केंद्रीय हिंदी संस्थान : तमिलनाडु के कृष्णागिरी जिले के हिंदी अध्यापकों के प्रशिक्षण के लिए 468वें नवीकरण पाठ्यक्रम का समापन

हैदराबाद : केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के हैदराबाद केंद्र द्वारा होसूर में तमिलनाडु राज्य के कृष्णागिरी जिले के हिंदी अध्यापकों के प्रशिक्षण के लिए 468 वाँ नवीकरण पाठ्यक्रम क्षेत्रीय निदेशक प्रो. गंगाधर वानोडे के नेतृत्व में संपन्न हुआ। इस पाठ्यक्रम की अध्यक्षता केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के निदेशक प्रो. सुनील बाबुराव कुलकर्णी जी आभासी पटल से की। मुख्य अतिथि के रूप में होलीक्रास मैट्रिक हायर सेकेंडरी स्कूल, तेनकनिक्कोट्टै, होसूर की सेवानिवृत्त प्राचार्या श्रीमती मल्लिका राजन उपस्थित थीं। इस अवसर पर सहायक प्राध्यापक डॉ. पंकज सिंह यादव, डॉ. चंद्रप्रताप सिंह उपस्थित रहे। केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक प्रो. गंगाधर वानोडे इस नवीकरण पाठ्यक्रम के संयोजक हैं। उन्होंने पूर्व परीक्षण के द्वारा अध्यापकों के स्तर की जाँच की। इस पाठ्यक्रम में कुल 36 प्रशिक्षणार्थी जिसमें 32 महिला और 04 पुरुष प्रतिभागियों ने नियमित कक्षा में उपस्थित होकर भाग लिया।

16 अप्रैल से विधिवत कक्षाएँ प्रारंभ हुईं। इस दौरान क्षेत्रीय निदेशक प्रो. गंगाधर वानोडे के साथ-साथ डॉ. पंकज सिंह यादव, डॉ. चंद्रप्रताप सिंह ने अध्यापन कार्य किया तथा डॉ. लता चह्वान, विख्याता, तमिलनाडु, डॉ. कोयल विष्वास, सहायक प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, माउंट कर्मल कॉलेज, बंगलौर तथा डॉ. पुंडलिक राठोड ने विशेष व्याख्यान दिया तथा इस दौरान प्रतिभागियों ने हस्तलिखित पत्रिका ‘‘फूलों का बगीचा-होसूर शहर’’ तैयार की। प्रशिक्षण के बाद पर परीक्षण लिया गया। 27 अप्रैल को 468वें नवीकरण पाठ्यक्रम का समापन समारोह संपन्न हुआ।

समापन समारोह की का प्रारंभ दीप प्रज्ज्वल तथा प्रतिभागियों द्वारा सरस्वती वंदना के समूह गान से हुआ। कार्यक्रम के प्रारंभ में ही प्रतिभागी श्रीमती रमामणि ने ‘गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु’ श्लोक से अतिथियों का स्वागत किया इसके बाद प्रतिभागियों द्वारा ही संस्थान गीत और स्वागत गीत का समूह गान किया गया। एम.एस. रघोत्तमन ने मुख्य अतिथि एवं प्राध्यापक अतिथियों का आभार व्यक्त किया। सांस्कृतिक कार्यक्रम में आर. मालती ने ‘हिंद देश के निवासी सभी जन एक हैं’ सामूहिक कविता सुनाई। श्रीमती अस्मलक्ष्मी ने तमिल देश भक्ति गीत सुनाया। श्रीमती कविता ने अपनी स्वरचित कविता ‘आप सूरज हैं’ प्रस्तुत किया। सुधा ने ‘आकाश में तारे चमक रहे हैं’ तथा रेवती सौंदर्यराजन ने ‘होसूर की आत्मकथा’ सुनाया तथा प्रतिभागियों द्वाना नाट्य मंचन ‘जैसी करनी वैसी भरनी’ शीर्षक से प्रस्तुत किया गया। यह वृद्धाश्रम की समस्या पर केंद्रित था। क्षेत्रीय निदेशक प्रो. गंगाधर वानोडे ने अतिथियों का स्वागत और परिचय दिया। उसके बाद सभी अतिथियों का श्रीफल और शॉल देकर स्वागत किया गया।

इस दो साप्ताहिक नवीकरण पाठ्यक्रम प्रशिक्षण के संदर्भ में श्रीमती भामा लक्ष्मी ने अपना अनुभव व्यक्त करते हुए कहा कि प्रो. गंगाधर वानोडे ने उच्चारण, भाषाविज्ञान, डॉ. पंकज सिंह यादव ने हिंदी साहित्य के काल विभाजन, पाठ विष्लेषण के बारे में तथा डॉ. चंद्रप्रताप सिंह ने सीखने के नियम एवं सिद्धांत, षिक्षा मनोविज्ञान, षिक्षण शैली आदि विषयों का अध्यापन किया। इनकी प्रभावशाली शिक्षण शैली के हम कायल हैं। प्रतिभागी मधुमिता ने कहा कि डॉ. पंकज सर से हमने हिंदी की खुबसूरती सीखी। वानोडे सर से ध्वनि, वर्ण लेख और भाषाविज्ञान सीखा। सी. पी. सर से व्याकरण, शिक्षा मनोविज्ञान, पाठयोजना, रस आदि विषयों को पढ़ा। प्रतिभागी तमिल सेलवी एन ‘गुरु कुम्हार षिखकुंभ है’ से अपने गुरुजनों से तुलना करते हुए बताया कि गुरु अज्ञानी को ज्ञानी बनाते हैं। छात्रों को किस तरह पढ़ाया जाता है इसे हमने प्रशिक्षण के दौरान सीखा।

इसके बाद प्रतिभागियों द्वारा तैयार की गई हस्तलिखित पत्रिका ‘‘फूलों का बगीचा-होसूर शहर’’ तमिलनाडु राज्य के कृष्णागिरी जिले (होसूर) की ऐतिहासिक, भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, उद्योग एवं कृषि आदि विषयों पर केंद्रित है, उसका लोकार्पण मुख्य अतिथि श्रीमती मल्लिका राजन तथा मंचासीन महानुभावों के करकमलों द्वारा किया गया। इस पाठ्यक्रम के दौरान पर परीक्षण का आयोजन किया। यह परीक्षण भाषाविज्ञान, व्याकरण, शिक्षा मनोविज्ञान, हिंदी शिक्षण हिंदी एवं भाषा शिक्षण कौशल तथा साहित्य का इतिहास आदि विषयों पर आधारित था। जिसमें प्रथम पुरस्कार श्री एम. एस. रघोत्तमन, द्वितीय पुरस्कार कविता एम. तथा तृतीय पुरस्कार मालती आर. तृतीय पुरस्कार प्राप्त किया।

अतिथियों ने प्रतिभागियों को आशीवर्चन दिया। मुख्य अतिथि के रूप में सेवानिवृत्त प्राचार्या श्रीमती मल्लिका राजन ने कहा कि छात्र और शिक्षक की भूमिका बदली रही है। आप छात्र की भूमिका में और यहाँ से जाने के बाद शिक्षा की भूमिका में कार्य करेंगे। मैं 4.30 बजे से 7.30 बजे तक बच्चों में हिंदी के संवर्धन के लिए कार्य करती हूँ। जब बच्चे हँसते हैं तो हमें अच्छा लगता है। मैं 73 वर्ष की अवस्था में भी मेहनत करती हूँ। मुझे बच्चों से ऊर्जा ग्रहण करना है। डाँटना और मारना नहीं हैं, प्यार करना है।

अध्यक्षीय वक्तव्य में क्षेत्रीय निदेशक प्रो. गंगाधर वानोडे ने हिंदी प्रचारकों का आभार व्यक्त किया तथा केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के निदेशक प्रो. सुनील बाबुराव कुलकर्णी को संबोधित करते हुए कहा कि इनके सहयोग से ही यह कार्यक्रम संपन्न हुआ। मुख्य अतिथि श्रीमती मल्लिका राजन के संबंध में बताया कि ये मूलतः तमिल भाषी हैं ये दिल्ली में पढ़ी-लिखी है। इस समय तमिलनाडु में हिंदी के विकास और प्रचार-प्रसार में अपना बहुमूल्य योगदान दे रही हैं। साथ इन्होंने हिंदी के प्रति समर्पित श्री एम. एस. रघोत्तम एवं पार्थसारथी, नागार्जुन आदि प्रचारकों का विषेश योगदान हेतु आभार व्यक्त किया तथा प्रशिक्षणार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि नवीकरण में अर्जित ज्ञान को विद्यार्थियों में बाँटना है।

शिक्षक को सदैव विद्यार्थी बना रहना चाहिए। हम छात्रों से सीखते हैं और देते भी हैं। इस प्रकार शिक्षा का आदान-प्रदान करते है। आपका सृजनात्म कार्य यह बताता है कि आप लोगों में बहुत कुछ ज्ञान है। उसे छात्रों में विकसित करें। छात्रों की योग्यता एवं कौशल को समझकर उनके विकास पर बल दें। प्रतिभागियों को रोज दूरर्शन से प्रसारित होने हिंदी समाचार को सुनना चाहिए और अपने लेखन कला सुधारना चाहिए। ऐसा करने से वर्तनी की अशुद्धियों को दूर किया जा सकता है। यदि शब्दों का प्रयोग नहीं करेंगे तो शब्द धूमिल हो जाएँगे। अंत में उन्होंने यह आशा व्यक्त किया कि इस प्रशिक्षण से लाभान्वित होकर तमाम प्रतिभागी अपने अध्यापन के कार्य को और अधिक सुगम रोचक और ज्ञानवर्धक बनाएँगे।

अतिथियों के रूप में डॉ. चंद्र प्रताप सिंह ने विचार रखते हुए कहा कि निदेशक महोदय की बातों को उद्धृत करते हुए कहा कि ‘‘यदि ज्ञान को नहीं बाँटेंगे तो मुक्ति नहीं मिलेगी।’’ इस प्रकार जितने हिंदी प्रचारक हैं सब स्वर्ग वाले हैं। ज्ञान की तुलना दूसरे वस्तुओं से नहीं की जा सकती है। हम जितना बाँटते हैं उतना ही इसमें संवर्धन होता है। वैज्ञानिक यह बताते हैं कि यदि हमारा मस्तिष्क रूटिन वर्क करता है तो उसका एक निश्चित नेटवर्क होता है। लेकिन जब हम अलग परिस्थितियों में जाते हैं तो हमारे मस्तिष्क को अधिक सक्रिय होकर नए नेटवर्क को बनाना पड़ता है। ऐसी स्थिति में हमारी उम्र भी बढ़ती है। इस प्रकार हम प्रत्येक नवीकरण कार्यक्रम में स्वयं भी सक्रिय होकर अपने प्रतिभागियों को सक्रिय करते हैं। तथा अतिथि प्रवक्ता डॉ. पंकज सिंह यादव ने अपने वक्तव्य में ‘आदमी मुसाफिर है’ गीत सुनाते हुए प्रतिभगियों को अपना आशीर्वचन दिया।

केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा मुख्यालय के निदेशक प्रो. सुनील बाबुराव कुलकर्णी ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि तमिल के हिंदी प्रचारकों का कार्यक्रम सराहनीय है। मुझे इस प्रकार का कार्यक्रम गौरवपूर्ण लगता है। भक्ति साहित्य का उद्भव दक्षिण से ही हुआ है। मैं प्रचारकों को साधुवाद देता हूँ क्योंकि उन्होंने नवीकरण पाठ्यक्रम का लाभ उठाया है। इस शिवर में आने के पूर्व और समापन की स्थिति में आमूलचूल परिर्वतन हो गया है तथा आपके ज्ञान में वृद्धि हुई होगी। यदि आपने हमें ज्ञान दर्शन को प्रचारित करने का माध्यम हिंदी माना है तो इसके माध्यम से भारत में ही नहीं संपूर्ण विष्व में ज्ञान का प्रचार-प्रसार कर सकते हैं। शुरु में हिंदी केवल भारत तक सीमित थी लेकिन अब इसने वैश्विक स्तर पर कार्य कर रही है। पचहत्तर वर्षों में हिंदीतर क्षेत्रों में हिंदी का विकास किया है, उसी तरह देश-विदेश में भी अपना विस्तार किया है। यहाँ का परंपरा भक्ति दर्शन, राजनीतिक, इतिहास आदि को जानने के लिए लोग हिंदी सीखते थे लेकिन मल्टीनेशनल कंपनियों ने अपनी मजबूरी में हिंदी में कार्य व्यवहार के प्रचार-प्रसार की आवश्यकता महसूस की है। उत्पाद का प्रचार-प्रसार करना है और आम आदमी तक ले जाना है तो यह हिंदी के बिना संभव नहीं है।

विज्ञान, विज्ञापन, साहित्य, फिल्म आदि में हिंदी का प्रयोग हुआ है। अब बालीवुड की फिल्में भी अन्य भाषा में अनुदित होकर विश्व में अपना परचम लहरा रही है। हिंदी में स्वयं को अभिव्यक्त करना सहज और सरल हो गया है। हम हिंदी का विकास अन्य प्रदेशों में कैसे कर सकते हैं। इसके लिए शब्द भंडार को विकसित करने का प्रयास संस्थान द्वारा हमेशा किया जा रहा है। हिंदी का विकास किसी एक व्यक्ति का नहीं बल्कि हम सभी लोगों का कर्तव्य है। शासी परिषद की बैठक में संस्थान पदेन अध्यक्ष माननीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान जी अपना संस्मरण सुनाया कि मेरे गुरु जी संस्थान से पारंगत करने के लिए आगरा गए थे। हमने संस्थान में फोर ईयर डिग्री कार्यक्रम शुरू करने का कार्य प्रारंभ कर दिया है।

उन्होंने ने कहा कि अध्यापकों को ज्ञान का स्थानांतरण करना चाहिए। बिना ज्ञान के स्थानांतरण के मुक्ति नहीं मिलेगी। इस संदर्भ में मुक्तिबोध के ‘ब्रह्म राक्षस’ को उद्धृत किया। उन्होंने कहा कि ज्ञान बाँटने से ज्ञान बढ़ता है। इसलिए सामान्य वस्तुओं की तुलना ज्ञान से नहीं की जा सकती है। आपने प्रशिक्षण में नए-नए रूपों का ज्ञान प्राप्त कर लिया है। हिंदी का प्रचार आप जैसे प्रचारकों के माध्यम से एक हृदय से दूसरे हृदय तक होता रहा है। ज्ञान को नई पीढ़ी तक पहुँचाएँगे तभी यह यज्ञ सफल एवं सार्थक होगा। हमें वहाँ जाकर दीया जलाना होगा जहाँ आज भी अंधकार है। जहाँ 75 वर्षों तक विकास नहीं पहुँचा।

अंत में आभासी पटल के माध्यम से निदेशक महोदय ने सभी प्रतिभागियों का परिचय लिया। साथ ही अतिथियों के द्वारा प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र एवं निवृत्त प्रमाणपत्र दिया गया। कार्यक्रम का सफल संचालन एम.एस. राघोत्तमन और धन्यवाद ज्ञापन श्रीमती रेवती वी. के. ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का समापन सामूहिक राष्ट्रगान से किया गया।

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