वरलक्ष्मी का व्रत हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि से पहले वाले शुक्रवार को मनाया जाता है| इस व्रत की बड़ी मान्यता है. इस व्रत को दक्षिण भारत में बड़े श्रद्धा और भक्ति से मनाया जाता है। हालांकि इसके चमत्कारी प्रभाव के विषय में ज्ञात होने से अब उत्तर भारत के लोगों के बीच भी यह व्रत लोकप्रिय हो चला हैं। वरलक्ष्मी व्रत इस साल 20 अगस्त 2021 को मनाया जा रहा है। माना जाता है इस व्रत को करने से व्यक्ति को अष्ट लक्ष्मी मां की कृपा प्राप्त होती है।
मान्यता है कि श्रद्धापूर्वक इस व्रत को रखने से घर से गरीबी की छाया दूर हो जाती है और आने वाली आगे की कई पीढ़ियां अपना जीवन सुखमय बिताती हैं। संतानहीन दंपति को संतान सुख मिलता है और औरतों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत में कुंवारी कन्याओं का कोई काम नहीं। इस व्रत को केवल शादीशुदा औरतें ही रखती हैं। कहा जाता है कि अगर इस व्रत को पति और पत्नी दोनों मिलकर मनाये तो इसके उत्तम और शुभ फल प्राप्त होते हैं।
इस व्रत को जानने के लिए जाने इस व्रत से जुडी बातें :
- वर लक्ष्मी मां का स्वरूप
वर लक्ष्मी मां क्षीर सागर से अवतरित हुई थी, इसलिए उनका रंग दूध-सा चमकीला माना जाता है। मां को रंगीन वस्त्र पहनाया जाता है और उनका सोलह श्रृंगार किया जाता है। मां सच्चे पूजक को उनकी मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद देती हैं, इसलिए मां के इस स्वरूप को वरलक्ष्मी नाम मिला है। इस व्रत के विषय में शास्त्रों में भी उल्लेख है। ध्यान रखें कि वर लक्ष्मी की पूजा अष्टलक्ष्मी की पूजा के समान मानी गई है। यह व्रत जीवन के अभावों को दूर करने वाला है। - वरलक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त
सर्वार्थसिद्धि योग और रवियोग के शुभ संयोग के साथ इस बार का वरलक्ष्मी व्रत बहुत ही प्रभावी बन गया है। कहा जा रहा है इस बार का यह व्रत अत्यंत ही सिद्धिदायक होगा। पूजा के लिए शुभ समय 20 अगस्त की सुबह 6.06 से 7.58 बजे तक, दोपहर 12.31 से दोपहर 2.41 बजे तक और शाम 6.41 से रात्रि 8.11 बजे तक रहेगा। राहु काल को छोड़ कर आप कभी भी मां की पूजा कर सकते हैं। - पूजा विधि
दीपावली की में लक्ष्मी पूजन की तरह ही आप मां की आराधना करें। सुबह स्नान कर पूजा के स्थान पर एक चौक या रंगोली बनाएं। मां लक्ष्मी की मूर्ति को नये कपड़ों, आभूषणों और कुमकुम से सजाएं। चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर गणेश जी के साथ देवी लक्ष्मी की मूर्ति को ऐसे रखें कि पूजा करते समय आपका मुख पूर्व की ओर रहे। पूजा के स्थान पर थोड़े चावल फैलाएं। एक कलश लें और उसके चारों तरफ चन्दन लगाएं। कलश में आधे से ज़्यादा चावल भर लें। कलश के अंदर पान के पत्ते, खजूर और चांदी का सिक्का डालें। एक नारियल पर चंदन, हल्दी और कुमकुम लगाकर उसे कलश पर रखें। नारियल के आसपास आम के पत्ते लगाएं। एक थाली में नया लाल कपड़ा रखें और उस थाली को चावल पर रखें। देवी लक्ष्मी के समक्ष तेल का और गणपति के समक्ष घी का दीया जलाएं। उन्हें कुमकुम, हल्दी, चंदन पाउडर, चंदन, इत्र, फूल माला, धूप, वस्त्र, मिष्ठान आदि अर्पित करें और लक्ष्मी मंत्र का जाप करें। वरलक्ष्मी व्रत की कथा पढ़ें, आरती गायें। पूजा समाप्त करने के बाद महिलाओं को प्रसाद बांटें। - व्रत से जुडी कथा
मगध देश में कुंडी नामक एक नगर में चारुमती नाम की एक महिला रहती थी। चारुमती मां लक्ष्मी की बहुत बड़ी भक्त थी। वह प्रत्येक शुक्रवार मां लक्ष्मी का व्रत करती थी। एक बार मां लक्ष्मी चारुमती के सपने में आयीं और उसे श्रावण मास की पूर्णिमा से पहले वाले शुक्रवार को वरलक्ष्मी व्रत रखने की बात कही। मां का कहा मानकर चारुमती ने इस व्रत को विधिपूर्वक किया और मां लक्ष्मी की पूजा की। पूजा संपन्न होते ही चारुमती के शरीर पर सोने के कई आभूषण सज गए और उसका घर धन धान्य से भर गया। चारुमती को समृद्ध देखकर नगर की बाकी महिलाएं भी इस व्रत को रखने लगीं। इसके बाद नगर की सभी महिलाओं के घरों में भी धन का अभाव नहीं। तब से इस व्रत को वरलक्ष्मी व्रत के रूप में मान्यता मिली और तबसे प्रत्येक वर्ष महिलाएं इस व्रत को विधिपूर्वक करने लगीं।
– अमृता श्रीवास्तव बेंगलुरु की कलम से…