साहित्य लिखा जाता रहा है, कविता भी लिखी जाती रही है, इसलिए यह प्रश्न कुछ लोगों को असामान्य लगेगा । परन्तु असामान्य यह है नही । क्या लिखा गया है ? और, क्या लिखना चाहिए ?–दोनों में अन्तर है, और इस अन्तर के कारण कविगण एक काफी वड़ा वर्ग अथवा सम्प्रदाय ऐसे कवियों की है जो, पूछने पर कि क्यो लिखते हो, कहेगे-आत्मतुष्टि के लिए । रोना और गाना वे मनुष्य की सहज चेष्टाएँ मानते हैं और उनका कहना है कि जिस प्रकार रुदन और हास्य मनुष्य की अनुभूति-विशेष के परिचायक है, विपाद और आनन्द को मुखरित करते हैं, उसी प्रकार गायन या गुनगुनाना भी उल्लास की व्यञ्जना है । परन्तु यह तो स्थिति हुई आदिम मानव की, जो न बोलकर भी कभी जिह्वा को Eठ कर या चेष्टाओं द्वारा अपने हर्ष-विषाद को व्यक्त करता था, जब उसके पास भाषा नही थी, और जैव वह पशु अधिक था मनुष्य कम : मनुष्य कम, अर्थात् समाज का व्यक्ति–उसकी इकाई नितान्त कम ।
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