स्वस्थ महिला-स्वस्थ परिवार : क्या करें और क्या न करें

अपने स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें महिलाएं

महिला अपने परिवार की धुरी होती है, जिस पर सारा प्रबंधन निर्भर करता है। महिला चाहे गृहणी हो या कामकाजी उसकी पहली प्राथमिकता परिवार ही होता है, जिसकी देखरेख के प्रति वह इतनी समर्पित होती है कि उसे अपनी सुख-सुविधाओं अथवा फुर्सत या आराम का आभास तक नहीं होता। परंतु हर मनुष्य के जीवन में एक ऐसी अवस्था आती है जब उसकी शारीरिक क्षमता व शक्ति का हास होने लगता है चालीस की अवस्था तक पहुँचते-पहुँचते महिलाएं भी क्षीण होने लगती हैं अपने तथा बच्चों के करियर को बनाते-बनाते वह पिसने लगती है।

पुरुष भी इस अवस्था तक आते-आते परिवार के लिए अधिक सुविधाएं जुटाने के प्रति अधिक श्रम करने लगते हैं, जिसका नतीजा शारीरिक थकान, तनाव और आपसी कलह से अधिक कुछ नहीं निकलता। ऐसे में क्या किया जाए कि महिलाएं अपनी व्यस्त दिनचर्या के बावजूद थोड़ा समय अपने स्वास्थ्य के लिए भी निकाल सकें और अपने घर-परिवार में भी खुशहाल रख सकें।स्वस्थ व स्फूर्तिवान रहने के लिए सर्वप्रथम खानपान का ध्यान रखना आवश्यक होता है। अधिकांश महिलाएं अपने परिवार के सदस्यों के खानपान तो पूरा ध्यान रखती हैं लेकिन स्वयं की खुराक के प्रति लापरहवाह होती हैं। वे या तो बचाखुचा नाश्ता कर लेती हैं या खाली पेट चाय पीकर काम में लग जाती है। काम पर चली जाती हैं।

युवावस्था की यह लापरहवाह ही ढलती उम्र में एसिडिटी अपच और गैस का रूप ले लेती हैं। इसलिए महिलाओं को अपने खानपान का खास तौर पर सुबह के नाश्ते का पूरा ध्यान रखना चाहिए। नाश्ते में सप्ताह में कम से कम तीन दिन अंकुरित अनाज जरूर शामिल करें। अन्य दिनों में सुबह भीगे हये बादाम, अखरोट, अंजीर आदि ले सकते हैं। इन पदार्थों से पौष्टिक संतुलन बना रहता है और भविष्य में होने वाली रक्ताल्पता, गठिया अथवा मेनोपोज की समस्याओं से भी महिलाओं का बचाव होता होता है। दिन में कोई एक मौसमी फल अवश्य खाएं। भोजन में विभिन्न दालों को शामिल करें। दक्षिण में प्रतिदिन तुअरदाल खाने का ही प्रचलन है।

घर का सारा कार्य एक ही दिन में नहीं निपटाया जा सकता, अत: इस होड में न उलझें जो कार्य जिस दिन के लिए आवश्यक है बस वही करें। कोई काम रह भी जाए तो क्या होगा ? उसे फुर्सत के समय निपटा लें। याद रखें फिर अगले दिन सारे काम आपको ही पूरे करने है, अत: स्वयं को ज्यादा न थकाएँ।

बीच-बीच में आराम से कुछ देर बैठना कोई गुनाह नहीं। दोपहर के भोजन के बाद घर में या दफ्तर में एकांत में अपने पैर लंबे करके बैठ जाएँ इससे पैरों और घुटनों के दर्द में राहत मिलेगी। कुछ देर आँखें मूंदकर निर्विचार होने का प्रयास करें। इससे मानसिक दबाव कम होगा।

कामकाजी महिलाएं छुट्टी के दिन एकाध झपकी अवश्य लें इससे आपके दिमाग तन और मन को नई ऊर्जा मिलेगी और नई स्फूर्ति का संचार होगा। चाहे कितनी भी व्यस्तता क्यों न हो शाम को थोड़ा समय अपने बच्चों तथा परिजनों के साथ अवश्य बिताएँ, आपको भी अच्छा लगेगा, बच्चे भी सुरक्षित महसूस करेंगे और यदि घर में बुजुर्ग भी हों वे भी आनंदित होंगे। टीवी का कोई एक कार्यक्रम पूरा परिवार साथ देखे तो और भी बेहतर है।

अक्सर मैंने देखा है कि माँ ही घर का सारा काम करती हैं घर में बड़े बच्चे होने के बावजूद भी कोई कार्य नहीं सौपतीं। यह सर्वथा अनुचित है। किशोरवय के बच्चे छोटे-छोटे काम करने अपने माता-पिता को काफी राहत दे सकते हैं जैसे कि शाम की चाय बनाना, धुले कपड़ों को तह करना, बोतलें भरकर फ्रिज में रखना, वॉशिंग मशीन में कपड़े धोना, पौधों को पानी देना आदि। इससे उनमें ज़िम्मेदारी की भावना बढ़ेगी और उनका स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। कुछ परिवारों में पुत्रों से घर के काम नहीं लिए जाते, जबकि बात उन्हें भी घर के काम सिखाना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि उच्च शिक्षा अथवा नौकरी आदि के लिए अन्य शब्दों या देशों में जाने पर उन्हें अपना काम स्वयं ही करना पड़ सकता है। यदि घर के छोटे-मोटे काम वे शुरू से करते रहेंगे तो आगे दिक्कत नहीं होगी।

प्राय: महिलाओं को रात में गहरी या बिलकुल नींद न आने की शिकायत होती है। डॉक्टरों के अनुसार इसका मुख्य कारण है – अत्यधिक श्रम अथवा शारीरिक थकान। ऐसे में भूलकर भी नींद लाने की गोलियों का सेवन न करें। इसके अन्य दुष्परिणाम होते हैं जैसे- भूलना, हमेशा थकान अनुभव करना, शरीर में दर्द रहना आदि। नींद के लिए थोड़ी देर प्राणायाम, ध्यान करें, खूब हँसे, बेवजह की चिंता करना छोड़ दें, जब-जब जो-जो होना है वही होगा। हमारे चाहने से कुछ नहीं होता। संभव हो तो सोने से पूर्व हाथों-पैरों पर थोड़ा तेल मलें और हल्की मालिश करें। इससे शरीर की थकान कम होगी और अच्छी नींद आएगी। इसीलिए हमारे यहाँ सोने से पूर्व बड़े-बुजुर्गों के पैर दबाये जाते हैं क्योंकि बुढ़ापे में नींद नहीं आती है। पैर दबाने पर रक्त संचार दुरुस्त होता है और गहरी नींद आ जाती है।

हर तीन चार दिन के बाद प्रात: जल्दी उठकर अपने घर के आँगन में यदि फ्लैट में रहते है तो बालकनी में थोड़ी देर चुपचाप बैठे रहें, ईश्वर को धन्यवाद दें, प्रकृति को निहारें और शांतचित हो जाएँ। ताजी हवा में गहरी सांस लें और छोड़ें ऐसा करके तो देखिए आपको जरूर फायदा होगा। आसपास पार्क हो तो थोड़ी देर टहल भी सकते हैं। टहलते समय चिड़ियों के कलरव को सुनें , हरे वृक्षों एवं लॉन को ध्यान से देखें। इससे आपको अद्भुत आनंद आएगा।

कम से कम तीन महीने में एक बार महिलाएं अपने पति के साथ रक्तचाप और शुगर की अवश्य जांच करवाएँ। इससे कई गंभीर बीमारियों से बचाव हो सकता है। संभव हो तो प्रति माह एक अच्छी पुस्तक पढ़ना आरंभ करें और मासांत तक उसे समाप्त कर लें – किसी भी भाषा की पुस्तक। साहित्य से जीवन जीने की शक्ति और प्रेरणा का विकास होता है। और पुस्तकों से अच्छा मित्र कोई नहीं होता।

संगीत सुनने का मूड है तो जरूर सुनें काम करते-करते भी गाने सुने जा सकते है। इससे काम का तनाव कम होगा। सप्ताह में एक बार अच्छे से तैयार होकर कार्यालय जाएँ, अपनी मनपसंद चीज़ें खरीदें, पसंद का खाना खाएं। आपको भी जीने का पूरा हक है। महीने में एक बार परिवार सहित घूमने जाएँ, कहीं भी, पिक्चर भी देखा सकते हैं। इससे नयापन लगेगा। तीज त्यौहार किफ़ायत से ही सही खुले मन से मनाएँ, बच्चों को भी शामिल करें उन्हें उक्त त्यौहार का महत्व अवश्य समझाएँ इस सारे सदस्य मिलकर आरती करें और एक साथ भोजन करेंगे तो घर का वातावरण भी बदल जाएगा।

यदि कभी आप बीमार पड़ जाएँ अथवा अच्छा महसूस न कर रही हो तो परिजनों को अवश्य बताएं। स्पष्ट कर दें कि आपको 2-3 दिन आराम की जरूरत है। बीमारी में उठकर काम करने का प्रयास न करें इससे बीमारी लंबी चलेंगी और आपका चिड़चिड़ा बढ़ेगा। समय पर दवाई लें और अच्छी खुराक भी लेते रहे। स्वयं को बेचारा न समझें।

खुश रहने का प्रयास करें। उसके लिए बहुत धन-दौलत नहीं चाहिए। छोटी-छोटी बातें व चीज़ें भी काफी खुशी देती हैं। मित्रों और रिश्तेदारों के संपर्क में रहें, उनके सुख-दुख बांटें। निंदा से बचें। महिलाएं यह अवश्य याद रखें कि वे इस समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण आधार हैं स्वयं को नजरअंदाज न करें। जीवन को उत्सव की तरह जिये, रो-धोकर नहीं। आप स्वस्थ रहेंगी तो सारा समाज स्वस्थ रहेगा। याद रखें- इस दुनिया के लिए आप एक व्यक्ति है, लेकिन परिवार के लिए उनकी सारी दुनिया आप हैं।

लेखिका बेला कक्कड़

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