कादम्बिनी क्लब हैदराबाद की ओर से डेली हिंदी मिलाप के दिवंगत संपादक विनय वीर जी को डॉ आशा मिश्रा ‘मुक्ता’ का श्रद्धांजलि वक्तव्य

[कादम्बिनी क्लब हैदराबाद की 382वीं मासिक गोष्ठी रविवार को क़ीमती हॉल, महिला नवजीवन मंडल, रामकोट में आयोजित किया गया। दो सत्र की गोष्ठी में तीन कार्यक्रम आयोजित किये गये। पहले सत्र में हिन्दी मिलाप के स्वामी एवं स्वर्गीय संपादक विनय वीर जी को श्रद्धांजलि अर्पित करके दो मिनट का मौन रखा गया। दूसरे सत्र में काव्य गोष्ठी में भी कवियों ने विनय वीर जी को श्रद्धांजलि दी और प्रसिद्ध कवि चन्द्र प्रकाश दायमा के काव्य संग्रह ‘पानी सब डालेंगे ही’ के लोकार्पण पर बधाई दी। इस कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ अहिल्या मिश्र, मुख्य अतिथि प्रो ऋषभदेव शर्मा, विशेष अतिथि डॉ गंगाधर वानोडे और पुस्तक समीक्षक डॉ राजीव सिंह मंचासीन रहे। इस दौरान डॉ अहिल्या मिश्र, डॉ आशा मिश्रा ‘मुक्ता’ मिलाप ब्यूरो के चीफ एफएम सलीम और अन्य वक्ताओं ने श्रद्धांजलि स्वरूप विनय वीर जी के बारे में सारगर्भित संदेश दिये। प्रथम सत्र का संचालन शिल्पी भटनागर दूसरा सत्र का संचालन मीना मुथा किया। इस कार्यक्रम में नगर के कवि, लेखक और साहित्यकारों ने बड़ी संख्या में भाग लिया।]

सबसे पहले मैं डॉ इकबाल की ये शेर विनय वीर को समर्पित करती हूँ-

हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है।
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा।।

विनय वीर जी को कौन नहीं जानता। यदि उन्हें पत्रकारिता जगत का सूर्य कहा जाय तो अनुचित होगा। उनका निधन भारतीय पत्रकारिता में एक युग का अंत माना जाएगा। इनके निधन से पत्रकारिता समुदाय में एक रिक्तता पैदा हो गई है। जो हमें सार्वजनिक संवाद और जागरूकता को आकार देने में समर्पित पत्रकारों द्वारा किए गए अमूल्य योगदान की याद दिलाती है।विनय वीर का जीवन और कार्य पत्रकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। जो लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने में नैतिक पत्रकारिता के महत्व पर बल देते हैं। जो सत्ता को जवाबदेह बनाने और सच्चाई को उजागर करने में निर्भीक रिपोर्टिंग के महत्व को उजागर करता है। विनय वीर का कॅरियर भारत के उभरते सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य की पृष्ठभूमि में आगे बढ़ा।

विनय वीर जी

विरासत :

उनकी विरासत न सिर्फ पिता युद्धवीर बल्कि दादाजी स्वर्गीय आनंद स्वामी सरस्वती जी से शुरू होती है जिन्होंने आर्य समाज नेता के रूप में सक्रिय जीवन व्यतीत किया और फिर सन्यास ले लिया। उसी राजनीतिक परिवार में पैदा हुए विनय वीर के पिता युद्धवीर जी जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन मातृभूमि की सेवा करते हुए व्यतीत किया। वे धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद तथा कमजोर वर्ग और वंचितों के उत्थान के कार्यक्रम में दृढ़ विश्वास रखते थे। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर कई बार सख्त कारावास की सजा भोगकर देश को आजाद कराया। वे लाहौर के निवासी थे जो अभी पाकिस्तान में है। चुकि उस वक्त सांप्रदायिक माहौल ठीक नहीं था और हिंदुस्तान पाकिस्तान का बँटवारा हो रहा था अत: वे भी लाहौर से हैदराबाद आ गये क्योंकि लाहौर का माहौल उस वक्त उन्होंने स्वयं के लिये असुरक्षित पाया। हैदराबाद आकर उन्होंने मिलाप दैनिक का पहले उर्दू संस्करण से शुरुआत की फिर उन्होंने हिन्दी संस्करण निकालना शुरू कर दिया।

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युद्धवीर जी ने भारत की छवि बनाने के उद्देश्य से 1972 में लंदन से उर्दू और अंग्रेजी दो भाषाओं में मिलाप का प्रकाशन करना प्रारंभ किया। विनय वीर ने भी प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से राजनीतिक उथल-पुथल से लेकर सामाजिक आंदोलनों तक, राष्ट्र की दिशा को आकार देने वाली महत्वपूर्ण घटनाओं को देखा और भोगा। स्वाभाविक है उनके अंतर्मन पर भी पिता द्वारा किए गए कार्यों ने छाप छोडा होगा। पुत्र को योग्य जानकर पत्रकारिता का कार्य पिता ने पुत्र को सौंपी और 1991 से पुत्र ने पूर्ण रूप से मिलाप का कार्य भार संभाल लिया। इस तरह से स्वतंत्रता सेनानी, देश के नाम पर सर्वश्व न्योछावर करने वाले, सामाजिक कार्यकर्ता और एक प्रसिद्ध पत्रकार पिता स्वर्गीय युद्धवीर तथा दो कार्यकाल तक राज्यसभा के सदस्य रहकर देश की सेवा करनेवाली माता सीता युद्धवीर के सुपुत्र विनय वीर को पिता से विरासत में मिली- डेली हिन्दी मिलाप दैनिक समाचार पत्र।

व्यक्तित्व :

आपकी प्राथमिक शिक्षा लॉरेंस स्कूल ऊटी जो कि अपने आप में बेहतरीन racidential स्कूल के लिए जाना जाता है वहाँ से हुई।और उच्च शिक्षा उन्होंने उस वक्त के मशहूर कॉलेज बद्रूका कॉलेज से प्राप्त किया। विनय वीर जी अंतर्मुखी और नर्म स्वभाव के व्यक्ति थे। भले ही लोगों से काम मिलते जुलते थे परंतु जिनसे भी वे मिलते बहुत ही प्यार और आत्मीयता से मिलते। जो एक बार उनसे मिल लेता था उनको गहराई से जान लेता था। अपने कर्मचारियों से भी वे उतने ही स्नेह से मिलते जीतने अन्य लोगों से। उनका सहृदय और कोमल स्वभाव सदा लोगों की आवश्यकताओं को पहचानने में मदद करता और आवश्यकताओं को पूरा करना वे अपना प्रथम दायित्व मान लेते। कुशल प्रबंधक और प्रेरणास्रोत व्यक्तित्व ही शायद उनके सृजन शक्ति को बढ़ाने में सहायता किया।

पत्रकारिता :

विनय वीर ने कम उम्र में अपनी पत्रकारिता की यात्रा शुरू की। उनके प्रयास से दक्षिण भारत का यह पत्र पाठक वर्ग के लिए नए-नए स्तंभ लेकर आता रहा है। आप अपनी तीखी रिपोर्टिंग के लिए भी जाने जाते रहे हैं। सत्य के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता थी। आप निडर होकर सच्चाई की खोज करते थे। इस काम में वे जोखिम भी उठाते थे। अपने पूरे करियर के दौरान, वीर ने पत्रकारिता की ईमानदारी के उच्चतम मानकों को बरकरार रखा। लोकतांत्रिक समाज में निडर पत्रकारिता तथा लोकतंत्र की रक्षा करने का प्रयास उन्होंने सच्चाई और ईमानदारी के साथ किया। उन्होंने खोजी पत्रकारिता के प्रति अपने अडिग समर्पण, भ्रष्टाचार, अन्याय और सामाजिक मुद्दों को उजागर करने के लिए प्रतिष्ठा अर्जित की, जो अक्सर सार्वजनिक दृष्टिकोण से छिपे रहते हैं। नैतिक पत्रकारिता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने पत्रकारों की अगली पीढ़ी के लिए एक प्रकाश स्तंभ का काम किया, जिससे उनमें जिम्मेदारी और उद्देश्य की भावना पैदा हुई।

युद्धवीर फाउंडेशन :

पिता की स्मृति में उन्होंने युद्धवीर फाउंडेशन शुरू की और उसके सचिव बने। हम सब जानते ही हैं कि इस फाउंडेशन के अन्तर्गत विभिन्न क्षेत्रों में सफलता प्राप्त व्यक्तित्व को युद्धवीर सम्मान से सम्मानित किया जाता है। यह अपने आप में बहुत ही सम्माननीय पुरस्कार है।

संपादक एवं प्रबंधक :

विनय वीर जी ने पत्रकारिता विरासत में पायी यह उनके डी.एन.ए में था ऐसे में उनका संपादन का कार्य ऊँचाइयों को छूना स्वाभाविक हो जाता है। इस पत्र को अपनी सूझ बूझ, दूरदर्शिता और लगन से ऊँचाइयों तक पहुँचाने की कोशिश में वे जुट गये। उन्होंने लक्ष्य या गोल के रूप में भाषा को समृद्ध करने का कार्य शुरू किया। साथ ही दैनिक हिंदी मिलाप को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का कार्य उन्होंने प्रतिबद्धता के साथ प्रारंभ किया। समय की माँग के साथ आवश्यकतानुसार इस पत्र में फेरबदल करते रहे, जिसकी वजह से ‘हिंदी मिलाप’ हिंदी पाठकों के दिल की धड़कन बन गई।

युद्धवीर जी के स्वर्गवास के बाद विनय वीर जी ने बड़ी सुलभता से हिन्दी मिलाप को अपना लिया। भले ही उन्हें अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा हो, लेकिन कंप्यूटरीकरण-युग में नए साँचे में ढलते हुए, उन्होंने रंगीन आवरण से अच्छादित पत्र निकाला, पाठक वर्ग की मानसिकता को दृष्टि में रखा, पाठकों के अमूल्य सुझावों को उन्होंने अपने पत्र में शामिल किया। उन्हें फोटोग्राफी में बहुत रुचि थी बल्कि ये कहा जाये कि फोटोग्राफी उनका पहला शौक़ था तो ग़लत नहीं होगा। इन्होंने इस रुचि को भी पत्र के लिए उपयोगी बनाया। तकनीकी कुशलता के साथ उन्होंने फ़ोटोग्राफ़ी फ्रेम में बदलाव किया। और पत्र के लिये समयानुकूल, रोचक और आकर्षक स्तंभ बनाया। उनकी संपादन और प्रबंधन शैली को हम हिन्दी मिलाप के रूप में देख सकते हैं।

यदि आज ‘हिंदी मिलाप’ पाठकों के गले का हार बना हुआ है तो इसमें सबसे बड़ा हाथ विनय वीर जी का है। विनय वीर जी हिंदी मिलाप के पर्याय के रूप रहे हैं। उनके अनुपम, अतुलनीय प्रयास सदा के लिए स्मरणीय हैं। अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने अपने समय को मिलाप के लिए ‘विनय वीर काल’ के रूप में दर्ज करा लिया है। विनय वीर जी भले ही इस दुनियाँ से विदा ले लिए हैं परंतु अपने पीछे वे निडर पत्रकारिता और भारतीय सामाजिक-राजनीतिक मामलों में गहन अंतर्दृष्टि की विरासत अवश्य छोड़ गए हैं।

भारतीय पत्रकारिता में उनका का योगदान एक रिपोर्टर के रूप में उनकी भूमिका से कहीं आगे तक फैला हुआ है। हालांकि कुछ वर्षों से वे काफी बीमार चल रहे थे। कई बीमारियों से जूझ रहे थे। लंग्स काम करना कम कर दिया था, ठीक से साँस नहीं ले पा रहे थे। ऑक्सीजन सपोर्ट पर थे। चलना फिरना भी बंद हो गया था। परन्तु अपने अंतिम समय में भी ‘हिंदी मिलाप’ को लेकर वे चिंतित रहते थे। चाहते थे कि मिलाप पूरी ऊर्जा के साथ चले। उनका निधन पत्रकारिता की दुनियाँ को भारी क्षति पहुँचाया है। जब भी दक्षिण भारत में भाषा और पत्रकारिता की सफलता के बारे में चर्चा होगी, उनके योगदान को याद किया जाएगा। कादम्बिनी क्लब हैदराबाद पत्रकारिता जगत के इस अस्ताचल गामी सूर्य को शत शत नमन करता है और उन्हें श्रद्धांजलि सुमन अर्पित करता है।

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