आज रक्षाबंधन है। रक्षाबंधन भाई-बहनों के बीच प्रेम और सौहार्द का प्रतीक होता है। यह पर्व भाई और बहन के अटटू रिश्ते और प्यार का भी प्रतीक है। कहा जाता है कि इसकी शुरूआत 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने बांदा के तत्कालीन नवाब अली बहादुर सानी को राखी भेजकर डाली थी।
नवाब अली ने अपनी मुंह बोली बहन को राखी के उपहार में नवाब 10 हजार फौज लेकर खुद फिरंगी सेना से मोर्चा लेने झांसी पहुंच गए थे। बुंदेलखंड में आज भी रक्षाबंधन सौहार्द का संदेश देता है। तमाम मुस्लिम बहनें भी अपने हिंदू भाइयों को राखी बांधतीं हैं।
मुंह बोले हिंदू भाई भी उनकी रक्षा के वचन समेत कई उपहार देते हैं। सामाजिक और सांप्रदायिक सौहार्द की नींव 1857 की क्रांति में पड़ गई थी। अंग्रेजी सेना ने झांसी के किले को चारों तरफ से घेर लिया था। रानी लक्ष्मीबाई किले में घिर गईं थीं। रानी ने अपने डाकिए (पत्र वाहक) दुलारे लाल के हाथ बांदा नवाब अली बहादुर को राखी भेजी और उसके साथ एक पत्र भी। यह पत्र चैत्र सुदी संवत सत्र 1914 (ईसवी 1857) को भेजा।
बताया जाता है कि चिट्ठी शुद्ध बुंदेली भाषा में लिखी थी। जिसका सार यह था कि अंग्रेजों से लड़ना बहुत जरूरी है। पत्र पाते ही शीघ्र मदद को आगे आये। इतिहासकार बताते हैं कि रानी झांसी की राखी और हस्तलिखित पत्र मिलते ही नवाब अली बहादुर अपने 10 हजार सैनिकों की फौज लेकर झांसी कूच कर गये। हालांकि, उनके पहुंचने से पहले ही रानी झांसी के किले से कूदकर कालपी की ओर निकल गईं। नवाब और फिरंगी सेना में किले के बाहर भीषण संग्राम हुआ। काफी तादाद में अंग्रेज सैनिक मारे गए थे।
हमारी राय है कि विदेशियों का शासन भारत पर न भव चाहिजे और हमको अपुन कौ बड़ौ भरोसौ है और हम फौज की तैयारी कर रहे हैं। सो अंग्रेजन लड़वौ बहुत जरूरी है। पाती समाचार देवै में आवे। यह पत्र कलम और स्याही से लिखा प्रतीत होता है। इसमें न तो कोई विराम है और न शब्दों में कोई स्पेस है।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नवाब अली बहादुर सानी का वंशज अभी भी इंदौर में आबाद है। उनके परपोते नवाब जुल्फिकार बहादुर चतुर्थ ने बताया कि वह आज भी अपने बुजुर्ग अली बहादुर सानी की परंपरा को सम्मान देते हुए बरकरार रखे हुए हैं। हर साल रक्षाबंधन में हिंदू बहनें उन्हें आज भी राखी बांधतीं हैं। इंदौर में फ्रीडम फाइटर नाम से स्कूल संचालित कर रहे हैं। (एजेंसियां)