भक्ति, प्रकृति और आचरण का पर्व: कार्तिक मास का आपके लिए हैं यह खास संदेश

शरद पूर्णिमा के बाद कार्तिक मास की शुरुआत होती है। शारीरिक शक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा को संग्रहित करने में कार्तिक मास की विशेष महत्ता मानी गई। इसमें सूर्य एवं चंद्र किरणों का पृथ्वी पर पड़ने वाला प्रभाव मन मस्तिष्क को स्वथ्य रखता है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी इसे लाभकारी माना जाता है, क्योंकि शरद ऋतु में आने वाले साग सब्जियों तथा फलों को सबसे पौष्टिक और गुणकारी माना गया।

इस दौरान विविध प्रकार के व्यंजन जैसे गाजर का हलवा, तरह तरह की मिठाइयां, हरी सब्जियों से बनी डिशेज के पकवान, सरसों का साग मक्के की रोटी को खाने का विशेष चलन है। इसी माह के मध्य में पांच दिन चलने वाले बड़े पर्व दीपावली का आगमन होता है जो इस पवित्र मास की महिमा को दर्शाता है।

कार्तिक मास को प्राकृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना गया है। इसमें तुलसी के पौधे के सम्मुख दीप प्रज्वलित कर प्रात: और सायं इसकी पूजा का विधान है। शास्त्रों के अनुसार तुलसी की अर्चना करने से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है। तुलसी भगवान विष्णु को विशेष प्रिय है। इसलिए इसे विष्णुप्रिया भी कहा गया है। इस पूजा का तुलसी मंत्र “शुभं करोती कल्याणं, आरोग्यं धन संपादम, शत्रु बुद्धि विनाशय दीपं ज्योति नमोस्तुते” है।

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इस माह देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु चार महीने की निद्रा के बाद जाग्रत होते तब सभी मांगलिक कार्य आरंभ होते हैं। इस महीने में तुलसी के साथ आंवले की पूजा से पाप समाप्त होते हैं। आंवले और तुलसी को लक्ष्मी का रूप माना गया है। इस मास में रामा एकादशी ,धनतेरस, दिवाली, भाई दूज, गोवर्धन, अक्षय नवमी और तुलसी विवाह आदि त्योहार पड़ते हैं। दीपक जलाने का इस माह में विशेष महत्व है, क्योंकि शरद में दिन छोटे और रातें बड़ी होती हैं जिसकी शुरुआत कार्तिक से होती है।

इस माह में सुबह चार बजे उठ स्नान कर तुलसी के पास जलाने की रीत है। इस माह में भगवान विष्णु धरती पर जल में वास करते हैं। इसलिए माह में ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने का विशेष महत्व है। जप तप और व्रत का इस अवधि में खास महत्व है। पूरे मास में लोग एक समय का भोजन चुनते हैं क्योंकि यह एक तपस्या की तरह है जो भगवान को समर्पित है।

पुराणों के अनुसार भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने इसी मास में राक्षस तारकासुर का वध कर देवताओं को उचित सम्मान लौटाया। अतः इसका नाम उन्हीं के नाम पर कार्तिक के रूप में हुआ। जिस प्रकार सावन में भगवान शिव की पूजा का बड़ा महत्व है। इसी प्रकार कार्तिक में भगवान विष्णु की पूजा से सुख सौभाग्य की बढोतरी होती है। दीर्धायु की प्राप्ति होती है। अचानक आने वाले संकट समाप्त हो जाते हैं। इस मास दान का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार आचार, व्यवहार और आचरण के प्रति यह पुनर्जागृत होने का संदेश देता है।

पौराणिक कथानुसार शंखासुर नामक राक्षस ब्रह्मा जी से वेदों को चुरा कर भाग रहा था। वेद उसके हाथों से छूट कर समुद्र में प्रवेश कर गए। इससे देवताओं ने चिंतित हो भगवान की प्रार्थना की। इससे प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने कहा कि मैं मछली का रूप धारण कर अभी वेदों को लाता हूं। उसी समय भगवान ने यह भी कहा कि अब से कार्तिक मास सभी वेदों के साथ स्वयं जल में रहूंगा, अतः इस महिने प्रातः स्नान से मनोकामनाओं की पूर्त्ति को माना गया। कथा से जल जीवन और जनोद्धार की महत्ता तथा भावना प्रकट होती है। इसलिए कार्तिक मास को भक्ति, प्रकृति और आचरण का मास कह सकते हैं।

संदेश:

“अर्ली टू बेड, अर्ली टू राइज, मेक्स मेन हेल्दी वेल्दी एंड वाइस” यानी जल्दी सो जाना और सुबह जल्दी उठ जाने से, कोई शख्स सेहत मंद रईस बुद्धिमान बनती है।

दर्शन सिंह, मौलाली, हैदराबाद

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