग्रह की अधिकांश कहानियाँ इस महावृतान्त से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से टकराती हैं और लेखिका कभी पक्ष में और कभी विपक्ष में खड़ी दिखाई देती हैं। यद्यपि गद्य में लेखिका का यह प्रथम प्रयास है, लेकिन परिपक्व रचनाकार की परिपक्व रचना कृति है। उन्होंने सफल लेखन के लिए लेखिका डॉ रमा द्विवेदी को शुभकामनाएँ दी।

काव्य गोष्ठी

तत्पश्चात काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। उपस्थित रचनाकारों ने विविध विषयों पर सृजित सुंदर-सरस रचनाओं का काव्य पाठ करके वातावरण को खुशनुमा बना दिया। विनीता शर्मा (उपाध्यक्ष ), डॉ सुरभि दत्त (संयुक्त सचिव), शिल्पी भटनागर, दर्शन सिंह, डॉ सुषमा देवी, रामकिशोर उपाध्याय, डॉ राशि सिन्हा, भगवती अग्रवाल, सरिता दीक्षित, डॉ रमा द्विवेदी, ममता महक (कोटा), डॉ संजीव चौधरी (जयपुर), डॉ जयप्रकाश तिवारी (लखनऊ), डॉ संगीता शर्मा, शशि राय (गाजीपुर) इंदु सिंह, डॉ स्वाति गुप्ता, दीपा कृष्णदीप तथा प्रो ऋषभदेव शर्मा ने अध्यक्षीय काव्य पाठ किया।

संचालन और आभार प्रदर्शन

पूजा महेश, डॉ आशा मिश्रा, रामनिवास पंथी (रायबरेली) अवधेश कुमार सिन्हा, प्रवीण प्रणव, भावना पुरोहित, किरण सिंह, तृप्ति मिश्रा, डॉ पी के जैन, डॉ जी नीरजा, डॉ मंजू शर्मा, पूनम झा, ऋषि सिन्हा ने कार्यक्रम में उपस्थिति दर्ज की गई। प्रथम सत्र का संचालन शिल्पी भटनागर (संगोष्ठी संयोजिका) द्वितीय सत्र का संचालन दीपा कृष्णदीप (महासचिव ) ने किया।डॉ संगीता शर्मा (मीडिया प्रभारी) के आभार प्रदर्शन से कार्यक्रम समाप्त हुआ।

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