सूत्रधार संस्था का बसन्तोत्सव एवं फाल्गुन महोत्सव, वक्ताओं ने डाला पौराणिक परंपरा पर प्रकाश

హైదరాబాద్ (రిపోర్ట్ సరితా సురానా): సూత్రధార్ లిటరరీ అండ్ కల్చరల్ అసోసియేషన్, ఇండియా హైదరాబాద్ ఆధ్వర్యంలో ఆదివారం ఆన్‌లైన్‌లో 34వ మాస సదస్సు నిర్వహించారు. బసంత్ మరియు హోలీ పాటల ఆధారంగా సదస్సు జరిగింది. వ్యవస్థాపకురాలు సరితా సురానా సభ్యులు మరియు అతిథులందరికీ సాదరంగా స్వాగతం పలికారు మరియు డా. సుమన్ లతను అధ్యక్షతన వేదికపైకి ఆహ్వానించారు. శ్రీమతి కల్పనా డాంగ్ సరస్వతీ వందనాన్ని మధురమైన స్వరంతో అందించారు.

हैदराबाद (रिपोर्ट सरिता सुराणा) : सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, भारत हैदराबाद द्वारा रविवार को 34 वीं मासिक गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया गया। यह गोष्ठी बसन्त और होली के गीतों पर आधारित थी। संस्थापिका सरिता सुराणा ने सभी सदस्यों और अतिथियों का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया और डाॅ. सुमन लता को अध्यक्षता हेतु मंच पर आमंत्रित किया। श्रीमती कल्पना डांग ने सुमधुर स्वर में सरस्वती वन्दना प्रस्तुत की।

होली के आध्यात्मिक महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए सरिता सुराणा ने कहा कि पौराणिक धर्म ग्रंथों में वर्णित है कि श्रीकृष्ण और 22वें तीर्थंकर श्री अरिष्टनेमि चचेरे भाई थे। अरिष्टनेमि ने जब बारातियों के भोजन के लिए बाड़े में बांधे हुए मूक पशुओं का करुण क्रंदन सुनकर राजकुमारी राजीमती से शादी करने से इंकार कर दिया तो श्रीकृष्ण ने उन्हें सांसारिक प्रवृत्तियों की ओर वापस मोड़ने के लिए अपनी रानी सत्यभामा को कुछ उपाय करने को कहा।

तब उन्होंने रंगोत्सव का आयोजन किया, जिसमें श्रीकृष्ण और उनकी सभी पटरानियां और अरिष्टनेमि शामिल हुए लेकिन होली के रंग में उनके वैराग्य का रंग और गहरा हो गया और उन्होंने संयम पथ स्वीकार कर लिया। तब से ही होली खेलना आरम्भ हो गया। दूसरा कारण हिरण्यकशिपु और प्रहलाद भक्त का है, जिसके बारे में हम सभी जानते हैं।

डॉ.सुमन लता ने कहा कि दक्षिण भारत में होली को मदनोत्सव भी कहा जाता है। जैसे पतझड़ में पेड़ों से पुराने पत्ते झड़ने पर नए पत्ते आते हैं वैसे ही ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ऋतु परिवर्तन के साथ ही हमारे विचारों में भी परिवर्तन आते हैं। पकवान बनाकर खिलाने और उत्सव मनाने की परम्परा बहुत पुरानी है।

तत्पश्चात् काव्य गोष्ठी में उपस्थित दर्शन सिंह ने पंजाबी लोकगीत- नहीं जदो तूं चौबारे उते चढ़ दी जैसा सरस गीत प्रस्तुत किया तो बिनोद गिरि अनोखा ने भोजपुरी गीत सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। कोलकाता से श्रीमती हिम्मत चौरड़िया ने जोगीरा की धुन पर अपना गीत-आओ मिलकर खेलें होली/डालें सब पर रंग प्रस्तुत करके सबका मन मोह लिया, वहीं श्रीमती सुशीला चनानी ने शृंगार का नख-सिख वर्णन करते हुए बहुत ही सुन्दर गीत प्रस्तुत किया।

उदयपुर, राजस्थान से श्रीमती उर्मिला पुरोहित ने- शशि की धवल रश्मियों से/निखरी हरसिंगार की डाली जैसी रचना प्रस्तुत की तो सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल से डा बबीता अग्रवाल कंवल ने- पाती प्रेम की भेजूं रे कान्हा/आन मिलो जैसा भावपूर्ण गीत प्रस्तुत किया। प्रदीप देवीशरण भट्ट ने- मो पे कोई रंग चढ़े ना/मुझे वचन दिया हरनाम ने प्रस्तुत किया तो संतोष रजा गाजीपुरी ने अपने चिर परिचित अंदाज में अपनी गज़ल प्रस्तुत की।

श्रीमती सुनीता लुल्ला ने लोकगीत के साथ ही एक गीत- गीत लबों पर जो आया है होली में प्रस्तुत किया और डाॅ. संगीता शर्मा ने-मथुरा हो या वृंदावन/ढूंढे तुझे मृगनयनी रे जैसे भावपूर्ण गीत प्रस्तुत किया। सरिता सुराणा ने मीराबाई रचित होली गीत- होली खेलत है गिरधारी/मुरली चंग बजत डफ न्यारो/संग जुबती ब्रजनारी की प्रस्तुति दी तो कटक, उड़ीसा से श्रीमती रिमझिम झा ने- राधा हाथों में लेकर कबीर थाली, गुलाल थाली/कान्हा मारे पिचकारी जैसा सरस गीत प्रस्तुत किया।

रिमझिम झा ने काव्य गोष्ठी का संचालन किया और दर्शन सिंह ने सभी का आभार प्रदर्शन किया। श्रीमती भावना पुरोहित भी गोष्ठी में उपस्थित थीं। होली की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

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