लेख : स्वच्छता के प्रचारक संत गाडगे बाबा

संत गाडगे बाबा ग्राम स्वच्छता अभियान हर गांव में लागू है। गांव को स्वच्छ रखने के अभियान का नाम संत गाडगे बाबा के नाम पर क्यों रखा गया है? गाडगे बाबा की इस कहानी को पढ़ने के बाद ही समझ में आएगी।

संत गाडगे महाराज का जन्म वरहाद के शेंगांव में एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता ने उनका नाम डेबू रखा था। डेबू के पिता की मौत के बाद उसकी मां अपने भाई के साथ चली गई। डेबू उनके मामा के खेत में काम करने लगा। डेबु घर में कोई भी काम पूरे मन से करता था। उनके सभी काम बहुत साफ-सुथरे होते थे। उनके काम करने का तरीका था कि अच्छा करके दिखाना। आसपास के लोग कड़ी मेहनत करते थे। उनके दुख और गरीबी देखकर डेगू चिंतित होता था।

समाज में लोगों का व्यवहार उनको पसंद नहीं था। वे लोग व्यसनों के कारण कर्ज में डूब रहे थे। कर्ज लेकर जश्न मना रहा थे। अगर वह बीमार हो गया, तो वह बिना कोई दवा लिए भगवान के भरोसे छोड़ देते थे। लोग मुर्गियों और बकरियों की बलि देते थे। डेबु को यह पसंद नहीं आया। अगर आप चार अच्छी बातें कहते हैं, तो भी कोई आपकी नहीं सुनता, आपकी बातों का कोई वजन नहीं होता। माँ हमारे लिए काम करती है, हम उसकी सुनते हैं, क्योंकि वह कड़ी मेहनत करती है।

गाडगे महाराज ने अपने मन में निश्चय किया, “मैं इतनी मेहनत करूंगा कि लोग मेरी बात बिना बोले ही सुन लेंगे। इससे सुधार होगा।” 29 वर्ष की आयु में गाडगे बाबा ने अपने जमीन और परिवार को त्याग दिया। उन्हें लगा कि हमें इसके लिए दंडित किया जाना चाहिए। बाबा कैसे दिखते है? सिर पर सफेद बाल, भूरी आंखें, गोरा रंग, फटी लेकिन साफ ​​शर्ट, एक स्कर्ट। एक पैर में जूता, दूसरे पैर नंगा। एक छड़ी और एक मिट्टी मटका (घड़ा) हाथ में लिये निकल पड़े। इसलिए लोग उन्हें गाडगे महाराज कहते थे।

गाडगे महाराज घर से निकलने के बाद कभी किसी के घर खाना नहीं खाया। वह भीख मांगते थे और जो कुछ भी मिलता उसे खा लेते थे। उन्होंने कभी भी ठीक से कपड़े नहीं पहने। फटे कपड़ों से अपने शरीर को ढक लेते थे! सोने के लिए सिर्फ एक कंबल या कंबल, तकिया पर हाथ मोड़ लेते थे। बाबा का मानना था कि अगर कोई भीख मांगने जाता है, तो उसे कहना चाहिए, “तुम अच्छे आदमी हो। मेरे घर की लकड़ी तोड़ दो, फिर मैं तुम्हें रोटी दूंगा!” बाबा कहते थे, “कुल्हाड़ी मुझे दे दो।” बाबा भजन-कीर्तन, उपदेश उनका ध्यान है। गाडगे बाबा ने गरीबों, अनाथों और विकलांगों के लिए एक चैरिटी कार्यक्रम शुरू किया। उनका उपयोग भोजन, वस्त्र और अन्य आवश्यकताओं के निर्माण के लिए किया जाता है।

  • भोजराज कड़िखाये की कलम से…. नोट- इस लेख के विचार लेखक के हैं। संपादक का सहमत होना आवश्यक नही है। संत गाडगे बाबा, डॉ अंबेडकर व महात्मा फुले को लेकर सारगर्भित रचनाएं आमंत्रित है।

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