कादम्बिनी क्लब: ‘आज के समय में गांधी के आदर्शों की प्रासंगिकता’ विषय पर इन वक्ताओं ने दिया अमूल्य संदेश

आज का सुविचार:- आजादी का कोई अर्थ नहीं है यदि इसमें गलतियां करने की आजादी शामिल न हों। – महात्मा गांधी

हैदराबाद: कादम्बिनी क्लब हैदराबाद के तत्वाधान में गूगल मीट पर क्लब की 363वीं मासिक गोष्ठी क्लब अध्यक्षा डॉक्टर अहिल्या मिश्र की अध्यक्षता में आयोजित की गई। प्रेस विज्ञप्ति में आगे बताते हुए डॉक्टर अहिल्या मिश्र (क्लब अध्यक्षा) एवं मीना मुथा (कार्यकारी संयोजिका) ने कहा कि शुभ्रा महंतो ने सर्वप्रथम सरस्वती वंदना की प्रस्तुति दी।

स्वागत भाषण देते हुए डॉक्टर अहिल्या मिश्र ने कहा कि क्लब अपने 29वें वर्ष की यात्रा में आगे बढ़ रहा है और क्लब के मेंबर्स तथा नवांकुरों का क्लब से जुड़ना निश्चित ही प्रेरणा प्रदान करता है। संगोष्ठी सत्र में चर्चा हेतु श्री नारायण समीर, पूर्व निदेशक भारतीय भाषा अनुवाद कर्नाटक हमारे बीच प्रमुख वक्ता के रूप में उपस्थित हैं।

डॉक्टर नारायण समीर ने ‘आज के समय में गांधी के आदर्शों की प्रासंगिकता’ विषय पर वक्तव्य देते हुए कहा कि विश्व आज विनाश के कगार पर खड़ा है। ऐसे में आज गांधी के विचार कितना प्रासंगिक है यह बात कहीं पर प्रश्नचिन्ह भी खड़ा कर देती है। हम साहित्य को जीने वाले लोग हैं और रचनाकार समाज की स्थिति में परिवर्तन चाहता है। गांधी का सपना भी रामराज्य का था।

उन्होंने सत्य की राह पर चलकर सत्याग्रह का आदर्श रखा जो आज भी प्रासंगिक है। वे सर्व धर्म संभाव की भावना से ओत-प्रोत थे। दूसरों की पीड़ा को उन्होंने सदैव अपना समझा तथा स्वच्छता, स्वावलंबन, आत्मनिर्भरता, अहिंसा आदि को गांधीजी ने सदैव उपयोगी माना। कम समय में डॉ समीर ने गांधी के आदर्शों की प्रासंगिकता पर सटीक चर्चा की।

संगोष्ठी सत्र संयोजक अवधेश कुमार सिन्हा (नई दिल्ली) ने कहा कि गांधीजी के प्रयोगों में अंतर्विरोध भी रहा। गांधी साहित्यकारों के बीच आज भी प्रासंगिक हैं। श्री सिन्हा ने उनके अस्पृश्यता, जाति प्रथा आदि से संबंधित विचारों का उल्लेख किया और आज समाजवाद का परिवारवाद में परिवर्तित होने की समस्या की ओर इशारा भी किया। उन्होंने गांधी के विचारों का पुनरआकलन करने की आवश्यकता जताई।

संगोष्ठी सत्र संयोजक प्रवीण प्रणव ने कहा कि गांधी पर बहुत सारी किताबें लिखी गई हैं। उनकी बहुत सारी बातें हैं जो पूर्णत: सत्य नहीं है। कुटीर उद्योग आज के मशीनीकरण के युग में संभव नहीं है। सभी चीजों को पुनः पढ़ने की आवश्यकता है। फिर भी गांधीजी के योगदान को न दरकिनार किया जा सकता है और न ही भुलाया जा सकता है।

इसी कड़ी में सुनीता लुल्ला, डॉक्टर आशा मिश्रा ‘मुक्ता’ एवं डॉक्टर रमा द्विवेदी ने भी अपने विचार रखे। डॉक्टर अहिल्या मिश्र ने कहा कि जब आज़ादी के बाद मेरा जन्म हुआ तब हर घर में चरख़ा चलता था। स्त्रियाँ दोपहर में सूत काटकर रोज़ी रोटी का जुगाड़ करती थीं। गांधी के ईश्वरीय स्वरूप आज कितनी प्रासंगिकता रखती है यह हमें आज इस चर्चा में ढूँढना है। अवधेश कुमार सिन्हा के धन्यवाद के साथ संगोष्ठी सत्र का समापन हुआ।

प्रवीण प्रणव ने कवि गोष्ठी का संचालन किया। इसमें भावना पुरोहित, विनीता शर्मा, जी परमेश्वर, संतोष कुमार रज़ा, निशी कुमारी मोहन, मोहिनी गुप्ता, शिल्पी भटनागर, तृप्ति मिश्रा, चन्द्र प्रकाश दायमा, दर्शन सिंह, डॉक्टर रमा द्विवेदी, सुनीता लुल्ला, मीना मुथा, डॉक्टर आशा मिश्रा मुक्ता, प्रवीण प्रणव ने भाग लिया।

अध्यक्षीय टिप्पणी में डॉ अहिल्या मिश्र ने कहा कि सभी ने बहुत अच्छी रचनाएँ प्रस्तुत की। इसी तरह पठन पाठन के माध्यम से साहित्य का सृजन चलता रहे यही कामना करती हूँ। कार्यक्रम में भगवती अग्रवाल, नीरज कुमार सिन्हा, किरण सिंह एवं मधु भंभानी की भी उपस्थिति रही। मीना मुथा के धन्यवाद के साथ गोष्ठी का समापन हुआ। तकनीकी व्यवस्था में प्रवीण प्रणव का सहयोग रहा।

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