पुस्तक का नाम : राजभाषा सहूलियतकार
लेखक : डॉ वी वेकटेश्वर राव
प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली
प्रकाशन वर्ष : 2023
मूल्य ₹ 750/-
डॉ वेंकटेश्वर राव की पुस्तक ‘राजभाषा सहूलियतकार’ हिन्दी के कार्यालयीन क्रियान्वयन के लिए उपयोगी है। सहूलियतकार शब्द से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि हिन्दी को व्यवहार की भाषा में सरलतम दिशा में ले जाए जाने की जरूरत है। पर इस पुस्तक का उद्देश्य केन्द्र सरकार के समस्त कार्यालयों, बैंक एवं सार्वजनिक उपक्रमों हिंदी के प्रयोग से संबंधित दिशा-निर्देशों के अनुपालन से संबंधित है। लेखक ने केन्द्र सरकार की भाषा-नीति, हिंदी के प्रयोग और निरंतर प्रशिक्षण की दृष्टि से समस्त आदेशों का संचयन किया है।
संघ की राजभाषा नीति में समय -समय पर बदलाव हुए हैं। जो संवैधानिक प्रावधान हैं, उनका संचयन और स्पष्टीकरण प्रारूपों के साथ किया है। दिशा तो प्रयोजनमूलक हिंदी की भी है, पर यह पुस्तक केवल राजभाषा हिंदी के सरकारी प्रयोग, प्रशिक्षण, निरीक्षण, अनुपालन, संसदीय निरीक्षण तक सीमित नहीं है। राजभाषा हिन्दी के लिए पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन, संबद्ध विभाग में इस हिन्दी के प्रयोग के प्रारूप, पारिभाषिक शब्दावली, राजभाषा मास में हिंदी में सृजनात्मक प्रतियोगिताएँ, प्रदर्शनियां, वार्षिक सम्मेलन, प्रशिक्षकों के साथ संगोष्ठियों के आयोजन आदि के क्रियान्वयन की सकर्मक निरंतरता के लिए यह पुस्तक मार्गदर्शन करती है।
किसी भी विभाग में केन्द्रीय स्तर से लेकर लघुतम इकाइयों तक हिन्दी के प्रशिक्षण की व्यवस्था में राजभाषा अधिकारियों की भूमिका, पर्यवेक्षण और अनुपालन, दस्तावेजों के अनुरक्षण, कार्यालयीन कामकाज में हिन्दी टिप्पणियां, पत्राचार और प्रशिक्षण संबंधी परीक्षाओं के आयोजन एवं लेखा प्रक्रिया से कार्यालयीन कामकाज में हिन्दी संवर्धन की दिशा तय होती है। अंकेक्षण और निरीक्षण में कोई आपत्ति न आए इसके लिए सरकार द्वारा आदेश जारी किये गये हैं। ये सभी इस पुस्तक में उपल्ब्ध हैं।
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कार्यालयीन कामकाज में हिंदी की प्रगति का मूल्यांकन, प्रोत्साहक योजनाएँ, आभिलेखन एवं रिपोर्टिंग की नियमितता से कर्मचारियों में हिन्दी के व्यवहार की दिशा में स्पष्ट होती है। सभी स्तरों पर समितियों, निरीक्षण अधिकारियों की कार्यसूची एवं संयोजकों की भूमिका निर्धारित की गयी है।
हिंदी के संवर्धन के लिए पुस्तकालय, पत्रिकाओं का प्रकाशन, राजभाषा मास में कर्मचारियों के बीच सृजनात्मक प्रतियोगिताएँ, प्रदर्शनियों के आयोजन की रूपरेखा इस दिशा में उपयोगी है। राष्ट्रीय और नीचे के स्तर पर पुरस्कारों के लिए आयोजन खर्च से प्रावधान हैं। विभागीय कर्मचारी से लेकर शीर्ष स्तर पर उत्तरदायित्व सुनिर्धारित हैं। यह पुस्तक उन आदेशों, प्रारूपों, प्रशासनिक शब्दावली, निरीक्षण व्यवस्थाओं के लिए दस्तावेजी संकलन है और उनकी संगत व्याख्या भी मौजूद है।
राजभाषा हिंदी के क्रियान्वयन के लिए संसदीय समितियों के निरीक्षण के प्रावधान और प्रतिवेदन जरुरी हैं। इनके नियम और निरीक्षण व्यवस्थाओं के लिए भी संगत आदेश हैं। इसलिए यह पुस्तक तत्काल संदर्भ (रेडी रेकनर) जैसी है। लेखक ने आदेशों-नीतियों का दस्तावेजीकरण ही नहीं किया है, बल्कि सहूलियत के लिए उनकी संगत धारणा भी स्पष्ट की है। यह पुस्तक कार्यालयीन प्रशासन के लिए संदर्भ ग्रंथ भी है और प्रत्येक विभागीय प्रक्रिया में उपयोगी है।
समीक्षक : बी एल आच्छा
फ्लाट नं 701, टावर 27
नॉर्थ टाउन अपार्टमेंट
स्टीफेंशन रोड (बिन्नी मिल्स)
पेरंबूर, चेन्नई -600012
मो. 9425083335
कार्यालयीन हिंदी प्रयोग करने में सहयोगी है ‘राजभाषा सहूलियतकार’
केनरा बैंक के राजभाषा विभाग से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हैदराबाद वासी डॉ वी. वेंकटेश्वर राव की 504 पृष्ठों की बृहत पुस्तक ‘राजभाषा सहूलियतकार’ का राजकमल प्रकाशन समूह के राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली से आना सभी हिंदी सेवियों के लिए अत्यंत उपयोगी है। इन जैसे भाषाविद और चिंतक द्वारा ऐसी पहल अत्यंत प्रेरक है। दक्षिण भारतीय होकर इनके द्वारा इस पुस्तक का लेखन राजभाषा हिंदी के प्रति इनकी विशिष्ट सकारात्मकता को रेखांकित करता है।
सरकार की तमाम कोशिशों से इतर इस तरह की पहल के परिणाम निस्संदेह अधिक प्रभावी होते हैं। यह कहना गलत न होगा कि सरकारी सेवा में रहते हुए की गई भाषाई गतिविधियाँ काफी हद तक सीमित ही रह जाती हैं, मगर इन्हीं के बीच डॉ राव जैसे अधिकारी इसे वृहत्तर रूप में देखते हैं और उनका योगदान अभियान में बदल जाता है। यह पुस्तक सहूलियतकार होने से भी पहले किसी के मन में हिंदी में काम करने की प्रेरणा जगाती है। साथ ही हिंदी के राजभाषा बनने की कथा यात्रा हर पाठक के भीतर दायित्व बोध को भी जगाती है जिसके बिना राजभाषा कार्यान्वयन संभव नहीं।
यह पुस्तक सरकारी तथा अन्य कार्यालयों में भी हर कदम पर मार्गदर्शक की तरह अपनी भूमिका में मुस्तैद दिखाई पड़ती है। सहूलियतकार पुस्तक हर कार्यालय में, हर राजभाषा कार्यान्वयनकार के पास अनिवार्य रूप से उपलब्ध होनी चाहिए। इसके समुचित प्रयोग से राजभाषा कार्यान्वयन में निश्चय ही गति आएगी और लोगों के भीतर हिंदी में काम करने की भावना प्रबल होगी।
अलका सिन्हा
प्रतिष्ठित साहित्यकार व मीडिया कर्मी
नई दिल्ली