कादम्बिनी की मासिक गोष्ठी में ‘तेलुगू कहानी दशा एवं दिशा’ पर इन वक्ताओं ने डाला प्रकाश, पढ़ें और जानें खास बात

हैदराबाद : कादम्बिनी क्लब हैदराबाद के तत्वावधान में रविवार को गूगल मीट के माध्यम से डॉ ऋषभदेव शर्मा की अध्यक्षता में क्लब के 385वीं मासिक गोष्ठी सम्पन्न हुआ। क्लब अध्यक्ष डॉक्टर अहिल्या मिश्र और कार्यकारी संयोजिका मीना मुथा ने संयुक्तरूप से आगे बताया कि इस अवसर पर शुभ्रा मोहंतो द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से प्रथम सत्र का आरंभ हुआ।

क्लब अध्यक्ष ने पटल पर उपस्थित सभी गणमान्य रचनाकारों का स्वागत करते हुए कहा कि आप सबों की अमूल्य उपस्थिति क्लब की प्रेरणा है। उन्होंने आगे कहा कि आज ‘तेलगू कहानी दशा एवं दिशा’ विषय पर डॉक्टर जी नीरजा एसोसिएट प्रोफ़ेसर दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा चेन्नई पत्र प्रस्तुत करने वाली थीं परंतु उनके परिवार में अस्वस्थता के कारण वे पटल पर आने में असमर्थ हैं। अतः मुख्य वक़्ता के रूप में डॉ ऋषभदेव शर्मा अपनी बात रखेंगे। दिल्ली से जुड़े अवधेश कुमार सिन्हा ने विषय प्रवेश करते हुए कहा कि हिंदी के बाद क्षेत्रीय भाषाओं यानी तेलुगू में बात करने वालों की संख्या ज़्यादा है। तेलुगू कहानियाँ सांस्कृतिक विरासत, भौगोलिक, सामाजिक परिस्थितियाँ सबकुछ बयां करती हैं।

डॉ ऋषभदेव शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि हिंदी कहानी के परिप्रेक्ष्य में भारतीय कहानियों को देखें तो कहानी वह विधा है जिसका सभी भारतीय भाषाओं में उदय और विकास बीसवीं शताब्दी के आरंभिक दशकों में हुआ। तेलुगू कहानी मनोरंजनात्मक से अलग सुधार आंदोलन, राष्ट्रीय आन्दोलन के साथ चल रही थी। गुरजाडा अप्पा राव का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी कहानियों का आधार यथार्थवादी है। उनकी कहानी ‘तुम कौन हो’ को कला का चरमोत्कर्ष कहा जाता है। मुख्य वक्ता ने तेलुगू कहानी के इतिहास और काल खंडों को पटल पर रखते हुए कहा कि कहानी में मनोरंजन के स्थान पर उद्देश्य की प्रबलता थी। सत्यवती की रचना ‘मेरा नाम क्या है’ की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि इसमें महिलाओं के अस्तित्व के प्रति सजगता दिखाई देती है। सभी भारतीय भाषाओं का साहित्य एक हृदय एक मन का साहित्य है।

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जी परमेश्वर ने अपनी बात रखते हुए कई रचनाकारों का उल्लेख किया जिन्होंने तेलुगू साहित्य एवं कहानी लेखन में विशेष सिद्धहस्तता प्राप्त की थी। डॉ मिश्र ने कहा कि जैसे जैसे काल और परिस्थितियां बदलते हैं समाज की परिस्थिति भी बदलती है। तेलुगू कहानी ने समाज का विद्रूप रूप सामने रखा है। आज हिंदी कहानी से आगे तेलुगू कहानी निकल गई है। मीरा ठाकुर, डॉ रमा द्विवेदी ने भी अपने विचार रखते हुए चर्चा को सार्थक बनाया। अवधेश कुमार सिन्हा ने कुछ प्रश्नों को श्रोताओं की ओर से रखा और उसका निराकरण पाते हुए सत्र का समापन किया।

दूसरे सत्र में डॉक्टर अहिल्या मिश्र की अध्यक्षता में कवि गोष्ठी आयोजित हुई। रचनाकारों ने सावनगीत, दोहे, मुक्तछंद, लघु कथा, लोकगीत, मारवाड़ी गीत, ग़ज़ल, कविता स्वतंत्रता दिवस, रक्षाबंधन, नारी विमर्श आदि विषय पर काव्य पाठ की। शोभा देशपांडे, स्वाति गुप्ता, दर्शन सिंह, जी परमेश्वर, चन्द्र प्रकाश दायमा, विनोदगिरी अनोखा, प्रवीण प्रणव, अवधेश कुमार सिन्हा, सुनीता लुल्ला, किरण सिंह, विनीता शर्मा, उषा शर्मा, डॉ रमा द्विवेदी, रमा बहेड़, मीरा ठाकुर, अंशू श्री सक्सेना, डॉ रचना चतुर्वेदी, हर्षलता दुधोडिया, सरिता दीक्षित, प्रियंका पाण्डे, मीना मुथा ने कवि गोष्ठी में भाग लिया।

डॉ मदन देवी पोकरणा, डॉ कृष्णा सिंह, डॉ अनीता मिश्र, डॉ सुपर्णा मुखर्जी, डॉ गंगाधर वानोडे, डॉ एन आर श्याम, चंद्रलेखा कोठारी, दीपक कुमार दीक्षित, भगवती अग्रवाल, मधु दायमा, सरिता सुराना आदि की पटल पर उपस्थिति रही। डॉ मिश्र ने ‘मेरा जीवन आज भी अनाम क्यों’ कविता का पाठ किया और अध्यक्षीय टिप्पणी देते हुए कहा कि नवरसों से परिपूर्ण सभी ने काव्य पाठ किया। विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर आधारित कविताएँ श्रवणीय रहा है।

डॉ रमा द्विवेदी ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए डॉ ऋषभ देव शर्मा, अवधेश कुमार सिन्हा, जी परमेश्वर आदि के प्रति आभार जताया। साथ ही संपूर्ण संचालन के लिए मीना मुथा और तकनीकी सहयोग के लिए शिल्पी भटनागर और प्रवीण प्रणव के प्रति आभार जताया। रचनाकारों को बहुमूल्य सहयोग के लिए धन्यवाद दिया।

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