तत्वा आर्ट्स की प्रस्तुति, ‘आओ कि कोई ख़्वाब बुनें’ हिंदी कविता कार्यक्रम का ऐसे हुआ भव्य आयोजन, इन कवियों ने लिया भाग

हैदराबाद : तत्वा आर्ट्स के तत्वावधान में 25 मई की संध्या सात बजे से हिंदी कविता के कार्यक्रम ‘आओ कि कोई ख़्वाब बुनें’ का भव्य आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शीर्षक साहिर लुधियानवी की प्रसिद्ध नज़्म से लिया गया जिसमें उन्होंने लिखा “आओ कि कोई ख़्वाब बुनें कल के वास्ते / वर्ना ये रात आज के संगीन दौर की / डस लेगी जान ओ दिल को कुछ ऐसे कि जान ओ दिल / ता-उम्र फिर न कोई हसीं ख़्वाब बुन सकें”।

गौरतलब है कि तत्वा आर्ट्स, हैदराबाद में शास्त्रीय संगीत से जुड़े कार्यक्रम लम्बे समय से करता आ रहा है। उन्होंने ऐसे कार्यक्रमों के लिए नये स्थलों का चुनाव किया जिनमें पार्क, तालाब, संग्रहालय आदि जगह शामिल हैं। इससे दर्शकों / श्रोताओं को कार्यक्रम का आनंद तो आया ही, साथ ही वे हैदराबाद की समृद्ध विरासत से भी परिचित हो सके।

इसी क्रम में तत्वा आर्ट्स के अखिलेश ने बताया कि हिंदी कविता के कार्यक्रम आयोजित करने का हमारा यह पहला प्रयास है जिसमें तरुणा और प्रवीण प्रणव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अखिलेश ने आगे बताया कि जब इस कार्यक्रम की रूपरेखा बन रही थी तब कुछ बिंदुओं पर हमारी एक राय थी। हम कार्यक्रम का आयोजन किसी ऐसे जगह करना चाहते थे जो आम कवि सम्मेलनों से अलग हो। जहां हिंदी कविता भी अपने उसी ‘ग्लैमर’ के साथ, उसी ‘ठसक’ के साथ खड़ी हो, जैसे हैदराबाद में अंग्रेजी कविता के कार्यक्रमों में होता है। हम मुख्य रूप से उस दर्शक वर्ग के लिए कार्यक्रम करें जो सामान्यतः हिंदी कविता से दूर रहते हैं। जो सोशल मीडिया में हिंदी कविता सुन तो लेते हैं लेकिन हिंदी कविता के किसी कार्यक्रम में उनकी प्रत्यक्ष सहभागिता नहीं रही है।

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ऐसे कार्यक्रम के लिए और ऐसे दर्शक वर्ग के लिए जगह का चुनाव आसान नहीं था, विशेषकर तब, जब किसी तरह से आर्थिक सहयोग की अपेक्षा न हो। हमने इस कार्यक्रम के लिए टिकट लगाने की योजना बनाई। हमने कई ऐसे स्थलों के बारे में विचार किया जहां कार्यक्रम मुफ़्त में या कम पैसों में किया जा सके, लेकिन जिस गुणवत्ता का ख़्वाब हम अपनी आँखों में बसा चुके थे, उसे हम ऐसे स्थलों पर साकार होता नहीं देख पा रहे थे। अंततः हमें साथ मिला डिस्ट्रिक्ट150 का जो हैदराबाद हाई-टेक सिटी में एक प्रसिद्ध कैफै है। डिस्ट्रिक्ट150 का हमारे साथ आना ऐसा था जैसे हमारे ख़्वाबों को ज़मीन मिली हो।

इस कार्यक्रम के स्वरूप के बारे में बताते हुए लेखक, कवि और साहित्यकार प्रवीण प्रणव ने कहा कि हमारी सोच स्पष्ट थी। हम कविता के साथ कोई समझौता नहीं चाहते थे। हम चुटकुलेबाजी से बचना चाहते थे। हम एक लंबी योजना पर काम करना चाहते थे। हम जानते थे कि यदि हमारे पहले कार्यक्रम में कम लोग भी आए, लेकिन यदि हमारी कोशिश ईमानदार रही, तो अगली बार हम इस चिंता से मुक्त हो चुके होंगे। बहुत सोच-समझ कर हमने इस कार्यक्रम के लिए छः कवियों का चुनाव किया। आदरणीय प्रो. ऋषभदेव शर्मा का प्रोत्साहन, सुझाव और सहयोग हर कदम पर मिला। 25 मई शाम सात बजे का समय हमने अपने इस ख़्वाब को साकार करने के लिए मुकर्रर कर दिया।

डिस्ट्रिक्ट150 की भव्यता ने इस कार्यक्रम में चार चाँद लगा दिया। 6.30 से लोगों का आना शुरू हुआ और 7.15 तक इस हॉल में बैठने की जगह नहीं बची थी। दर्शकों से पूरी तरह भरे हुए हॉल में तय समय पर कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। तरुणा ने इस कार्यक्रम के संचालन का जिम्मा उठाया, दर्शकों के अभिवादन, तत्वा आर्टस और डिस्ट्रिक्ट150 का परिचय, देते हुए उन्होंने आमंत्रित कवियों प्रो. ऋषभदेव शर्मा, प्रवीण प्रणव, मिलन श्रीवास्तव, डॉ. राजीव कुमार ‘नयन’, वर्षा शर्मा, और साकेत गुप्ता ‘साकी’ को मंच पर आमंत्रित किया। डिस्ट्रिक्ट150 के मनदीप और तत्वा आर्टस से अखिलेश ने बहुत ही खूबसूरत स्मृति चिन्ह दे कर कवियों का स्वागत किया।

कविता पाठ की शुरुआत साकेत गुप्ता ‘साकी’ ने की। जैसे किसी बड़े होटल में खाना खाते समय स्टार्टर में वेज/नॉन वेज प्लैटर में कई तरह के व्यंजन परोसे जाते हैं, वैसे ही साकेत ने प्रेम, सामाजिक समस्याएं, राजनीति आदि विषयों को अपनी कविताओं में समेटा। तहत और तरन्नुम में अपनी कविताओं से उन्होंने इस कार्यक्रम को एक मजबूत शुरुआत दी। डॉ. राजीव कुमार ‘नयन’ ने कुछ बेहतरीन मुक्तक पढे। प्रेम पर लिखी हुई उनकी प्रसिद्ध ग़ज़ल उन्होंने पढ़ी और साथ ही वर्तमान में सामाजिक समस्याओं को रेखांकित करते हुए एक बहुत ही अच्छी ग़ज़ल उन्होंने पढ़ी।

वर्षा शर्मा जी ने नारी शक्ति को समर्पित करते हुए कुछ खूबसूरत मुक्तक पढे। उनकी शृंगार रस में डूबी हुई रचनाओं को सुन कर दर्शक आनंदित हुए। मिलन श्रीवास्तव ने अपनी कविता ‘ब्लू शर्ट’, ‘ओतकी-पोतकी, ‘मेरी प्यारी छोटकी’ और ‘मेरी अम्मा के पाँव मुझे विरासत में मिले’ पढ़ कर श्रोताओं को भाव-विह्वल कर दिया। अब तक प्रेम की बातें बहुत हो चुकी थीं, प्रवीण प्रणव ने इस क्रम को जारी रखते हुए, प्रेम के विभिन्न पड़ावों से श्रोताओं को परिचित करवाया जिसे श्रोताओं ने सराहा। प्रेम से इतर कुछ शेर उन्होंने सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था पर तंज करते हुए पढे।

प्रो. ऋषभदेव शर्मा जो हिंदी ग़ज़ल में तेवरी विधा के प्रवर्तकों में से एक हैं, ने अपनी तेवरी से श्रोताओं को उत्तेजित और आनंदित किया। कार्यक्रम का समापन उन्होंने अपनी प्रसिद्ध प्रेम कविता ‘प्यार का पर्याय पूछा सिंधु से कल शाम, बालुका पर लिख गईं लहरें तुम्हारा नाम’ से किया। तरुणा ने अपने सधे हुए संचालन से इस कार्यक्रम को नियत समय पर शुरू कर, नियत समय पर समाप्त किया जो आजकल दुर्लभ है। लिपि भारद्वाज ने अपनी व्यस्त दिनचर्या से समय निकालते हुए इस कार्यक्रम की तस्वीरों को अपने कैमरे से कैद किया। तत्वा आर्ट्स के गजेंद्र जी और प्रीतीश जी ने कार्यक्रम की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

‘आओ कि कोई ख़्वाब बुनें’ एक ऐसा कार्यक्रम बन गया जहां कवि और श्रोता एकाकार हो गए। जैसे ऑर्केस्ट्रा में गायक और वाद्य यंत्रों की आवाज़, साथ में मधुर संगीत को जन्म देती है वैसे ही कविता और दर्शकों की तालियों की संगम से हॉल, इस कार्यक्रम के दौरान गुंजायमान रहा। कार्यक्रम खत्म होने के बाद, बहुत देर तक दर्शक रुके रहे, सभी कवियों से मिल कर उन्हें बताते रहे कि उनकी कौन सी कविता उन्हें पसंद आई, उनके साथ तस्वीरें लेते रहे। बार-बार पूछते रहे कि यह कार्यक्रम अगली बार कब आयोजित होगा?

तत्वा आर्ट्स का हिंदी कविता को लेकर किया गया यह प्रयास पूर्णतया सफल रहा। परंपरागत कवि सम्मेलनों से इतर, हिंदी कविता को जिस युवा पीढ़ी से जोड़ने का प्रयास तत्वा आर्ट्स ने किया, उसे दर्शकों की तरफ से भी सराहना मिली। कार्यक्रम के अंत में कवियों ने और तत्वा आर्ट्स से सभी साथियों ने, दर्शकों से जल्द ही कुछ और नई आँखों के साथ, कुछ और नये ख़्वाब बुनने की प्रतिबद्धता के साथ विदाई ली।

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