विश्व भाषा अकादमी: ‘स्वतंत्रता संग्राम में क्रान्तिकारियों की भूमिका’ विषय पर परिचर्चा गोष्ठी सम्पन्न

हैदराबाद (सरिता सुराणाकी रिपोर्ट) : हिन्दी भाषा और भारतीय भाषाओं के साथ-साथ सम्पूर्ण विश्व में बोली जाने वाली भाषाओं के विकास और संरक्षण हेतु गठित विश्व भाषा अकादमी, भारत की तेलंगाना इकाई की ओर से हमारे देश की आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में ‘स्वतंत्रता संग्राम में क्रान्तिकारियों की भूमिका’ विषय पर परिचर्चा एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। हैदराबाद के प्रतिष्ठित कवि और नाटककार सुहास भटनागर ने इस गोष्ठी की अध्यक्षता की। इकाई अध्यक्ष सरिता सुराणा ने सभी अतिथियों और सदस्यों का हार्दिक स्वागत किया और अकादमी के उद्देश्यों के बारे में बताया। ज्योति नारायण की सरस्वती वन्दना से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। तत्पश्चात् परामर्शदाता सुमन लता जी के पतिदेव मूर्ति सर और कार्यकारी संयोजिका सुनीता जी लुल्ला के सुपुत्र श्रीमान राजीव लुल्ला के असामयिक निधन पर दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन

प्रथम सत्र के प्रारम्भ में प्रदत्त विषय पर अपने विचार रखते हुए अध्यक्ष ने कहा कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन दो प्रकार का था- एक अहिंसक आन्दोलन और दूसरा सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन। आजादी के लिए सन् 1857 से लेकर सन् 1947 तक जितने भी प्रयत्न हुए, उनमें क्रान्तिकारियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका और योगदान रहा है। भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु और वीर सावरकर के अलावा ऐसे अनेक क्रान्तिकारियों के नाम गुमनामी के अंधेरे में खो गए हैं, जिन्होंने आजादी के लिए हंसते-हंसते अपने प्राण न्यौछावर कर दिए लेकिन आजादी के बाद उन्हें न तो वह सम्मान मिला और न ही अपने सपनों की आजादी।

तुर्कों और मुगलों ने हमारे देश को गुलाम बना लिया

चर्चा को आगे बढ़ाते हुए उपाध्यक्ष प्रदीप देवीशरण भट्ट ने कहा कि हमारा स्वतंत्रता आन्दोलन तो एक तरह से उस दिन से ही शुरू हो गया था, जब तुर्कों और मुगलों ने हमारे देश को गुलाम बना लिया था और हर तरह से लूटा। हमें क्रान्तिकारियों के साथ-साथ वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप, शिवाजी महाराज और पेशवा बाजीराव के अदम्य साहस, शौर्य और पराक्रम को नहीं भूलना चाहिए। अंग्रेजों ने शासन के साथ-साथ कुछ निर्माण कार्य भी हमारे देश में किए। आजादी का पूरा श्रेय नेहरू-गांधी ले गए और लाला लाजपतराय, सुभाष चन्द्र बोस, मदन लाल ढींगरा के योगदान को भुला दिया गया।

आज देश के लिए कौन लड़ रहा है

कोषाध्यक्ष संगीता शर्मा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हम आज भी सिर्फ उनकी चर्चा करते हैं, जो लाइमलाइट में थे लेकिन उनके अलावा ऐसे अनेक क्रान्तिकारी हुए हैं जिन्हें भुला दिया गया। जैसे- बटुकेश्वर दत्त, जिन्हें देश ने सबसे पहले तब जाना जब 8 अप्रैल, 1929 को भगतसिंह के साथ केन्द्रीय विधानसभा में विस्फोट करने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। विष्णु गणेश पिंगले, चापेकर बंधु, मास्टर दा सूर्यसेन और सरदार अजीतसिंह के अमूल्य योगदान को भी भुला दिया गया। महासचिव ज्योति नारायण ने कहा कि उस समय सब देश के लिए लड़े, आजादी के लिए अपना बलिदान दिया। आज देश के लिए कौन लड़ रहा है, सब अपने-अपने स्वार्थ के लिए लड़ रहे हैं।

महिलाओं ने भी स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया

प्रणाम पर्यटन पत्रिका के सम्पादक वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रदीप श्रीवास्तव, (लखनऊ) जो इस कार्यक्रम में विशिष्ट वक्ता के रूप में आमंत्रित थे ने अपने वक्तव्य में कहा कि सामाजिक और पारिवारिक बन्धनों में जकड़ी होने के बावजूद उस समय की महिलाओं ने भी स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। वे दुर्गा भाभी से उनके निवास स्थान पर मिले हैं, इस 2-2.30 घंटे की मुलाकात में उन्होंने बताया कि कैसे उनके घर पर काकोरी काण्ड की व्यूह रचना की गई। देखा जाए तो स्वतंत्रता आन्दोलन की शुरुआत अयोध्या और फैजाबाद से हुई। रामादेवी ने उस समय फैजाबाद के चौक में नमक बनाकर सरेआम नमक कानून तोड़ा, जिसके फलस्वरूप उन्हें 6 माह की जेल की सजा दी गई। मंगल पांडे के पूरे खानदान को खत्म कर दिया गया। माता रामराजी, सुचेता कृपलानी, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, एनीबेसेंट, भीकाजी कामा, सरोजिनी नायडू और सावित्री बाई फुले के योगदान को कैसे भुलाया जा सकता है? इनके अलावा भी ऐसी हजारों महिलाएं थीं, जिन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से भाग लिया और अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया।

सफल और सार्थक परिचर्चा

अध्यक्षीय उद्बोधन में सुहास भटनागर ने कहा कि जिनको हम भूल गए हैं, वे सब नींव की ईंट बन गए हैं। हमें अपनी मातृभूमि से जुड़े हुए रहना चाहिए। वहां के स्थानीय प्रशासन से मिलकर ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए, जिससे हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त कर सकें। अगर एक व्यक्ति 10-20 गुमनाम क्रांतिकारियों के बारे में पता लगाए तो यहां पर उपस्थित सभी सदस्यों द्वारा बहुत से लोगों का पता लगाया जा सकता है। उन्होंने सफल और सार्थक परिचर्चा के लिए सभी सहभागियों को बहुत-बहुत बधाई और साधुवाद दिया।

काव्य गोष्ठी और धन्यवाद ज्ञापन

द्वितीय सत्र में काव्य गोष्ठी में प्रदीप भट्ट ने अपनी रचना- दोस्तों की अब यही पहचान है/खंजरों के पीठ पर निशान हैं प्रस्तुत की तो ज्योति नारायण ने- आज इंकलाब को किसका इन्तजार है/देश की तबाही का कौन गुनहगार है सुनाकर श्रोताओं की तालियां बटोरी। परामर्शदाता भावना पुरोहित ने- जब मुझे कोरोना हुआ पर अपनी रचना पढ़ी तो संगीता शर्मा ने- गुलामी के तिमिर से निकल/आजादी ने एक नई सांस ली रचना प्रस्तुत की। संचालिका ने रामधारी सिंह दिनकर की कविता- समर शेष है/ढीली करो धनुष की डोरी/तरकश का कस खोलो/किसने कहा, युद्ध की बेला गई, शान्ति से बोलो का वाचन किया। संगीता शर्मा के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

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