संविधान दिवस पर विशेष: देश में क्या हो रहा है और अब हमें क्या करना है? तब क्या कहलाएगा देश?

[26 नवंबर संविधान दिवस है। हमने इस लेख को सोशल मीडिया में देखा। इसके बाद हमने लेख के लेखक अभय रत्न बौद्ध से रात को 11 बजे बात की। तब वे संविधान दिवस मनाने की तैयारी में जुटे होने की बात बताई। जब वे यह कह रहे थे तब संविधान के प्रति उनकी निष्ठा झलक रही थी। उत्तम लेख के लेखक के प्रति आभारी है। विश्वास है पाठकों को यह लेख अवश्य प्रभावित करेगा। संपादक का लेखक के विचार से सहमत होना आवश्यक नहीं है]

आजादी के 75 सालों के बाद भी देश में आर्थिक एवं सामाजिक समानता एवं आजादी के मायनें बेमानी हो गए हैं, क्योंकि भारतीय संविधान निर्माता, बोधिसत्व बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी के नाम से संगठन चलाने वालों एवं सत्ता की राजनीति करने वाले दलों ने तथा आरक्षित चुनाव क्षेत्रों से सांसद एवं विधायक बनने वालों ने एससी/एसटी/ओबीसी, शोषित, पीड़ित, वंचित, दलित, अछूत कहे जाने वाले समाज (मतदाताओं) को धोखा दिया और बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी की विचारधारा को “पूंजीवाद एवं ब्राह्मणवाद” का गुलाम बना दिया।

भारत की सत्ता में 1947 से आज-तक राज करने वाली राजनीतिक पार्टियों एवं सत्ता के लिए संगठन चलाने वालों ने भारतीय मतदाताओं, अछूतों, वंचितों शोषितों, बहुजनो, मजदूरों एवं बेरोजगारों का शोषण ही किया है। देश में गरीबी, बेरोजगारी उन्मूलन एवं समतामूलक मानवतावादी समाज की स्थापना के लिए कार्य नहीं किया। केवल 70 के दशक में पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के द्वारा चलाया गया “20 सूत्रीय कार्यक्रम”, एससी/एसटी स्पेशल कंपोनेंट प्लान एवं भूमिहीनों को ग्राम सभा में परती व पंचायती भूमि का आवंटन, बैंक लोन, कर्ज छूट माफी योजना के बाद आज-तक की सरकारों ने कोई भी स्थाई कार्य योजना को कार्यान्वित नहीं किया।

आज भारत में लगभग 70 करोड़ से अधिक नागरिक आर्थिक आजादी से वंचित है। जबकि राजनीति के नाम पर संगठन चलाने वाले प्रत्येक नेता, अभिनेता, अध्यक्ष, पार्टी प्रमुख करोड़ों-अरबों की संपत्ति के मालिक बनते जा रहे हैं और देश का वोटर कमर झुकाकर चलने को मजबूर है। राजनेता नहीं चाहते कि देश का गरीब वोटर कमर सीधी करके खड़ा होकर हमसे बराबरी का मुकाबला करें।

भारतीय संविधान निर्माता, बोधिसत्व बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर ने “राज्य एवं अल्पसंख्यकवाद” में स्पष्ट कहा है कि हमारे समाज के ‘ब्राह्मणवाद एवं पूंजीवाद’ दो दुश्मन है, इनके खिलाफ ही आजीवन लड़ाई लड़नी होगी। इसलिए ब्राह्मणवाद के विरुद्ध, जाति विहीन-वर्ग विहीन समतामूलक समाज की स्थापना के लिए, छुआछूत, पाखंडवाद, आडंबर, रूढ़िवाद, जातिगत सामाजिक गैर बराबरी को नष्ट करने के लिए, वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित अशोक विजयादशमी के दिन 14 अक्टूबर 1956 को उत्तर प्रदेश राज्य के जनपद कुशीनगर के भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली, बर्मी बुद्ध विहार के अध्यक्ष पूज्य भिक्खु ऊ चन्द्रमणि, भिक्खु इंचार्ज, म्यांमार बुध्द विहार, कुशीनगर के द्वारा लगभग छे: लाख अनुयायियों के साथ पावन दीक्षाभूमि नागपुर में बौद्ध धम्म की दीक्षा लेकर जाति विहीन-वर्ग विहीन समतामूलक बौद्ध समुदाय बनाने का संकल्प किया था किंतु एससी/एसटी/ओबीसी वर्गों के लोगों ने बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की बात को आज-तक नहीं माना और वह ब्राह्मणवादियों द्वारा द्वारा बनाई गई जातियों के जंजाल में फंसा हुआ है।

बोधिसत्व बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जीवन के अंतिम समय तक पूंजीवाद के विरुद्ध, श्रमिकों के पक्षधर रहे और निजीकरण को “देशद्रोह” कहा। बाबा साहब का कहना था कि निजीकरण से होने वाला मुनाफा पूंजीवादी महाजन की तिजोरी भरता है और पूंजीवादी महाजन उस धन से नेताओं को चंदा देकर सत्ता को गुलाम बनाता है, जबकि राष्ट्रीयकरण (सरकारी करण) से प्राप्त आय देश के विकास एवं गरीबों की कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च होती है, इसीलिए तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा जी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था किंतु आज पुनः बैंकों एवं सरकारी संस्थानों का निजीकरण किये जाने पर देश की सरकारे अमादा है।

खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि बोधिसत्व बाबा साहेब डॉ अंबेडकर का गुणगान करने वाले तथाकथित अंबेडकरवादी राजनेता एवं सुरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों से सांसद एवं विधायक बनने वाले भी देशद्रोहियों, पूंजीवादियों के साथ खड़े हैं और निजीकरण का समर्थन करते हैं। जबकि देश की आधी से अधिक आबादी आर्थिक एवं सामाजिक गुलामी का दंश झेल रही है। भारत में रोजाना 21 करोड़ से भी अधिक लोग बिना काम के खाली पेट भूंखे सोते हैं।

देश में निजीकरण, मशीनीकरण, वैश्वीकरण एवं कोरोना महामारी के कारण लगभग 42 करोड़ लोगों के हाथ बेरोजगार हो गए हैं‌ जो आने वाले समय में भुखमरी के लिए मजबूर होंगे। वर्तमान समय में पूंजीवादी प्रतिस्पर्धा के चलते करोड़ों लोग बेरोजगार हो चुके हैं।

बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के नाम से नेतागिरी करने वाले, आज सत्ता के दलाल बने हुए हैं। भारतीय संविधान के निर्माता बोधिसत्व बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर एवं “सामाजिक परिवर्तन एवं आर्थिक मुक्ति आंदोलन” के जन्मदाता मान्यवर कांशी राम जी की विचारधारा “ब्राह्मणवाद एवं पूंजीवाद” के आगे घुटने टेक चुकी है।

स्वाभिमान- सम्मान के लिए “ब्राह्मणवाद एवं पूंजीवाद” अर्थात सामाजिक एवं आर्थिक विषमता मिटाने का दम भरने वाले तथाकथित अंबेडकर वादी नेता स्वयं पूंजीवादी व्यवस्था में शामिल होकर पूंजीवाद के समर्थक बन गए हैं।

देश की दबी-कुचली, शोषित ,पीड़ित गरीब जनता अपने इन पूंजीवादी सत्ता के दलालों के सामने सिर झुका कर भारतीय संविधान में दिए गए हक-अधिकारों की भीख मांग रही है।

इसलिए विधान सभा एवं लोकसभा चुनावों में वंचितों, अछूतों, बहुजनो,शोषितों, मजदूरों,किसानों का “जन-अधिकार एजेंडा” होना चाहिए कि :-

1 – जिसे हम अपना अमूल्य मत (वोट) देना चाहते हैं, क्या वह प्रत्याशी एवं उसका राजनीतिक दल शिक्षा में भेदभाव रोकने के लिए ‘समान शिक्षा नीति’ लागू कराने की पहल करेगा?

2 – जिसे हम अपना अमूल्य मत (वोट) देना चाहते हैं, क्या वह भारत में गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, आत्महत्याओं को रोकने के लिए सांसदों एवं विधायकों की तरह देश में ग्राम प्रधान से राष्ट्रपति तक बनाने वाले प्रत्येक वोटर को, वर्ष 2021 के आंकड़ों के अनुसार देश की सामूहिक राष्ट्रीय आय से 8000 रुपये हर महीना महंगाई भत्ता सहित “वोटरपेंशन” (आर्थिकहिस्सेदारी) के रूप में नगद रकम बिना बिचौलिए के बैंक के एटीएम द्वारा भारत के प्रत्येक वोटर को दिलाने की पहल करेगा?

3 – जिसे हम अपना अमूल्य मत (वोट) देना चाहते हैं, क्या वह भारत में जातिगत उत्पीड़न रोकने, जातिवाद मिटाने एवं मानव समाज में मानवता स्थापित करने की पहल करेगा?

4 – जिसे हम अपना अमूल्य मत (वोट) देना चाहते हैं, क्या वह भारत में सरकारी संपत्तियों एवं संस्थानों के निजीकरण की प्रक्रिया को रोकने की पहल करेगा एवं निजीकरण किये गये संस्थानों में मजदूरों ,शोषितों, वंचितों, बहुजनों की हिस्सेदारी के लिए कार्य करेगा?

यदि उक्त मानवतावादी विचार, राजनीतिक दल के “घोषणा-पत्र” में हैं और उनका प्रत्याशी सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक गैर बराबरी उन्मूलन करने-कराने का संकल्प करता है तो! हमें अपना अमूल्य मत (वोट) ऐसे प्रत्याशी को देकर समर्थन करना चाहिए, यदि सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक एवं धार्मिक भेदभाव के उन्मूलन के लिए घोषणा नहीं करता तो हमें ऐसे प्रत्याशी एवं राजनीतिक पार्टी का खुलकर विरोध करना चाहिए।

भविष्य में यह देखना होगा कि भारत के नौजवान, बेरोजगार, किसान, मजदूर, शोषित, पीड़ित, वंचित, एससी/एसटी/ओबीसी/ अल्पसंख्यक जनता, जागरूक होकर “ब्राह्मणवाद एवं पूंजीवाद” के विरुद्ध कब तक संयुक्त रूप से मिलकर अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाती है? क्योंकि जागरूक सयुक्त नेतृत्व ही “बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय” की भावना के साथ कार्य करके पुन: भारत में समतामूलक खुशहाल भारत की स्थापना मार्ग प्रशस्त करेगा और पुनः चक्रवर्ती सम्राट अशोक एवं बोधिसत्व बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर के सपनों का “समतामूलक बौद्धमय भारत” बनेगा और पुनः भारत सोने की चिड़िया कहलाएगा। इसी मंगल कामनाओं सहित-

-अभय रत्न बौद्ध,

राष्ट्रीय समन्वयक एवं संगठक
राष्ट्रीय बौद्ध धम्म संसद बुध्दगया एवं बौद्ध संगठनों की राष्ट्रीय समन्वय समिति, भारत

केंद्रीय कार्यालय: बुध्द कुटीर,284/सी-1, गली नंबर-8, नेहरू नगर,
नई दिल्ली-110008

मुख्यालय : महाबोधि मेडिटेशन सेंटर, बुध्दगया,जिला-गया (बिहार)

M: 9899853744 और 9540563465
Email:argautam48@gmail.com

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