कादंबिनी क्लब हैदराबाद की 386 वीं मासिक गोष्ठी आयोजित, अवधेश कुमार सिन्हा ने दी राजभाषा प्रावधानों की जानकारी

हैदराबाद : कादंबिनी क्लब हैदराबाद के तत्वावधान में 15 सितंबर को डॉ मदन देवी पोकरणा की अध्यक्षता में क्लब की 386 वीं मासिक गोष्ठी का आयोजन गूगल मीट के माध्यम से हुआ। प्रेस विज्ञप्ति में डॉ अहिल्या मिश्र (क्लब अध्यक्षा) एवं मीना मुथा (कार्यकारी संयोजिका) ने बताया कि प्रथम सत्र का आरंभ शुभ्रा मोहंतों द्वारा सरस्वती वंदना की प्रस्तुति से हुआ।

डॉ अहिल्या मिश्र ने पटल पर उपस्थित सदस्यों का स्वागत करते हुए कहा कि क्लब अपने 31वें वर्ष की यात्रा में निरंतर ज्ञानवर्धक चर्चा सत्र का आयोजन साहित्यकारों के लिए करता रहा है और आगे भी यह क्रम जारी रहेगा। उन्होंने मुख्य वक्ता का परिचय देते हुए कहा कि प्रथम सत्र में हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में वी वेंकटेश्वर राव (भाषाकर्मी, सेवानिवृत्त सहायक महाप्रबंधक राजभाषा, केनरा बैंक) राजभाषा हिन्दी पर अपने विचार रखेंगे। संगोष्ठी सत्र संयोजक अवधेश कुमार सिन्हा (दिल्ली) ने विषय प्रवेश करते हुए राजभाषा संबंधी भारतीय संविधान के अनुच्छेदों पर प्रकाश डाला और संविधान में राजभाषा हिन्दी के प्रावधानों के बारे में बताया।

वी वेंकटेश्वर राव ने अपने विचार रखते हुए कहा कि सितंबर 1949 में हिंदी को राजभाषा की उपाधि मिली। उन्होंने इसके पक्ष, विपक्ष, मतभेद एवं मतदान में राजभाषा के रूप में हिन्दी की विजय आदि बिंदुओं पर चर्चा करते हुए इसके सहयोगी गोपाल स्वामी आयंगर, अंबेडकर, मौलाना अब्दुल कलाम, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, अमृता कौर, बालकृष्ण शर्मा, गोविंद बल्लभ पंत आदि महानुभावों का ज़िक्र किया और कहा कि भारत के प्रथम हिंदी अधिकारी हरिवंशराय बच्चन थे। 1955 के संविधान में नियम आया कि दूतावास में अंग्रेज़ी के साथ हिंदी में भी पत्राचार हो। 1960 में हिन्दी की व्यापकता बढ़ी। जन संपर्क से जुड़े पत्राचार में अंग्रेज़ी के साथ हिंदी भी हो यह कहा गया। 1976 में हिन्दी सलाहकार समिति का गठन हुआ। आगे सराहनीय परिवर्तन आया। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट जैसे टेक्नोलॉजी का सहारा मिला। आज ऑनलाइन क़रीब 13 लाख रचनाकार हिंदी में रचना कर रहे हैं।

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अवधेश कुमार ने प्रश्न किया कि प्राचीन भारत में पूरे भारत वर्ष में संस्कृत बोली जा रही थी। दक्षिण भारत के सभी आचार्य संस्कृत में लिख पढ़ रहे थे। अंग्रेज आए अंग्रेजी चली, मुगल आए अरबी फारसी चली। क्या कारण है कि हिन्दी नहीं चल पाई। जवाब देते हुए श्री वेंकटेश्वर राव ने कहा कि विरोध का अहम कारण राजनैतिक स्वार्थ रहा। सत्ता की लालच ने हिन्दी का सकारात्मक विकास नहीं होने दिया।

डॉ अहिल्या मिश्र ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हिंदी प्राचीन भाषा है। रामायण महाभारत काल में यह जनभाषा रही है। निज़ाम के राज्य में उर्दू सीखना ज़रूरी हो गया और आज कॉरपोरेट की दुनियाँ हिंदी को महत्व दे रही है। हिंदी संस्कृत तमिल तेलुगु से भी सरल है परंतु खेद की बात है कि हमारी कोई राष्ट्रभाषा है ही नहीं। उषा शर्मा डॉक्टर रमा द्विवेदी ने भी हिंदी पठन पाठन, एवं ड्राफ़्टिंग आदि पर अपनी बात रखी। डॉक्टर मदन देवी पोकरणा ने अध्यक्षीय टिप्पणी में कहा कि चर्चा सत्र ज्ञानवर्धक रहा। जानकर पीडा हो रही है कि वर्षों बाद भी हम जहां थे वहीं खड़े हैं। हिन्दी दिवस मनाकर ख़ुद को ख़ुश कर लेते हैं। प्रयास जारी रखें यही आशा है।

कवि गोष्ठी सत्र विनीता शर्मा की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। इसमें डॉ रमा द्विवेदी, विनोद गिरी अनोखा, उषा शर्मा, सूरज कुमारी गोस्वामी, रेशमा (10 वर्षीय बालिका), विशाल कुमार, मोहिनी गुप्ता, स्वाति गुप्ता, किरण सिंह, दर्शन सिंह, राशि सिन्हा, रचना चतुर्वेदी, ममता सक्सेना, विशाखा समीर, शोभा देशपांडे, रमा बहेड़, प्रवीण प्रणव, अवधेश कुमार सिन्हा, डॉ अहिल्या मिश्रा, मीना मुथा, समुक्ता गुनू, डॉ संध्या दास, नेहा पांडे, प्रीति जैन ने भाग लिया। डॉ आशा मिश्रा, रितु कुमारी, आलेख्या गुंदा, सुपर्णा मुखर्जी, डॉ गंगाधर वानोडे ने उपस्थिति प्रदान की। प्रथम सत्र का संचालन डॉ आशा मिश्रा ने किया। मीना मुथा ने सभी का आभार व्यक्त किया। प्रवीण प्रणव ने तकनीकी सहयोग प्रदान किया।

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