‘साहित्य सेवा समिति’ की 109 वीं गोष्ठी, वक्ताओं ने इस विषय पर याद किये बीती बातें और सुनाई कविताएं

हैदराबाद : सुप्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था ‘साहित्य सेवा समिति’ की 109 वीं गोष्ठी डॉ मोहन गुप्ता जी के आरोग्य अस्पताल के सभागार में आयोजित की गई। साहित्यकार डॉ मोहन गुप्ता ने सभी उपस्थित साहित्यकारों को शुभकामनाएं दीं। इस शानदार संगोष्ठी की अध्यक्षता ‘दक्षिण समाचार’ के संपादक नीरज कुमार ने किया। कवि पुरुषोत्तम कड़ेल जी की स्वरचित सरस्वती वंदना से आयोजन का शुभारंभ किया गया। अध्यक्ष नीरज कुमार, महामंत्री सुनीता लुल्ला, प्रसिद्ध पत्रकार ‘देहाती’ विश्वनाथ, गीता अग्रवाल और ज्योति नारायण जी मंचासीन रहे। सभागार में उपस्थित सदस्यों का स्वागत नीरज कुमार ने किया।

इस गोष्ठी में आज की उपस्थिति डॉ मोहन गुप्ता, नीरज अग्रवाल, सुनीता लुल्ला, पुरुषोत्तम कड़ेल, गीता अग्रवाल, के पी अग्रवाल, ज्योति नारायण, दर्शन सिंह, उमेश चंद्र श्रीवास्तव, पूनम जोधपुरी, उमा सोनी, डॉ संगीता शर्मा, इंदु सिंह, विनोद गिरि अनोखा, सत्य नारायण काकड़ा, दया शंकर प्रसाद, ‘तेलंगाना समाचार’ के संपादक के राजन्ना और अन्य उपस्थित थे। प्रथम सत्र में इस बार चर्चा का विषय था हिन्दी साहित्य में होली का उत्सव। विषय परिचय देते ने अत्यंत ही सुंदर उदाहरण देते हुए बताया कि एक दीर्घकालीन दृष्टि से देखें तो कई सदियों से हिन्दी के साहित्यकारों ने अपने साहित्य में भारतीय संस्कृति के प्रतीक हमारे त्योहारों का उल्लेख किया है।

नकी धार्मिक पृष्ठभूमि, सामाजिक मान्यता और रीति रिवाजों का मेल खाता वर्णन किया है। बीच-बीच में ऐतिहासिक परिवर्तन होते रहे और हमारे होली के त्योहार के कारण लोग और समाज आपस में जुड़े रहे हैं। इस प्रकार त्योहार के वर्णन ने भाषा को भी समृद्ध किया है। जयदेव, विद्यापति, सूरदास और तुलसीदास के अलावा अन्यान्य देशी कवियों ने स्थानीय बोलियों में साहित्य सृजन कर भाषा और बोलियों को जीवित रखा। गीता जी ने काव्य के समृद्ध उदाहरण देते हुए अपने कथन का सौंदर्य पूर्ण समापन किया।

विषय की प्रमुख प्रवक्ता और देश की जानी-मानी कवियित्री ज्योति नारायण जी ने विषय पर सुदीर्घ व्याख्या करते हुए बताया कि देश के विभिन्न भागों में अपने-अपने साहित्य में होली के आरम्भ की कथाएँ, उनका धार्मिक महत्व और अलग-अलग ढंग से मनाने का भी उल्लेख किया। आपने हर प्रान्त के होली मनाने की रीतियों का गहराई से वर्णन किया। भक्त प्रह्लाद की कथा, होलिका का आज भी दहन करना और दूसरे दिन मिल-जुल कर रंग खेलना और इसी बहाने आपसी वैमनस्य को दूर करते हुए सामाजिक ऊँच नीच भुला कर हर तबके का एक हो जाना सब कुछ आपने बड़े ही भावपूर्ण अंदाज में बताया।

उपस्थित सभासदों ने तालियों की करतल ध्वनि से आख्यान का स्वागत किया। कवि दर्शन सिंह जी ने पंजाब में खेली जाने वाली होली और वीरों के लिए मान्य प्रथाओं का अत्युत्तम वर्णन अपने ओजपूर्ण स्वर में किया। आपने गुरुग्रंथ साहिब जी की गुरबानी से कुछ उद्धरण देते हुए बताया कि होली वीरों का त्योहार है।

आयोजन के द्वितीय सत्र में सभी उपस्थित कवियों ने अपनी-अपनी स्वरचित कविताओं का विभिन्न रसों का रसास्वादन परोसा। जिन कवियों ने कविताएँ पढ़ीं उनमें उमेश चंद्र श्रीवास्तव, पूनम जोधपुरी, दर्शन सिंह, देहाती विश्वनाथ, उमा सोनी, इंदु सिंह, डॉ संगीता शर्मा, गीता अग्रवाल, के पी अग्रवाल, सत्य नारायण काकड़ा, पुरुषोत्तम कड़ेल, सुनीता लुल्ला, विनोद गिरि ‘अनोखा’, दया शंकर प्रसाद और अन्य ने शानदार काव्य पाठ से श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया । नीरज कुमार ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में आज के विषय प्रवक्ताओं की हार्दिक प्रशंसा की। अंत में एक अनूठे सहृदय अंदाज में गीता अग्रवाल जी ने धन्यवाद ज्ञापन दिया।

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