‘कविताएं मूलतः दो स्रोतों से जन्म लेती हैं। एक जीवन अनुभव और दूसरा विचार’। (डॉ. निखिल आनंद गिरि) रामकिशोर उपाध्याय के कविता संग्रह ‘नचिकेता, मैं नहीं’ को पढ़ना शुरू किया तो पाया कि कवि के पास जीवन का अनुभव और उस अनुभव को लेकर सोच-विचार करने की क्षमता दोनों ही है। 97 कविताओं का फूलदान अगर इस पुस्तक को कहा जाए तो गलत नहीं होगा। खासियत यह है कि यह फूलदान विभिन्न प्रकार के जीवंत फूलों अर्थात् समकालीन विषयों से सजा हुआ है। इस
फूलदान को ‘अशोक’ वृक्ष की भरपूर शोक विहीन छाया मिली है। कवि के शब्दों से ही समझ आ रहा है कि कवि उस छाया में कितने परितृप्त हैं –
तुम हो वैजयंती
तुम हो रसवंती
जीवन के झंझावातों में
बकुल, कदंब और पारिजात के मध्य
बस सीधा खड़ा रहा वृक्ष एक अशोक
वो केवल तुम हो मेरी ‘अशोक’ 1
अशोक इनकी स्वर्गीय पत्नी का नाम है। कवि ने उन्हीं को प्रस्तुत समर्पित भी किया है। पत्नी के समर्पण को स्वीकार कर अपनी भावनाओं को लिपिबद्ध करना तो स्वाभाविक ही है। लेकिन ध्यान देने वाली बात यह भी है कि व्यक्ति, व्यक्ति होने के साथ ही साथ अगर साहित्यकार भी है तो फिर व्यक्तिगत भावनाओं से आगे जाकर सामाजिक उत्तरदायित्व निभाना उसका प्रमुख कर्तव्य बन जाता है। कवि अपने उत्तरदायित्व से भलीभाँति परिचित हैं लेकिन उपदेश देने से बेहतर उनको चुटीले अंदाज़ में सुझाव देना भाता है। अवश्य ही निम्न पंक्तियाँ सटीक उदाहरण है –
हंसध्वनि : ‘सौ कंठ रवींद्र गान’ का भव्य संगीत कार्यक्रम
तभी एक मर्द पास आकर मुस्काया
बोला हैलो रामकिशोर!
मैं ही हूं तुम्हारा चितचोर
सुनकर मेरा सर चकराया
हमने जिसको समझा था वैशाली
वो निकला बूढ़ा माली
समझते ही हमारे इश्क की निकल गई फूंक
भैया जान गई हमारी गई सूख
दे गई ये घटना हमको एक सबक
फेसबुक पर मत देना दिल, बुड़बक 2
मज़ाकिया अंदाज़ में लिखी गई इन पंक्तियों में समकालीन समाज की बहुत बड़ी समस्या ‘साईबर क्राइम’ की ओर हमारा ध्यानाकर्षित करने की क्षमता है। प्रस्तुत कविता संग्रह का नाम है ‘नचिकेता मैं नहीं’। नचिकेता के नाम से तथा उनके व्यक्तित्व से हम सभी परिचित हैं। उनके प्रश्न केवल प्रश्न नहीं थे, ईश्वरत्व को भी चुनौती देने वाले प्रश्न थे। ऐसे प्रश्न वही पूछ सकता है जो सचेत होता है अपने कर्तव्यों तथा अधिकारों के प्रति और जो लक्ष्य रखता है विश्व कल्याण का और मानव कल्याण का। कवि ने भले ही कहा हो ‘नचिकेता, मैं नहीं’ लेकिन उनकी चेतना सजग है। जैसे नचिकेता ने ‘अग्नि विद्या’ का वरदान माँगा था मनुष्य मात्र की भलाई के लिए ठीक उसी प्रकार कवि उस धूप को ठुकरा देते हैं जो भूखे को रोटी नहीं दे सकता। कवि लिखते हैं-
ऐसा नहीं केवल चाँद और रात ही पसंद है
किंतु, मुझे पसंद नहीं… वो धूप
जो कर देती है धरती को बंजर
जो दे नहीं सकती भूखे को रोटी का एक निबाला’ 3
नचिकेता जन्म-मृत्यु का भेद समझना चाहते थे ताकि वे मनुष्य की पीढ़ा को कम कर सके और कवि यह देखकर हैरान है-
तप्त धरती पर वो खड़ा
नंगे पैर के लिए
लोग जंगल काट रहे हैं
एअर कंडिशनर की खिड़की के लिए 4
कवि हैरान है लेकिन कर्तव्यविमूढ़ नहीं। उन्हें अपने अधिकारों का ज्ञान है, साथ ही अपने कर्तव्यों के प्रति वे सचेत हैं। तभी तो ‘धर्मराज’ को प्रतीक के रूप में लेकर वे‘सिस्टम’ को ललकार रहे हैं।
यद्यपि मैं नचिकेता नहीं हूँ
फिर भी धर्मराज!!
तुम स्वयं को मुक्त मत समझना
तुम से तीन नहीं कम से कम
एक प्रश्न करने का अधिकार मेरे पास है सुरक्षित
और समय आने पर
वह एक प्रश्न तो मैं अवश्य करूँगा !! 5
नचिकेता केवल एक नाम नहीं है, नचिकेता भारतीय संस्कृति, भारतीय ज्ञान परंपरा, भारतीय आध्यात्म और दर्शन के साथ जुड़ा हुआ वह स्तंभ है जो भारतीयों को संस्कार और सभ्यता के साथ जोड़ता है। अब जब बात संस्कार और सभ्यता की चली है तो कविता संग्रह का अध्ययन करने से यह स्पष्टत: ज्ञात हो जाता है कि कवि रामकिशोर उपाध्याय जी पेशे से Indian Railway Accounts Service यानी भारतीय रेलवे के साथ जुड़े हुए थे। उन्होंने संपूर्ण भारत को देखने के साथ ही साथ विश्व के भी एकाधिक देशों को देखा। लेकिन उपाध्याय जी का देखना एक साधारण व्यक्ति का देखना नहीं था उनके देखने में कवि मन और जिज्ञासु हृदय का समावेश लगातार बना रहा। जिज्ञासु व्यक्ति सहज ही ज्ञान लाभ करता है क्योंकि उसकी जिज्ञासा उसे लगातार सीखने के लिए प्रेरित करती है। ‘डेन्यूब…कहे गंगा से’ कविता इंगित करती है कि कवि को भारतीय संस्कृति और सभ्यता के साथ ही साथ विश्व संस्कृति और सभ्यता का भी ज्ञान है। यह ज्ञान केवल पुस्तकीय ज्ञान नहीं है। इसके विपरीत समकालीन राजनीति, पर्यावरण, सामाजिक, धार्मिक आदि से संबंधित घटनाओं के सकारात्मक और नकारात्मक पक्षों की सटीक विश्लेषण करने में सक्षम है कवि का ज्ञान।
निम्न पंक्तियों को उदाहरणस्वरूप देखना प्रासंगिक होगा-
मुझे आज फिर एक राजा ने गोद लिया
लगा किसी ने मुझ से विनोद किया
मैं मोक्ष-दायिनी होकर भी स्वच्छ नहीं
काला-काला जल लेकर ही आज हर ओर बही
सब भूल गए मेरा इतिहास…
गंगा! तुम मत हो उदास
मैं कहती हूँ इस कवि से…
ले जाए मुझ से यह विश्वास
देव कुल में जन्म से नहीं…
जन-जन की आकुलता से होता है विकास 6
97 कविताएं अपने शब्द, अर्थ, भावना आदि के उत्कृष्ट स्वरूप को प्रस्तुत करने में सक्षम है। कुछ कविताओं को ही उदाहरण के रूप में लिया जा सका है। ‘नचिकेता, मैं नहीं’ केवल एक काव्य संकलन नहीं है भविष्य के युवा कवियों के लिए यह मार्गदर्शक बनने योग्य है क्योंकि कवि ने व्यक्तिगत अनुभव के साथ प्रस्तुत संकलन को शुरू किया और उसे विश्व जीवन के साथ प्रकार से जोड़ दिया है यह प्रस्तुत कविता संकलन की अपनी अलग विशेषता है।
संदर्भ सूची
⦁ ‘नचिकेता, मैं नहीं’ पृष्ठ संख्या-14
⦁ ‘नचिकेता, मैं नहीं’ पृष्ठ संख्या-25
⦁ ‘नचिकेता, मैं नहीं’, पृष्ठ संख्या-28
⦁ ‘नचिकेता, मैं नहीं’ पृष्ठ संख्या-113
⦁ ‘नचिकेता, मैं नहीं’ पृष्ठ संख्या-87
⦁ ‘नचिकेता, मैं नहीं’ पृष्ठ संख्या-87
समीक्षित पुस्तक
‘नचिकेता, मैं नहीं’ (काव्य संकलन)
कवि: रामकिशोर उपाध्याय
प्रकाशन: नवजागरण प्रकाशन
नई दिल्ली, भारत
navjagranprakashan@gmail.com
ISBN 978-93-886405-4-1
मूल्य 200/-
डॉ. सुपर्णा मुखर्जी
सहायक प्राध्यापक
हिन्दी
भवंस विवेकानंद कॉलेज
सैनिकपुरी
हैदराबाद केंद्र- 500094
drsuparna.mukherjee.81@gmail.com