गांधी जी के सत्याग्रह आंदोलन की स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका और हमारा कर्तव्य

सत्याग्रह का मूल अर्थ है सत्य के प्रति आग्रह। सत्य को पकड़े रहना और इसके साथ अहिंसा को मानना। अन्याय का सर्वथा विरोध करते हुए अन्यायी के प्रति वैरभाव न रखना, सत्याग्रह का मूल लक्षण है। धैर्य एवं सहानुभूति से विरोधी को उसकी गलती से मुक्त करना चाहिए। धैर्य का तात्पर्य कष्ट सहन से है। इस सिद्धांत का अर्थ हो गया “विरोधी को कष्ट अथवा पीड़ा देकर नहीं, बल्कि स्वयं कष्ट उठाकर सत्य का रक्षण।”

वास्तव में महात्मा गांधी जी ने 11सितंबर 1906 को सत्याग्रह पहली बार इस्तेमाल किया था। इसका इस्तेमाल उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ किया था। सन् 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत पहुंचे तो उन्होंने देखा कि कांग्रेस केवल संभ्रांत शहरी भारतीयों का एक क्लब था। जो छोटे शहरों और गांवों में आम आदमी के साथ नहीं जुड़ा था। इस कमी में सुधार किया गया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जैसी संस्था को पूर्ण स्वतंत्रता का लक्ष्य देकर संघर्ष में कूद पड़े। क्योंकि प्रथम विश्व युद्ध में वचन देकर भी अंग्रेज सरकार ने भारतीयों के प्रति अपने रवैये में परिवर्तन नहीं किया था। गांधी जी ने अंग्रेजी कानूनों का बहिष्कार एवं सत्याग्रह का बिगुल बजा दिया।

चम्पारण सत्याग्रह (अप्रैल 1917) :
अंग्रेजों ने व्यवस्था रखी थी कि हर बीघे में तीन कट्ठा जमीन पर नील की खेती करनी होती थी। इसके उत्पादन से किसानों को कुछ मिलता नहीं था। उसपर उन पर 42 तरह के अजीब कर डाले गए थे। गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह और अहिंसा का आजमाया हुआ अस्त्र ” सत्याग्रह” पहली बार चंपारण में किया। 135 सालों से चली आ रही नील की खेती बंद हो गई। किसानों का शोषण हमेशा के लिए बंद हो गया। इस तरह किसानों में विश्वास जागा। ये किसान गांधी जी की विचार धारा से जुड़ गए। परिणाम भारत को स्वतंत्रता दिलाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यहीं उन्होंने निर्णय लिया कि आगे एक ही कपड़े में गुजर बसर करेंगे। इस आंदोलन के बाद उन्हें महात्मा की उपाधि मिली थी।

दांडी सत्याग्रह (नमक मार्च):
भारत में अंग्रेजों के शासन काल में नमक उद्पादन और विक्रय पर भारी मात्रा में कर लगा दिया गया। नमक जीवन के लिए आवश्यक होने के कारण, इस कानून से मुक्ति दिलाने के लिए 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से अपने 78 लोगों को साथ लेकर समुद्री गांव दाड़ी तक 240 किलो मीटर लंबी पैदल यात्रा की। हजारों लोग शामिल हुए। कानून तोड़ने में सफलता मिली। इस तरह गांधी जी पर विश्वास बड़ता गया और लोग गांधी जी के सिद्धांतों के साथ जुड़ने लगे। भारत को स्वतंत्रता दिलाने में एक कदम और नजदीक पहुंच गए।

खेड़ा सत्याग्रह :
गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों का अंग्रेजी सरकार की कर वसूली के विरुद्ध सत्याग्रह। सन 1918 में गुजरात में पूरे साल की फसल मारी गई। स्थिति को देखते हुए लगान को माफ कर देना चाहिए। उल्टे किसानों के मवेशी, खेत व अन्य सामान कुर्क की जाने लगी। किसानों की प्रार्थनाएं निष्फल हुई। गांधी जी ने किसानों को सत्याग्रह मंत्र अपनाने को कहा। अंततः सफलता मिली। कर माफ कर दिया गया।

बारडोली सत्याग्रह (1928) :
किसानों के लगान में 30 फीसदी की बढोतरी की गई। सरदार पटेल के साथ मिलकर बारडोली सत्याग्रह की गया। भारत वासियों के मानवाधिकारों का हनन करने वाले रॉयल एकट का स्थान स्थान पर विरोध होने लगा।सन 1919 में जालियां बाग में हो रही विरोध सभा पर हुए अत्याचार (जिसमें 1000 लोग मारे गए और 1600 – 1700 लोग घायल हो गए)। गांधी जी की अंतरात्मा को हिलाकर रख दिया। उन्होंने पूरी स्वतंत्र आंदोलन की बागडोर अपने हाथ में ले ली।

अंग्रेजों भारत छोड़ो इसका संकेत पाते ही सारे देश में विरोधी आंदोलन की आंधी सी छा गई। अंग्रेजी सरकार की लाठी गोलियां भी अंधाधुन बरसने लगी। जेल सत्याग्रहियों से भर गई। 1857 की महान क्रांति पर काबू पा लेने वाली अंग्रेजी सरकार गांधी जी के सामने पस्त नज़र आने लगी। सन 1942 में मुंबई कांग्रेस के अवसर पर गांधी जी द्वारा अंग्रेजों को चेतावनी “अंग्रेजों भारत छोड़ो” और भारतवासियों को “करो या मरो” को जो भीषण परिणाम निकला, अंग्रेज घबरा गए और देश छोड़ने के लिए बाध्य हो गए। फलतः 15 अगस्त 1947 के दिन भारत को स्वतंत्र कर अंग्रेज इंग्लैंड लोट गये।

संदेश

जिन अंग्रेजों ने हमारे देश पर दो सौ वर्षों तक शासन किया, जिनके राज में सूर्य अस्त नहीं होता था। वे गांधी जी के अहिंसा (सत्याग्रह) के सामने पस्त हो गए। तो क्यों हम नाहक सांप्रदायिकता की आग में झुलस रहे हैं। आज हम बेवजह सड़कों पर आ जाते हैं। इसमें आम आदमी त्रस्त हो जाता है। जिन्होंने आग में घी डाला या जो खेल में माहिर होते हैं, वे अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। वे कहावत ” सांप भी मरे, लाठी भी न टूटे” से भलीभांति अवगत होते हैं।

इस समय जो रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध, इसराइल और फिलिस्तीन के बीच युद्ध को गांधी जी के “अहिंसा परमो धर्म” पर सुलझाया जा सकता है। “बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध लेई ” को अपनाना चाहिए। “नेकी और पूछ पूछ” , गांधी जी के सिद्धांत “सत्याग्रह” को जीवन में अपनाए और “सर्वे भवन्तु सुखिन:” व ” वसुधैव कुटुंबकम” को सार्थक बनाए।

लेखक दर्शन सिंह, मौलाली, हैदराबाद

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