होली पर विशेष: हंसी-खुशी और प्रेम का त्योहार

आज (18 मार्च) होली है। होली को प्रेम का त्योहार भी कहा जाता है। कई लोग आज के दिन अपने पुराने मतभेदों को भुलकर हंसी-खुशी से होली खेलते हैं। घर पर दोस्तों-रिश्तेदारों के साथ रंग-अबीर लगाते हैं। दीवाली के दिन तो हम लोग आंगन में खूबसूरत रंगोली बनाते ही है। होली के दिन भी आंगन में रंगोली बनाना शुभ होता है। रंगोली सुख समृद्धि और शांति का प्रतीक है। होली के दिन लोग एक-दूसरे पर गुलाल लगाकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं। बच्चों का सबसे अधिक प्यारा त्योहार होली है। बच्चे पानी के गुब्बारों के साथ एक-दूसरे पर रंग फेकते हैं।

होली के त्योहार का एक खास महत्व है। होली का यह पावन पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा के अगले दिन पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। रंग खेलने से ठीक पहले फाल्गुन पूर्णिमा की रात में होलिका दहन किया जाता है। वैसे भी भारत की होली पूरी दुनिया में मशहूर है। ब्रज की होली तो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। होली को राधा-कृष्ण का त्योहार कहा जाता है। फुलेरा दूज से होली की शुरुआत हो चुकी है। मथुरा-वृंदावन की होली देखने के लिए तो दुनिया के कोने-कोने से लोग आते हैं। होली को राधा कृष्ण का पर्व माना जाता है।

पिछले दो साल से कोरोना के चलते रंगों का होली त्योहार फीका-फीका रहा है। लोग इस साल होली के मौके पर अपने घर में रंगोली बनाकर अपने घर को एक अलग लुक दें रहे हैं। अलग-अलग रंगों से बनी रंगोलियां देखने में बहुत खूबसूरत लगती हैं। हिंदू धर्म में रंगोली का बहुत अधिक महत्व होता है। लोग अपने घरों में हर खास त्योहारों पर रंगोली बनाते हैं। मान्यता है इसे देखकर मां लक्ष्मी प्रसन्न हो जाती हैं और घर में सुख समृद्धि आती है। हिंदू धर्म में दीवाली और होली पर रंगोली बनाना शुभ माना जाता है।

त्योहार के साथ ये भी याद रखिए कि अभी भी कोरोना हमारे बीच से पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। स्वास्थ्य को लेकर चिंता करना बहुत जरूरी है। होली की रंगों में क्रोमियम, सिलिका, लेड, सल्फेट और एल्कालाइन जैसे केमिकल्स होते हैं। कई बार इन सिंथेटिक रंगों में कांच के चूरे की मिलावट के मामले भी सामने आए हैं। वहीं सिल्वर रंग में कारसिनोजेनिक होता है। यह कैंसर के खतरे को बढ़ाता है। विशेषज्ञों की मानें तो ये रंग स्किन में तो एलर्जी की समस्या पैदा करते ही हैं। आंखों में जाने से बड़ी समस्या पैदा हो सकती है।

केमिकल से बने रंग स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी हानिकारक होते हैं। इनमें मौजूद ग्लास और डस्ट पार्टिकल्स हवा की गुणवत्ता को खराब करते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक हवा में पीएम 10 की मात्रा भी इन नकली और मिलावटी अबीर या गुलाल के इस्तेमाल से बढ़ जाती है। इसकी वजह से सांस लेने में दिक्कत और फेफड़ों से जुड़ी समस्या का भी खतरा बढ़ जाती है। शरीर का सबसे कमजोर अंग आंखें हैं अगर होली खेलते वक्त रंग आंखों में चला जाए तो सबसे पहले आंखों को बहते पानी के नीचे, अच्छी तरह साफ करें और मुंह में जाने पर पानी का कुल्ला बार-बार करें जब तक मुंह साफ महसूस न हो। मास्क के इस्तेमाल से रंग आपके मुंह में नहीं जाएगा। (एजेंसियां)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

Recent Comments

    Archives

    Categories

    Meta

    'तेलंगाना समाचार' में आपके विज्ञापन के लिए संपर्क करें

    X