श्री संत गाडगेबाबा भजन मंडल लाखांदूर: धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को रखा है जीवित

श्री संत गाडगेबाबा भजन मंडल लाखांदूर (भंडारा जिला) पिछले 70 सालों से भजन परंपरा की प्रथा चलाता आ रहे है। ऐसा करके यह भजन मंडल अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को जीवत रखा है। अर्थात आज के युग में असंभव को संभव कर दिखा रहा है।

भजन मंडल की स्थापना साल 1996 में लाखांदूर में हुई थी। भजन मंडल पिछले 70 सालों से शहर में धार्मिक और सांस्कृतिक माहौल बनाये रखने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। यह भजन मंडल बिना किसी अपेक्षा के धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेता है। भजन मंडल की स्थापना 70 साल पहले स्वर्गीय गोदरूजी कडिखाये ने अपने साथियों के साथ की थी। उसी परंपरा को संत गाडगेबाबा जनकल्याण उत्सव समिती लाखांदूर (भंडारा) के सचिव मार्गदर्शक फागोजी कडिखाये सफलतापूर्वक निभा रहे हैं।

भजन मंडल में बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक भाग लेते है। ऐसा पिछले 70 सालों से जारी है। यह भजन मंडल स्थानीय लोगों के घरों में आयोजित जयंती, पुण्यतिथि, श्रीकृष्णा जन्माष्टमी, गौरीव्रत, श्रावणमास, नवरात्रि उत्पव, रामायण, भागवत सप्ताह, काकड़ आरती, अंतिम संस्कार, गणेशोत्सव जैसे कार्यक्रमों में भाग लेता है। इसके चलते इस मंडल में भजनों की मांग बढ़ गई। इसके कारण लाखांदूर शहर और उसके आसपास के इलाकों में अनेक भजन मंडलियों का उदय हुआ है।

वहीं से लाखांदूर के श्री संत गाडगेबाबा भजन मंडल शामिल हैं। आज तीसरी पीढ़ी के बच्चों ने इस परंपरा को जारी रखे हैं। इनमें मुख्य हैं- मानव कडिखाये, नितिन पारधी, कुणाल प्रधान, भोजराज एफजी कडिखाये, गणेश ठाकरे, सुरेश नेवारे, हरिदास राऊत, हेमराज प्रधान, रमेश खरकाटे, रामकृष्ण दिवठे, वसंता गुरनुले, सूरज तलमले, मंगेश मोहुर्ले, प्रकाश राऊत, गणेश कार, योगेश भुते, संजू वाटगुळे, आदित्य वाटगूळे, प्रेमानंद गुरनुले, कु. उन्नती कडिखाये, सौ. अरुणाताई कडिखाये शामिल हैं|

इसके चलते भजन परंपरा को बनाए रखने और इसे आज के युवाओं में विकसित करने के लिए कुछ प्रसिद्ध भजन प्रेमियों और संगीत संस्थानों ने पहल की है। अब इस भजन को शास्त्रीय रूप दिया है। आयोजकों का मानना है कि संत परंपरा से शुरू हुआ वारकरी परंपरा भजन अब आधुनिक रीमिक्स के युग में थोड़ा कम होते दिखाई दे रहा है। मगर हम उस ओर ध्यान नहीं देते हैं। बिना किसी अपेक्षा और हिचकिचाये धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेते हुए आगे बढ़ते हैं।

– भोजराज खडिखाये की कलम से…

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