हैदराबाद : गणित में 161 सालों से वह एक अनुत्तरित सवाल है। कई लोगों ने कई अलग-अलग तरीके हल करने की कोशिश की, लेकिन उस गणित के सिद्धांत का हल नहीं खोज पाए हैं। लेकिन हैदराबाद के प्रोफेसर कुमार ईश्वरन ने उसका हल ढूंढ निकाला है। ईश्वरन श्रीनिधि संस्थान में गणित के प्रोफेसर हैं। रीमैन हाइपोथिसिस (परिकल्पना) उस सिद्धांत को ‘सिद्ध’ करके दिखाया और 7.4 करोड़ रुपये का इनाम जीता है।
गणित में अनसुलझे शीर्ष दस सिद्धांतों में रीमैन पहले स्थान पर है। कैम्ब्रिज के क्ले मैथमैटिकल इंस्टीट्यूट ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए दसियों मिलियन डॉलर (लगभग 7.4 करोड़ रुपये) के इनाम की घोषणा की थी। प्रसिद्ध गणित वैज्ञानिक कार्ल फ्रेडरिक गॉस द्वारा की गई गणित से रीमैन हाइपोथिसिस आई है। उनके सिद्धांत के अनुसार किसी एक संख्या से कम अभाज्य संख्याओं की संख्या का अनुमान लगाना उपयोगी होता है। बाद में जॉर्ज फ्रेडरिक बर्नार्ड रीमैन ने उस सिद्धांत में सुधार किया। जटिल वेरियबल फंक्शन कालिक्युलस के साथ एक नई पद्धति का उपयोग किया।
पांच सालों से समीक्षाएं
ईश्वरन ने साबित किया कि रीमैन हाइपोथिसिस में विशेष रूप से लिए गए फ़ंक्शन में विश्लेषणात्मक परिवर्तन को निर्धारण करके हल किया जा सकता है। संख्याओं के अंकगणितीय गुणों का उपयोग करके हाइपोथिसिस को सफल करके दिखाया। ईश्वरन ने जिस परिकल्पना को साबित किया वह लगभग पांच साल पहले यानी 2016 में इंटरनेट पर रखी थी। इसकी समीक्षा करने के लिए फरवरी 2021 में श्रीनिधि शैक्षणिक संस्थानों की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया था।
गणित विशेषज्ञों ने समीक्षा की
इस समिति में राष्ट्रीय स्तर के सलाहकार देश के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के पूर्व सचिव टी रामास्वामी थे। हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सीतारमण, चेन्नई स्थित गणित और विज्ञान संस्थान प्रोफेसर के श्रीनिवास राव, श्रीनिधि संस्थान के कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर नरसिंह रेड्डी, आईआईटी हैदराबाद के प्रोफेसर विनायक ईश्वरन सदस्य रहे हैं। इस सिद्धांत को लगभग 1,200 से अधिक गणित विशेषज्ञों ने समीक्षा की है।
गणित विशेषज्ञों ने समीक्षा की है।
ईश्वरन ने अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों द्वारा भेजी गई समीक्षाओं का जवाब दिया। इस साल 16 मई को अपनी आखिरी बैठक में समिति ने निष्कर्ष निकाला कि ईश्वरन द्वारा रीमैन परिकल्पना के प्रस्तावित सिद्धांत को सही माना। इस सिद्धांत के बारे में पूरी जानकारी पहले ई-बुक के माध्यम से और फिर पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया।