बहुजन संस्कृति को श्रमण संस्कृति या अर्जक संस्कृति भी कहा जाता है। बहुजन लोगों ने मिलकर इसी तर्ज पर एक अर्जक संघ नामक संगठन की स्थापना भी की है। भारत के लगभग सभी हिस्सों में इस श्रमण संस्कृति का सौंदर्य श्रम करने वाली जातियों के उन श्रमगीतों में दिखता है, जिन्हें बहुजन समाज की विभिन्न जातियां पारंपरिक रूप से गाती चली आ रही हैं, हालांकि अभी इनके संरक्षण की वृहद स्तर पर आवश्यकता है। इनके विलुप्तप्राय होने का प्रमुख कारण यह है कि समुदाय विशेष के लोगों में अपनी इस श्रमण संस्कृति के प्रति एक तरह का उपेक्षा भाव जन्म ले चुका है।
बहुजन समाज की नई पीढ़ी
यह अलग बात है कि उच्च जाति के लोगों द्वारा इन्हीं श्रमण संस्कृति के गीतों को अपनाकर, गाकर संस्कृति मंत्रालय से फंड प्राप्त करना, संस्कृति मंत्रालय में ऊंचे ओहदे प्राप्त करना और आजीविका चलाने का चलन देखा जा सकता है। यहां यह बात उल्लिखित करना आवश्यक जान पड़ता है कि उच्च जातियों की अपनी कोई श्रमण संस्कृति या श्रम गीत नहीं है। जब तक बहुजन समाज की नई पीढ़ी इस संस्कृति के प्रति रुचि नहीं रखेगी यह आगे नहीं बढ़ पाएगी।
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थकान को मिटाने या भुलाने
ऐसा माना जाता है कि इन गीतों को इन्होंने अपने पारंपरिक पेशों को करने के दौरान हुए श्रम से उपजी थकान को मिटाने या भुलाने और स्वयं के या अपने समूह के लोगों के मनोरंजन हेतु इजाद किया गया होगा। इसके साथ ही बहुजन समाज की विभिन्न जातियों का अपना नाच भी होता था/है।
धोबिया नाच या धोबिया नृत्य
धोबी समुदाय का अपना नृत्य भी है जिसे धोबिया नाच या धोबिया नृत्य भी कहा जाता है। धोबिया नृत्य के नर्तक स्व. बाबू नंदन जी ने इस क्षेत्र में अपनी ख्याति अर्जित की और धोबिया नाच की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए कई बड़े मंचों पर परफॉर्मेंस देकर देश-विदेश तक पहुंचाया। हालांकि उनकी विरासत को उनके परिवार के लोग और उनके शिष्य आगे बढ़ा रहे हैं पर उनके द्वारा किए जा रहे प्रयास को और गति दिए जाने की जरूरत है।
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धोबी गीत या धोबियऊ गीत
इसी तरह का एक गीत हमारे समुदाय का भी है जिसे धोबी गीत या धोबियऊ गीत कहा जाता है। वैसे तो धोबी गीत अपने आप में एक विधा/शैली बन गई है जो आपको यूट्यूब पर बहुत मिल जाएंगे पर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने हेतु गायकों द्वारा उनमें फूहड़ता का पुट बहुत अधिक समावेशित किया जा रहा है।
प्रस्तुत है विशुद्ध रूप से धोबियऊ गीत की एक बानगी।
धोबी जाति जिस गीत को गाती है उसे धोबियऊ गीत कहते हैं। एक गीत में धोबी अपनी पत्नी से कह रहा है कि कल घाट (नदी के किनारे का वह स्थान जहां धोबी कपड़ा धोता है) पर चलना है। अत: खाने के लिए मोटी लिट्टी (रोटी का ही मोटा रूप) बना लेना और साथ में टिकिया, तंबाकू और थोड़ी सी आग लेना मत भूलना।
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यह गीत इस प्रकार है– ‘मोटि मोटी लिटिया लगैहे धोबिनियां कि बिहिने चले के बा घाट। तीनहिं चीजें मत भूलिहै धोबिनियां कि टिकिया, तमाकू, थोड़ा आग।’ धोबी जाति के लोग अपने उत्सवों में समूह में नाचते और गाते हैं। इस गाने में ‘हुडका’ नामक बाजा बजाते हैं इसलिए कुछ लोग इसे ‘हुडका’ नाच भी कहते हैं। हालांकि इसके संरक्षण हेतु अपेक्षित प्रयास में समुदाय की सहभागिता नितांत आवश्यक है जिससे इसे विशुद्ध रूप में बचाया और बढ़ाया जा सके।
नोट: यह गीत- Tore Kaaranva Na Re Dhobiniya [Full Song] Boliye Mein Jaan Ba- Dhobi Lachari Geet यूट्यूब पर सुना और देख जा सकता है।
लेखक- नरेन्द्र दिवाकर
सुधवर, चायल, कौशाम्बी (उप्र)
मोबाइल नंबर- 9839675023